क्या कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी आज भी इस मुगालते में हैं कि वह तथा उनका परिवार ही भारत की सर्वोच्च संस्था है? यह सवाल आज बेहद जरूरी हो गया है। क्योंकि गत दिनों एक प्रेस वार्ता के दौरान राहुल गाँधी ने जिस अहंकार भरे लहजे में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को लेकर बोला कि कौन नड्डा ? यह बताता है कि कांग्रेस सत्ता से बाहर क्यों है और आज भी जनता उन्हें खारिज क्यों कर रही है।
भारत की राजनीति में शालीनता किस तरह से गौण हो रही है, इसका आंकलन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कई राजनेता समय-समय पर अपने बयानों व व्यवहारों से इसकी बानगी दिखाते रहते हैं। किन्तु राजनीति में दंभ और अहंकार बहुतायत मात्रा में कांग्रेस के नेताओं में विद्यमान है। जिसका प्रदर्शन वह करने से नहीं चूकते।
आखिर इस अहंकार के पीछे की मानसिकता क्या है? क्या कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी आज भी इस मुगालते में हैं कि वह तथा उनका परिवार ही भारत की सर्वोच्च संस्था है? यह सवाल आज बेहद जरूरी हो गया है। क्योंकि गत दिनों एक प्रेस वार्ता के दौरान राहुल गाँधी ने जिस अहंकार भरे लहजे में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को लेकर बोला कि कौन नड्डा ? यह बताता है कि कांग्रेस सत्ता से बाहर क्यों है और आज भी जनता उन्हें खारिज क्यों कर रही है।
राहुल गाँधी और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की तुलना करना उचित नहीं लगता क्योंकि नड्डा सड़को पर संघर्ष करते हुए आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं, तो राहुल गाँधी की के राजनीतिक पदों पर आसीन होने की एकमात्र योग्यता यह है कि वह नेहरु-गांधी परिवार के वारिश हैं।
दरअसल राहुल गाँधी की समस्या यही है कि वह वास्तविकता को जानना-समझना और स्वीकारना नहीं चाहते। वह चाहते हैं कि सब कुछ उनके अनुकूल हो और सभी चींजे उनके गिरफ्त में हो, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ हो नहीं रहा है। ऐसे में इस तरह का बयान उनकी खीझ और निराशा को प्रदर्शित करता है।
अब मुख्य बात पर आते हैं कि नड्डा कौन ? उदाहरण के लिए जब भारतीय राजनीति के पटल पर राहुल कहीं दूर-दूर तक नहीं थे। उस समय (1991) जगत प्रकाश नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष का दायित्व संभालते हुए सड़को पर संघर्ष और आंदोलन कर रहे थे। राजनीति में सौम्यता और समझ से परिपूर्ण जेपी नड्डा पहली बार जब विधायक बने उसी समय पार्टी ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष जैसा बड़ा दायित्व प्रदान किया।
ऐसे तमाम दायित्वों को निर्वहन करते हुए आज नड्डा यहाँ तक पहुंचे है उनकी सौम्यता और शालीनता ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी है। आज तक उनका कोई आपत्तिजनक बयान मीडिया के सामने नहीं आया है।दूसरी तरफ राहुल गाँधी प्रधानमंत्री के लेकर संवैधानिक संस्थाओं के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते और जब भी मीडिया के सामने आते हैं, यकीनन अपनी सतही राजनीतिक समझ के कारण हास्य का पात्र बनते हैं। इसलिए इन दोनों की तुलना करना बेमानी होगी।
राहुल गाँधी को सबसे पहले तो अपनी राजनीतिक समझ का विकास करना चाहिए जो वर्षों से विकसित नहीं हो पा रही है। आज कांग्रेस अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही, ऐसे में राहुल गाँधी का इस तरह अहंकार का प्रदर्शन बची हुई कांग्रेस को भी समेटने का काम करेगा।
ऐसा नहीं है कि पहली बार कांग्रेस से ऐसे दंभ भरे शब्द सुनाई दिए हैं। नेहरु से लेकर इंदिरा, राजीव और सोनिया तक में सामंतवादी सोच की एक पूरी परम्परा रही है, जिसका निर्वहन राहुल गाँधी और अन्य कांग्रेसी नेता भी करते रहे हैं। इससे पहले भी ऐसे बयानों की एक लम्बी फेहरिस्त है। याद करिये मणिशंकर अय्यर का नरेंद्र मोदी को लेकर दिया गया चाय वाला बयान। इसका क्या परिणाम हुआ, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
आज वही नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। आज उनकी लोकप्रियता के आगे कोई नेता नहीं दिखाई देता। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने भाई राहुल के प्रचार के लिए अमेठी पहुंची प्रिंयका वाड्रा ने एक रोड शो के दौरान पूछा था कि कौन स्मृति ईरानी ? आज स्थिति सबके सामने है। जनता ने अगले ही चुनाव में इस अहंकार का कड़ा प्रतिकार किया और अपने अथक परिश्रम से स्मृति आज राहुल गाँधी को हराकर अमेठी से सांसद और केन्द्रीय मंत्री हैं।
एक और तथ्य उल्लेखनीय होगा कि इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। उस वक्त राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी ने भी भाजपा का मजाक उड़ाते हुए कहा था ‘हम दो हमारे दो’ और आज की स्थिति सबके सामने है।
कुल मिलाकर बात ये है कि कांग्रेस में अहंकार की प्रवृत्ति कोई नई नहीं है, कांग्रेस शुरू से अहंकार में डूबी हुई रही है, लेकिन अब देश की जनता ने इस अहंकार को समझ लिया है और इसे लगातार तोड़ रही है। लेकिन शायद कांग्रेस अपने अतीत से सबक नहीं लेती जिसका परिणाम सर्वविदित है।
राहुल गाँधी ने कहा कि कौन नड्डा ? अब अगर कोई पलट के पूछ दे कि कौन राहुल ? क्योंकि हर समय जिम्मेदारियों से भागने वाले राहुल गाँधी इस समय क्या हैं ? न विपक्ष के नेता हैं और न ही अपनी ‘पारिवारिक पार्टी’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, फिर इस तरह का दंभ एक बड़ी भूल है जिसे कांग्रेस लगातार करती आ रही है।
(लेखक श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)