पाकिस्तान की सेना में पंजाबियों का वर्चस्व साफ है। उसमें 80 फीसद से ज्यादा पंजाबी हैं। ये भारत से नफरत करते हैं। इस भावना के मूल में पंजाब में देश के विभाजन के समय हुए खून.खराबे को देखा जा सकता है। पाकिस्तान का पंजाब इस्लामिक कट्टरपंथ की प्रयोगशाला है। वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है। पंजाब के अलावा पाकिस्तान के बाकी भागों में भारत विरोधी माहौल इतना अधिक नहीं है।
पाकिस्तान ने भारत पर मोर्टार और मिसाइल दागकर सारे माहौल को बेहद तनावपूर्ण कर दिया। भारतीय सेना ने भी करारा जवाब देते हुए पाक फौज की कई चौकियों को भारी नुकसान पहुँचाया है। पर, मिसाइल के हमले से एलओसी पर युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। भारत को पाकिस्तान की नापाक कोशिश पर हल्ला बोलने के बारे में सोचना होगा। भारत सरकार को मालूम होगा कि जब तक पाकिस्तानी सेना पर पंजाबी वर्चस्व रहेगा तब तक लाख कोशिशों के बाद भी दोनों मुल्कों में अमन की बहाली मुमकिन नहीं है।
पाकिस्तान सेना की भारत से खुंदक जगजाहिर है। उसका एकमात्र मकसद भारत को हर लिहाज से नुकसान पहुंचाना है। इसलिए वहां पर चुनी हुई सरकार के चाहने से कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि, सेना पर किसी का जोर नहीं है। आप पाकिस्तान आर्मी के गुजिश्ता दौर के पन्नों को खंगालेंगे तो पता चल जाएगा कि वह किस हद तक भारत विरोधी रही है।
नामवर चिंतक राजमोहन गांधी कहते हैं, पाकिस्तान की सेना पर पंजाबियों का वर्चस्व साफ है। वे भारत विरोधी हैं। इसके मूल में वे विभाजन के समय हुई मारकाट को दोषी मानते हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में इस्लामिक कट्टरता सबसे ज्यादा है। वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है। इस परिप्रेक्ष्य में इस बात की उम्मीद करना नासमझी होगा कि भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों में सुधार होगा।
पिटी, पर नहीं सुधरी
पाकिस्तानी सेना को लेकर कहा जाता था भारत से 1971 के युद्ध में धूल चाटने के बाद सुधर जाएगी। लेकिन, ये नहीं हुआ। पाकिस्तान आर्मी ने देश में चार बार निर्वाचित सरकारों का तख्ता पलटा। अयूब खान, यहिया खान, जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना को एक माफिया के रूप में विकसित किया। देश में निर्वाचितो सरकारों को कभी कायदे से काम करने का मौका ही नहीं दिया गया। जम्हूरियत की जड़ें जमने नहीं दीं। वर्ष 1956 तक देश का संविधान तक नहीं बन पाया। जब बना भी तो चुनाव नहीं हो पाए और सेना ने सत्ता ही हथिया ली।
पाकिस्तानी सेना ने देश के विश्व मानचित्र में सामने आने के बाद अहम राजनीतिक संस्थाओं पर भी प्रभाव बढ़ाना शुरु कर दिया। भारत से खतरे की आड़ में ही पाकिस्तान में लगातार सैनिक शासन पनपता रहा है। नफरत फैलाकर भय का माहौल पैदा करना ही पाक-आर्मी का शुरू से मूल मकसद रहा। 1947 के बाद से पाकिस्तान में लगभग तीस साल तक सैन्य शासन रहा और सेना ने केंद्रीयकरण को बढ़ावा दिया। जब सेना का शासन नहीं रहा, तब भी इस केंद्रीयकरण का प्रभाव बना रहा। उधर, पाकिस्तान में अयूब खान और जिया-उल-हक के सैन्य शासन के दौरान भी लोकतंत्र बहाली के लिए प्रदर्शन और आंदोलन हुए। लेकिन आर्मी का कब्जा बना रहा।
वजह नफरत की
पाकिस्तान की सेना में पंजाबियों का वर्चस्व साफ है। उसमें 80 फीसद से ज्यादा पंजाबी हैं। ये भारत से नफरत करते हैं। इस भावना के मूल में पंजाब में देश के विभाजन के समय हुए खून.खराबे को देखा जा सकता है। पाकिस्तान का पंजाब इस्लामिक कट्टरपंथ की प्रयोगशाला है। वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है। पंजाब के अलावा पाकिस्तान के बाकी भागों में भारत विरोधी माहौल इतना अधिक नहीं है।
हालांकि पाकिस्तान आर्मी ने खून-खराबा करने में अपनों को भी नहीं बख्शा है। हो सकता है कि इस पीढ़ी को पाकिस्तानी आर्मी के ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में रोल की पर्याप्त जानकारी न हो। पाकिस्तानी सेना ने साल 69-71 में अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म ढाहना शुरू किया। इस कार्रवाई को पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया। यह जुल्म ऐसा-वैसा नहीं था। लाखों लोगों की बेरहमी से हत्या, हजारों युवतियों से सरेआम बलात्कार, तरह-तरह की अमानवीय यातनाएं। पाकिस्तानी सेना के दमन में मारे जाने वालों की तादाद 30 लाख थी। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी फौजी दरिंदों ने दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया था।
भारत का ये दुर्भाग्य ही है कि पाकिस्तान जैसा धूर्त देश हमारा पड़ोसी है। इससे तमाम मोर्चो पर डील करना अपने आप में चुनौती तो है ही। पाकिस्तान सेना चीफ भारत के खिलाफ बार-बार जहर उगलते रहे हैं। पहले राहील शऱीफ यह काम करते थे, अब क़मर जावेद बाजवा करते हैं। जनरल शरीफ ने कहा था, ‘हमारी सेना हर तरह के हमले के लिए तैयार है। अगर भारत ने छोटा या बड़ा किसी तरह का हमला कर जंग छेड़ने की कोशिश की तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे और उन्हें ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई मुश्किल होगी।’
अब बाजवा कश्मीर के मसले पर भी टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। वे भी पंजाबी हैं। भारत के रक्षा विशेषज्ञों को इन सारे बिन्दुओं पर गौर करना होगा पाकिस्तान को मात देने के लिए। वैसे, वर्तमान सरकार के आने के पश्चात् पाकिस्तान के प्रति देश की नीतियों में परिवर्तन आया है और अब उसकी नापाकियों का माकूल जवाब दिया जाने लगा है। उम्मीद है, इसबार भी हमारी सेना पाकिस्तान की हरकत का मुंहतोड़ ढंग से जवाब देगी।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)