करीब आधी शताब्दी पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने देश की व्यवस्था का उल्लेख किया था। उनका कहना था कि केंद्र से सौ पैसे भेजे जाते हैं, उसमें से केवल पन्द्रह पैसे ही जमीन तक पहुंचते हैं। अब इसी पीढ़ी के राहुल गांधी ने गरीबों को बहत्तर हजार रुपये सालाना देने की बात कही है, तो सवाल है कि क्या ये कांग्रेस की नीतिगत विफलता नहीं कि इंदिरा से लेकर राहुल तक सब गरीबी मिटाने में ही लगे हैं, लेकिन अबतक गरीबी मिट नहीं सकी। राजनीतिक लाभ के लिए आखिर कांग्रेस और कितनी बार गरीबी मिटाएगी?
राहुल गांधी की सालाना बहत्तर हजार रुपये की योजना से इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बयान ताजा हुए हैं। करीब आधी शताब्दी पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने देश की व्यवस्था का उल्लेख किया था। उनका कहना था कि केंद्र से सौ पैसे भेजे जाते हैं, उसमें से केवल पन्द्रह पैसे ही जमीन तक पहुंचते हैं।
अब इसी पीढ़ी के राहुल गांधी ने गरीबों को बहत्तर हजार रुपये सालाना, छः हजार की मासिक किश्त में, देने की बात कही है, तो इसे भी कांग्रेस की उक्त परंपरा के आधार पर देखना होगा। सवाल है कि कांग्रेस की वो कौन सी नीतियां हैं कि दादी से लेकर पोते तक सब गरीबी मिटाने में ही लगे हैं, लेकिन अबतक गरीबी मिट नहीं सकी।
दरअसल राजीव गाँधी ने जिस भ्रष्टाचार की बात कही थी, उसी व्यवस्था के चलते कांग्रेस की सरकारें गरीबी हटाने में नाकाम रहीं। लेकिन राजीव गाँधी भी बस ज्ञान देकर ही रह गए, समाधान नहीं दे सके। पिछली यूपीए सरकार इसी व्यवस्था से चल रही थी। यही कारण था कि उसकी मनरेगा भी भ्रष्टाचार में घिर गई थी। इसी प्रकार किसान कर्ज माफी पर भी आरोप लगे थे। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड को जो पैकेज दिया गया था, उसका भी हश्र राजीव गांधी के बयान के अनुरूप हुआ था।
कांग्रेस ने जो योजनाएं बनाईं, गरीबों तक उनका लाभ राजीव गांधी के हिसाब से मिलता था। सब्सिडी में भी बहुत घपला होता था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस व्यवस्था को बदला। जनधन और डीबीटीएल योजना के माध्यम से उन्होंने व्यवस्था को बदलने की शुरुआत की। गरीबों तक योजनाओं का लाभ पहुंचने लगा।
राहुल गांधी सरकार पर कुछ पूंजीपतियों के कर्ज माफी का आरोप कई वर्षों से लगा रहे हैं, जबकि वित्तमंत्री अरुण जेटली का दावा है कि इस सरकार ने उद्योगपतियों का एक रुपया भी माफ नहीं किया है। इसके विपरीत यूपीए सरकार ने मनमाने ढंग से जो कर्ज वितरित किये थे, वह वर्तमान सरकार के लिए बोझ बन गए हैं।
यूपीए और एनडीए सरकार के बीच फर्क को साफ तौर पर देखा जा सकता है। यूपीए के समय अर्थतंत्र में बहुत छेद थे, बिचौलिए और दलाल मौजूद रहते थे। प्रधानमंत्री ने इन पर रोक लगाई, तीस करोड़ से अधिक लोगों के बैंक खाते खुलवा दिए। उसके बाद गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई, और उन्हें लागू किया। अभी करोड़ों किसानों के खाते में दो हजार रुपये भेजे गए। भविष्य में भी यह योजना जारी रहेगी। मतलब साफ है, नरेन्द्र मोदी ने गरीबों के हिस्से का धन उन तक पूरी पारदर्शिता से पहुंचाया। यूपीए सरकार में ऐसी इच्छाशक्ति नहीं थी।
इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा 1971 में दिया था। तब देश की जनसंख्या करीब चौवन करोड़ थी। इनमें इकतीस करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। इस समय लगभग सवा सौ करोड़ लोगों में पैंतीस कतोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। मनमोहन सिंह सरकार ने बत्तीस रुपये कमाने वाले को गरीब नहीं माना था। इसके अलावा मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। मतलब साफ है कि कांग्रेस गरीबों के प्रति कभी गंभीर नहीं रही है।
कांग्रेस के बत्तीस रुपये वाले फार्मूले के तहत बड़ी संख्या में गरीबों को योजनाओं के लाभ से बाहर कर दिया गया था। अब राहुल गांधी ने घोषणा की है कि अत्यंत गरीब बीस प्रतिशत गरीब परिवारों को बहत्तर हजार रुपया प्रतिवर्ष देंगे। इस योजना का लाभ देने के लिए भी कांग्रेस क्या बत्तीस रुपया जैसा ही गरीबी का कोई फार्मूला लाएगी?
