टैंकर घोटाला, डिजिटल मार्केटिंग घोटाला, गाड़ियों के नंबर प्लेट के ठेका में घोटाला, सत्येंद्र जैन के दर्जनों घोटालों की आंच अभी धीमी पड़ी नहीं कि लालू स्टाइल एक महाघोटाला सामने आ गया। इन घोटालों ने माफीनामा लेकर घूम रहे अरविंद केजरीवाल की ईमानदार राजनीति की असलियत पूरी तरह से उजागर कर दी है।
कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश (आम आदमी पार्टी) से जनता ने उम्मीद की थी कि वह देश में शुचिता और जवाबदेही की राजनीति के एक नए युग का सूत्रपात करेगी, लेकिन वह केजरीवाल के झूठ और भ्रष्टाचार का शिकार बनकर रह गई। यही कारण है कि सरकार बनने के बाद से ही घोटाले सामने आ रहे हैं। राशन कार्ड के बदले अस्मत लूटने का कारनामा संभवत: पहली बार केजरीवाल के मंत्री ने किया होगा। इसके बाद तो घोटालों की झड़ी लग गई।
ताजा घोटाला सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किए जाने वाले राशन का है। सीएजी की रिपेार्ट के मुताबिक भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से राशन वितरण केंद्र पर 1589 क्विंटल राशन की ढुलाई के लिए आठ ऐसी गाड़ियों का इस्तेमाल किया गया, जिनका रजिस्ट्रेशन नंबर बस, टेंपो, स्कूटर और बाइक का था। इतना ही नहीं, 2016-17 में जिन 207 गाड़ियों को राशन ढुलाई के काम में लगाया गया, उनमें 42 गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन नंबर थे ही नहीं। इस प्रकार राशन घोटाले ने लालू यादव के चारा घोटाला में स्कूटर पर मरी हुई भैंस के पटना से रांची भेजने की याद दिला दी।
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 50 से ज्यादा ऐसे मामले आए हैं, जहां नियमों को ताक पर रखकर गड़बड़ी को अंजाम दिया गया। पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के मुताबिक केजरीवाल सरकार चार लाख फर्जी राशन कार्डों के जरिए हर महीने डेढ़ सौ करोड़ रूपये के अनाज की कालाबाजारी कर रही है। इतने बड़े घोटाला के उजागर होने के बावजूद ईमानदारी का ढिंढोरा पीटने वाले अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार का बचाव करते हुए पूरा दोष सिस्टम पर मढ़ रहे हैं। उनके मुताबिक पूरा राशन सिस्टम माफियाओं के नियंत्रण में है, जिन्हें नेताओं का संरक्षण मिला हुआ है। जब एक मुख्यमंत्री ऐसी हताशा भरी बात करेगा तब सिस्टम में कैसे सुधार आएगा ?
घोटालों के नित नए कीर्तिमान बनाने के साथ-साथ विरोधियों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने की नई राजनीतिक शैली के विकास का श्रेय अरविंद केजरीवाल को है। वे और उनके विधायक राजनीति में शुचिता और ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते थे, लेकिन सत्ता मिलते ही सारे आदर्श जमींदोज हो गए। चूंकि, अब केजरीवाल की झूठ की राजनीति पर से पर्दा हट रहा है, इसलिए वे माफीनामा लेकर घूम रहे हैं ताकि अदालत में चल रहे मानहानि के मुकदमों से बच सकें। अरुण जेटली के मामले में तो केजरीवाल ने अपनी पूरी टीम के साथ माफी मांगी। इस टीम में केजरीवाल के अलावा पार्टी प्रवक्ता राघव चढ्ढा, राज्य सभा सांसद संजय सिंह और आप नेता आशुतोष तथा दीपक वाजपेयी ने भी पटियाला हाऊस कोर्ट में लिखित माफीनामा सौंपा।
माफीनामा लेकर घूमने वाले केजरीवाल व उनकी उनकी टीम से सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे दिल्ली और पंजाब की जनता से अपने झूठे वायदों के लिए कब माफी मांगेंगे। पूरी दिल्ली में वाई फाई, पांच सौ सरकारी स्कूल, बीस कॉलेज बनवाने, महिलाओं की सुरक्षा के लिए बसों में सुरक्षा दस्ता तैनात करने जैसे सैकड़ों वादे करने वाले केजरीवाल अब तक एक भी वायदा पूरा नहीं कर पाए हैं। अपनी इन्हीं नाकामियों पर परदा डालने के लिए कभी वे प्रधानमंत्री को दोष देते हैं तो कभी ईवीएम को कटघरे में खड़ा करते हैं। लेकिन, ऐसा करते समय वे यह भूल जाते हैं कि इन्हीं ईलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों ने उन्हें दिल्ली में 70 में से 67 सीटों पर विजय दिलाई थी।
झूठ की राजनीति के साथ-साथ वैकल्पिक राजनीति की सशक्त धारा को राजनीतिक कवायद में बदलकर उसकी हत्या करने का श्रेय भी केजरीवाल को जाता है। अलग तरह की राजनीति और व्यवस्था बदलने का नारा लगाने वाली पार्टी अब सैकड़ों राजनीतिक दलों की भीड़ में घुलमिल गई। देश ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन और आम आदमी पार्टी में एक सपना देखा था। उस समय ऐसा लगा था कि इसे चलाने वाले ईमानदार लोग हैं और जब इनकी सरकारी आएगी तब न सिर्फ भ्रष्टाचार खत्म होगा बल्कि देश में एक नई कार्य संस्कृति का विकास होगा। दुर्भाग्यवश ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सत्ता मिलते ही केजरीवाल न सिर्फ कांग्रेसी भ्रष्टाचार के खिलाफ खामोश हो गए, बल्कि खुद उनकी पार्टी के मंत्री व विधायक भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान बनाने लगे। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि केजरीवाल भ्रष्टाचार पर कठोर रूख अपनाने की बजाय दूसरे दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार गिनाने लगे।
स्पष्ट है, आम आदमी पार्टी (आप) ने जिस शुचिता और ईमानदारी की राजनीति का आगाज किया था, वह अकाल मौत का शिकार हो गई। राजनीति की दिशा और दशा बदलने का दावा करने वाली पार्टी का इस तरह अवसान होगा यह जनता ने सोचा नहीं था। राज्य सभा चुनाव में महज 35 दिन पहले पार्टी में शामिल हुए सुशील गुप्ता को जिस दिन पार्टी ने टिकट दिया उसी दिन केजरीवाल की ईमानदार राजनीति के दावों की रही-सही विश्वसनीय भी खत्म हो गई। इससे यह सिद्ध हो गया कि व्यवस्था परिवर्तन का ख्वाब दिखाने वाली पार्टी सत्ता की राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाई।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)