जब तक हिन्दू संगठित थे, भारत विश्व गुरु था। संगठन कमजोर हुआ, विदेशी आक्रमणकारी यहां कब्जा जमाने मे सफल होने लगे। स्पष्ट है कि मोहन भागवत राष्ट्रीय शौर्य और स्वाभिमान को जगाना चाहते हैं। जब भारत शक्ति संपन्न होगा, तभी लोग उसकी बात सुनेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार के आने के बाद हिन्दू जीवन पद्धति की ओर विश्व समुदाय की जिज्ञासा बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मिले वैश्विक समर्थन को इसकी एक बानगी के रूप में देखा जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मेरठ में आयोजित राष्ट्रोदय समागम केवल संख्या की दृष्टि से ही अभूतपूर्व नहीं था, बल्कि यहाँ से समरसता, मानवता, शौर्य और राष्ट्रीय भाव का उद्घोष भी हुआ। समाज के सभी वर्गों की इसमें भागीदारी रही। इस अवसर पर सर संघचालक मोहन भागवत ने न केवल दुनिया में बढ़ते तनाव, वैमनस्यता, आतंकवाद आदि समस्याओं का उल्लेख किया, बल्कि इनका समाधान भी बताया। दुनिया की अनेक कठिनाइयां वैचारिक विकृति के कारण उत्पन्न होती हैं।
मोहन भागवत ने तथ्यों के साथ कहा कि हिन्दू चिंतन में ही मानव मात्र के कल्याण की भावना है। अन्य सभ्यताओं के लोगों को आश्चर्य हो सकता है, परन्तु हिन्दू चिंतन में जो जितना कट्टर होगा, वह उतना ही उदार होगा। कट्टर व्यक्ति अपने विचार से समझौता नहीं करता। हिन्दू चिंतन में मानवता और अहिंसा का विचार है। इसका मतलब है कि जो कट्टर हिन्दू होगा, वह मानवता का विचार नही छोड़ेगा। वह निर्बल को कभी सतायेगा नहीं। प्रत्येक व्यक्ति में एक आत्मा के निवास को मानेगा, इसलिए समरसता के मार्ग पर चलेगा। यह उसकी कट्टरता होगी। मतलब हिन्दू चिंतन की कट्टरता से ही मानव का कल्याण होगा। विश्व की समस्याओं का समाधान होगा। इसके लिए सबसे पहले हिंदुओं का संगठित होना जरूरी है।
जब तक हिन्दू संगठित थे, भारत विश्व गुरु था। संगठन कमजोर हुआ, विदेशी आक्रमणकारी यहां कब्जा जमाने मे सफल होने लगे। स्पष्ट है कि मोहन भागवत राष्ट्रीय शौर्य और स्वाभिमान को जगाना चाहते हैं। जब भारत शक्ति संपन्न होगा, तभी लोग उसकी बात सुनेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार के आने के बाद हिन्दू जीवन पद्धति की ओर विश्व समुदाय की जिज्ञासा बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मिले वैश्विक समर्थन को इसकी एक बानगी के रूप में देखा जा सकता है।
अन्य सभताओं के लिए यह आश्चर्य का विषय था कि कैसे भारतीय योग में दुनिया के सभी लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की कामना की गई। किस प्रकार सभी इंसानों को सकारात्मक सोच विकसित करने वाले योग से परिचित कराया गया। योग में कहीं नहीं कहा गया कि इससे भारत के लोगों या हिंदुओं को लाभ होगा। यह विचार दिया गया कि योग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसका लाभ होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश को परमवैभव के पद पर पहुंचाने के लिए समर्पित है। इसकी स्थापना इसी भावना से हुई थी। डॉ. हेडगेवार स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। लेकिन, दासता के मूल कारण पर भी उन्होंने चिंतन किया था। वह इस प्रश्न का उत्तर तलाशना चाहते थे कि भारत विश्व गुरु होने के बाद भी परतन्त्र क्यों हुआ। विदेशी आक्रांता यहां आकर शासक कैसे बन गए। निश्चित ही हमारी कोई कमजोरी अवश्य रही होगी, जिसका विदेशियों ने फायदा उठाया। डॉ. हेडगेवार समाज की उसी कमजोरी दूर करना चाहते थे और संघ उसी दिशा में कार्यरत है।
हिंदुत्व के मूल विचार में विश्व कल्याण के साथ अपनी शक्ति और शौर्य का विचार समाहित था। लेकिन इस ताकत में अत्याचार नहीं था, अपना विचार या मत किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया जाता था, बल्कि यह शक्ति निर्बल की रक्षा के लिए थी। समाज को नियमानुसार व्यवस्थित रखने के लिए अराजक तत्वों पर नियंत्रण आवश्यक होता है। इसके लिए राजसत्ता होती है, किंतु उसका शक्तिसंपन्न होना पर्याप्त नहीं है। समाज के लिए जरूरी है कि एकजुट होकर राष्ट्र को मजबूत बनाने में योगदान दे। समाज की एकता समरसता की भावना पर आधारित होनी चाहिए।
मोहन भागवत ने इन्ही बिंदुओं की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया। हिदुत्व संकुचित और असहिष्णु नहीं हो सकता। मोहन भागवत ने कहा भी कि जो दूसरे की पीड़ा समझे, किसी को पीड़ित न करे, निर्बल की सहायता करे, भारत भूमि को माता माने, हिंसा के मार्ग पर न चले, वह हिन्दू है। यही जीवन-पद्धति है। इसी में सबके हित की कामना है। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिये कि निर्बल व्यकि की अच्छी बात भी कोई ध्यान से नही सुनता, अतः भारत को शक्तिशाली बनना होगा। माहौल अनुकूलता की ओर है। लेकिन, समरसता की भावना से हिन्दू समाज को संगठित होना पड़ेगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इसी कार्य मे लगा है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)