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का आकलन है कि राहुल गांधी की यह योजना देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देगी। आर्थिक वृद्धि, मुद्रा स्फीति और राजकोषीय अनुशासन में सही संतुलन स्थापित करने के लिए पिछले पांच वर्षों में अनेक कारगर कदम उठाए गए हैं। राहुल गांधी की यह योजना लागू होने पर उस संतुलन को चौपट कर देगी, और लोक कल्याणकारी कार्यो में कटौती करनी होगी।
‘न्याय’ योजना की कुल लागत करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये होगी। यह देश की जीडीपी का 1.9 प्रतिशत और केंद्र सरकार के खर्च का चौदह प्रतिशत है। राहुल ने यह नहीं बताया कि योजना के लिए धन कहाँ से आएगा? यह अनर्गल प्रलाप करने से काम नहीं चलेगा कि नरेन्द्र मोदी उद्योगपतियों की जेब में पैसा डालते हैं, हम गरीबो को देंगे।
इतनी बड़ी योजना का जवाब मसखरेपन से नहीं देना चाहिए। आकलन है कि कांग्रेस की योजना लागू हुई तो देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर जाएगी। इससे राजकोषीय घाटा बढ़कर साढ़े दस लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाएगा। राजकोषीय घाटे का संतुलन बिगड़ने से महंगाई भी बेकाबू हो जाएगी। महंगाई बढ़ने पर रिजर्व बैंक को ब्याजदरों में वृद्धि करनी पड़ेगी। इसका प्रतिकूल प्रभाव विकास दर पर पड़ेगा।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने बारह करोड़ से अधिक किसान परिवारों को छह हजार रुपये सालाना देने की योजना लागू की है। इसकी पहली किश्त भेजी जा चुकी है। इसके लिए चालू वित्त वर्ष में बीस हजार करोड़ रुपये व आगामी वित्तीय वर्ष के लिए पचहत्तर हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। यह एक सोची-समझी और सुविचारित योजना है, जिससे अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं होगा।
दरअसल आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश की सत्ता में रही कांग्रेस ने गरीबों को गुमराह करने का काम किया है। गरीबी हटाओ का नारा देने के बाद भी बीस प्रतिशत लोगों की आय बारह हजार रुपये भी नहीं है, तो देश के गरीबों को नजरअंदाज करने की जवाबदेही किसकी बनती है?
शायद कांग्रेस ने मान लिया है कि उसे अब केंद्र की सत्ता में नहीं पहुंचना है। ऐसे में बड़े-बड़े वादे करने में क्या हर्ज है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान में जिस कर्जमाफी के वादे पर सवार होकर वह सत्ता तक पहुंची थी, उसे उचित ढंग से लागू करने में विफल साबित हुई है। ऐसे में उसकी योजनाओं पर लोगों का भरोसा करना मुश्किल है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)