प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कहा गया है कि आतंकियों ने बड़ी गलती की है, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। विपक्ष की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो सरकार और सेना के साथ खड़े होने की बात कही है, लेकिन उन्हीकी पार्टी की पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इस पाक प्रेरित आतंकी हमले पर कहा है कि आतंकवाद का कोई देश नहीं होता। कहने की जरूरत नहीं कि सिद्धू का हाल के कुछ समय में उपजा पाक प्रेम अब भी हिलोरे मार रहा है। ऐसे में, राहुल गांधी यदि सरकार और सेना के साथ वास्तव में खड़े दिखना चाहते हैं, तो पहले अपने ऐसे बड़बोले नेताओं की जबान पर जरा लगाम लगाएं।
गत 14 फरवरी की शाम जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सेना के जवानों पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले ने देश में शोक और आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। आत्मघाती आतंकी ने साढ़े तीन सौ किलो विस्फोटक से लदी गाड़ी सीआरपीएफ के काफिले में घुसाकर विस्फोट कर दिया, जिसमें 44 जवान शहीद हो गए और कितने ही जवान ज़ख़्मी हालत में जीवन-मरण से जूझ रहे हैं।
शहीद जवानों की संख्या के हिसाब से ये वर्ष 2017 में हुए उड़ी हमले से भी बड़ा हमला है। हमले की खबर आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर लोगों की शोक और आतंकियों के प्रति रोष से भरी तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। चूंकि, उड़ी हमले के बाद मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर शहादतों का बदला लिया था, इसलिए अबकी लोग और बड़े बदले की उम्मीद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कहा गया है कि आतंकियों ने बड़ी गलती की है, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। विपक्ष की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो सरकार और सेना के साथ खड़े होने की बात कही है, लेकिन उन्हीकी पार्टी की पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इस पाक प्रेरित आतंकी हमले पर कहा है कि आतंकवाद का कोई देश नहीं होता। कहने की जरूरत नहीं कि सिद्धू का हाल के कुछ समय में उपजा पाक प्रेम अब भी हिलोरे मार रहा है। ऐसे में, राहुल गांधी यदि सरकार और सेना के साथ वास्तव में खड़े दिखना चाहते हैं, तो पहले अपने ऐसे बड़बोले नेताओं की जबान पर जरा ;लगाम लगाएं।
पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा मामलों की कबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक बुलाई गयी। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली इस समिति में वित्त मंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री सहित कई और प्रमुख लोग होते हैं। समिति की बैठक में लिए गए जिन निर्णयों के विषय में जानकारी दी गयी, उनमें प्रमुख पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस लेने का निर्णय है।
यह बात काफी समय से उठ रही थी कि पाकिस्तान की भारी भारत विरोधी गतिविधियाँ करने के बावजूद उसे एमएफएन का दर्जा क्यों दिया गया है? आखिर इस हमले ने सरकार के सब्र का भी अंत किया और पाकिस्तान से एमएफएन का दर्जा वापस लेने का निर्णय लिया गया।
गौर करें तो किसी देश को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने का मतलब यह होता है कि उस देश को व्यापार में अधिक प्राथमिकता दी जाएगी। एमएफएन का दर्जा प्राप्त देश को आयात-निर्यात में विशेष छूट मिलती है। इसमें दर्जा पाने वाला देश सबसे कम आयात शुल्क पर कारोबार करता है। इससे इन देशों को एक बड़ा बाजार मिलता है, जिससे वे अपने सामान को वैश्विक बाजार में आसानी से पहुंचा सकते हैं।
जाहिर है, विकासशील देशों के लिए एमएफएन दर्जा फायदे का सौदा है और पाकिस्तान जैसे आर्थिक बदहाली से गुजर रहे देश के लिए तो यह बड़ी चीज था। परन्तु अब उसके लिए ये सारी सहूलियतें बंद हो जाएंगी जिससे उसकी पहले से ही डांवाडोल आर्थिक हालत के और भी डांवाडोल होने की संभावना है। निस्संदेह यह एक बड़ा कदम है। इसके अलावा हमें धैर्य के साथ सरकार और सेना पर भरोसा बनाए रखना चाहिए कि आतंकियों को इस हमले का कठोर उत्तर दिया जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)