बोलने से पहले सोचना कब शुरू करेंगे, राहुल गांधी !

संघ की महिला संस्था राष्ट्र सेविका समिति की महिलाएं शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक प्रत्येक रूप से सशक्त, समर्थ और प्रगतिशील चेतना से परिपूर्ण होती हैं। मगर, राहुल गांधी को सिर्फ इतने से संतुष्टि थोड़े मिल जाएगी, उन्हें तो संघ में महिलाएं शॉर्ट्स पहने हुए चाहिए। शायद इसके बाद ही वे मानेंगे कि संघ में महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं होता। मतलब कि उनकी नज़र में महिलाओं के प्रगतिशील होने के लिए शॉर्ट्स पहनना आवश्यक है। कहना न होगा कि राहुल गांधी का बयान कहीं न कहीं कांग्रेस की भारतीयता से कटी हुई और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित सोच को ही दर्शाता है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव के प्रचार में लगे हैं। खूब रैलियां कर रहे और तरह-तरह से सरकार पर निशाना भी साध रहे हैं। मगर, वे हैं तो राहुल गांधी ही न, सो कमोबेश अपनी विशिष्ट राजनीतिक समझ का प्रदर्शन कर ही देते हैं। चुनाव प्रचार के क्रम में पिछले दिनों वे गुजरात के वडोदरा में छात्रों को संबोधित कर रहे थे। जय शाह प्रकरण से लेकर मोदी सरकार के काम-काज और 2014 लोकसभा चुनाव में अपनी पराजय तक पर वे तरह-तरह से बोले। मगर, इन्ही सब के बीच एक ऐसी बात कह गए जिसने उनके पूरे भाषण की मिट्टीपलीद कर दी।

सांकेतिक चित्र

उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर महिलाओं के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘संघ में कितनी महिलाएं हैं। शाखा में आपने देखा है कभी महिलाओं को शॉर्ट्स में।’ इस बयान के बाद संघ-भाजपा के लोगों ने तो राहुल गांधी से माफ़ी की मांग की ही, सोशल मीडिया पर भी उनकी जमकर खिंचाई हुई। संघ की गुजरात इकाई के प्रभारी विजय ठाकरे ने संघ की महिला शाखा ‘राष्ट्र सेविका समिति’ का जिक्र करते हुए राहुल गांधी से माफ़ी की मांग की।

दरअसल राष्ट्र सेविका समिति, संघ की महिला शाखा के रूप में पिछले 81 वर्षों  से लगातार कार्य कर रही है। मौसीजी के संबोधन से प्रसिद्ध स्वर्गीय श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर इसकी संस्थापिका और प्रथम संचालिका थीं। संघ की ही तरह राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के लिए शाखा लगाना, वहां पर सेविकाओं को शारीरिक शिक्षा, बौद्धिक विकास, मनोबल बढ़ाने के लिये विविध उपक्रम शुरू करना आदि कार्य करती है।

राष्ट्र सेविका समिति की महिलाएं शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक प्रत्येक रूप से अत्यंत सशक्त, समर्थ और प्रगतिशील होती हैं। मगर, राहुल गांधी को सिर्फ इतने से संतुष्टि थोड़े मिल जाएगी, उन्हें तो संघ में महिलाएं शॉर्ट्स पहने हुए चाहिए। शायद इसके बाद ही वे मानेंगे कि संघ में महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं होता। मतलब कि उनकी नज़र में महिलाओं के प्रगतिशील होने के लिए शॉर्ट्स पहनना आवश्यक है। कहना न होगा कि राहुल गांधी का ये बयान कांग्रेस की भारतीयता से कटी हुई और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित सोच को ही दिखाता है।

नागपुर में एक मार्च के दौरान राष्ट्र सेविका समिति (साभार : इंडिया टुडे)

दूसरी चीज कि आज संघ पर महिलाओं से भेदभाव का ये फिजूल और अज्ञानतापूर्ण आरोप लगा रहे राहुल गांधी यदि अपनी पार्टी के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि उनके पिता राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए अपने पूर्ण बहुमत का दुरूपयोग कर एक मुस्लिम महिला के साथ किस तरह से क्रूरतापूर्ण अन्याय किया था। आज भाजपा सरकार ने अपने प्रयासों से न्यायालय के द्वारा उस अन्याय को समाप्त कर मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाया है। इसलिए कम से कम कांग्रेस को तो महिलाओं के साथ भेदभाव का किसीपर आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।

रहे राहुल गांधी तो उनका सबसे बड़ा संकट यह है कि वे बोलने से पहले सोचते नहीं हैं। एकबार पहले भी उन्होंने संघ को गांधी का हत्यारा बता दिया था, जिसपर जब उन्हें न्यायालय में घसीटा गया तो वहाँ अपने बयान से पलट गए। तब उनकी और कांग्रेस पार्टी की भरपूर फजीहत हुई थी। ऐसे ही, विविध विषयों से सम्बंधित उनके अनेक बयान (आलू की फैक्ट्री, गरीबी एक मनोदशा है, मंदिर में लोग छेड़खानी करने जाते हैं आदि) हैं, जिनसे उनकी और उनकी पार्टी की जब-तब भारी किरिकिरी हुई है। मगर, राहुल गांधी अबतक नहीं सुधरे हैं। इस स्थिति को देखते हुए सवाल उठता है कि राजनीति में लगभग डेढ़ दशक का समय बीता चुके राहुल गांधी बोलने से पहले सोचना कब सीखेंगे ?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)