विचित्र ही है कि दो-दो बार एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता नक्सलियों से सहानुभूति व्यक्त करने वाला बयान देता है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से उसपर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही होना तो दूर उसे एक चेतावनी तक नहीं दी जाती। फिर यदि पार्टी पर नक्सल समर्थक होने का आरोप लगता है, तो इसे गलत कैसे कह सकते हैं?
गत 3 नवम्बर को कांग्रेस नेता राज बब्बर ने एक बयान में नक्सलियों को क्रांतिकारी बताया जिसपर काफी हंगामा मचा। हालांकि बाद में उन्होंने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान का कुछ और मतलब था, लेकिन बात तो निकल चुकी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बयान के संदर्भ में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस शहरी नक्सलियों की समर्थक है।
अब पीएम के इस हमले के बाद कांग्रेस कोई जवाब देती या खुद के बचाव में कोई दलील पेश करती उससे पहले ही राज बब्बर ने एकबार फिर नक्सलियों को ‘भटका हुआ क्रांतिकारी’ बता दिया। उन्होंने रायपुर में में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि नक्सली भटके हुए क्रांतिकारी हैं। राज बब्बर के ऐसे बयानों के बावजूद कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने जो मौन धारण कर रखा है, वो हैरान करने वाला है। राहुल गांधी भी छत्तीसगढ़ में चुनावी सभा को संबोधित किए, लेकिन उन्होंने नक्सलियों पर कुछ नहीं बोला।
विचित्र ही है कि दो-दो बार एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता नक्सलियों से सहानुभूति व्यक्त करने वाला बयान देता है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से उसपर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही होना तो दूर उसे एक चेतावनी तक नहीं दी जाती। ऐसे में यदि पार्टी पर नक्सल समर्थक होने का आरोप लगता है, तो इसे गलत कैसे कह सकते हैं?
वैसे बात इतनी ही नहीं है, पिछले दिनों जब शहरी नक्सलवाद फैलाने के आरोप में पुणे पुलिस ने वामपंथी बुद्धिजीवियों को हिरासत में लिया तो कांग्रेस इसके विरोध में भी उतर पड़ी। राहुल गांधी ने इसपर ट्वीट करते हुए कहा था, ‘आज देश की हालत ऐसी है कि यहाँ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के रूप में केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही सक्रिय रह सकता है। अन्य सभी गैर सरकारी संगठनों को बंद करने की नीति अपनाई जा रही है। सरकार का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं को जेल में डालने या मारने की कुचक्र रचा जा रहा है।’
पुणे पुलिस के साक्ष्यपूर्ण दावों को नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस इस गिरफ्तारी को विरोध की आवाज दबाने की कोशिश बताती रही। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने जब इन गिरफ्तारियों पर रोक नहीं लगाईं और आरोपियों की हिरासत जारी रखी तो कांग्रेस के पास कहने को कुछ नहीं रह गया। क्या ये सब बातें नक्सलवाद पर कांग्रेस के रुख को संदिग्ध नहीं बनातीं? ऐसे में जरूरी है कि कांग्रेस के भीतर से नक्सलवाद के समर्थन में जो स्वर आ रहे हैं, वो उनपर लगाम लगाए तथा नक्सलवाद पर अपना रुख स्पष्ट करे। अन्यथा सवाल उठते रहेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)