संपतिया उइके को राज्यसभा भेजे जाने से देश के दलितों, आदिवासियों में यह संदेश जायेगा कि भाजपा ने आदिवासियों व वनवासियों के हित के प्रति जो बातें कही हैं, वो उनपर खरा भी उतर रही है। इससे भाजपा के प्रति निस्संदेह उनका भरोसा और बढ़ेगा। इसके अलावा इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा क्योंकि संपतिया उइके एक साधारण कार्यकर्ता थीं। किसी को भी यह अंदाज़ा नहीं था कि वह राज्यसभा जाएँगी। कई बड़े नाम सामने थे, किन्तु पार्टी ने विचार-विमर्श के उपरांत संपतिया उइके को राज्यसभा भेज आदिवासियों व वनवासियों को सम्मान देने का सराहनीय फैसला लिया।
भारतीय राजनीति के इतिहास को खंगाले तो राजनीति हो अथवा शीर्ष संवैधानिक पदों पर दलित, शोषित, वंचित, पिछड़े और आदिवासी समाज के लोगों की उपेक्षा को आसानी से देखा जा सकता है। परन्तु, आज की परिस्थिति इससे अलग है। देश के उच्च संवैधानिक पद की बात हो अथवा राजनीतिक पदों की बात हो दलित, पीड़ित अथवा आदिवासी समाज के लोगों की भागीदारी पहले की अपेक्षा बढ़ रही है। राज्यसभा चुनाव के लिए मध्यप्रदेश से एक सीट पर हुए उपचुनाव में संपतिया उइके निर्विरोध रूप से चुनाव जीतकर राज्यसभा पहुँचीं और अपने राजनीतिक जीवन के नए अध्याय को शुरू किया।
दरअसल, संपतिया उइके का राज्यसभा तक पहुँचना भारतीय राजनीति के लिए एक सुखद संकेत है और इस बात की तरफ़ इशारा कर रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दलितों, आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने की न केवल बात कर रहे बल्कि इस दिशा में गंभीर प्रयास भी कर रहे हैं।
गौरतलब है कि अनिल माधव दवे के निधन के पश्चात् यह सीट रिक्त हुई थी। यह सर्वविदित है कि अनिल माधव दवे प्रकृति प्रेमी व संवेदनशील राजनेता थे। ऐसे में भाजपा के लिए यह नैतिक प्रश्न था कि एक ऐसे व्यक्ति को इस सीट से संसद में भेजे जो संवेदनशील हो, पिछड़े, दलित, वंचित और आदिवासीयों के लिए सदैव हक की लड़ाई लड़ा हो। तमाम कयास लगाये जा रहे थे। लेकिन, एक बार फिर मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने सबको चकित करते हुए अंतिम व्यक्ति के हित-चिंतन और वनवासियों, आदिवासियों के लिए सदैव संघर्षशील रहीं संपतिया उइके को राज्यसभा भेजने का निर्णय ले लिया।
इससे सबसे पहले देश के दलितों, आदिवासियों में यह संदेश जायेगा कि भाजपा ने आदिवासियों व वनवासियों के हित के प्रति जो बातें कही हैं, वो उनपर खरा भी उतर रही है। इससे भाजपा के प्रति निस्संदेह उनका भरोसा और बढ़ेगा। इसके अलावा इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा क्योंकि संपतिया उइके एक साधारण कार्यकर्ता थीं। किसी को भी यह अंदाज़ा नहीं था कि वह राज्यसभा जाएँगी। कई बड़े नाम सामने थे, किन्तु पार्टी ने विचार-विमर्श के उपरांत संपतिया उइके को राज्यसभा भेज आदिवासियों व वनवासियों को सम्मान देने का सराहनीय फैसला लिया।
गौरतलब है कि संपतिया उइके ने ग्रामीण स्तर पर महिलाओं को जागरूक करने का अभियान समय–समय पर चलाया है। वनवासियों, आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने, उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए संपतिया उइके ने घर–घर जाकर लोगों को जागरूक किया। जिस ढंग से वे ऐसे गंभीर मुद्दे पर घर–घर पहुँचीं उससे प्रभावित होकर भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने संपतिया उइके की भरपूर सराहना की थी।
अगर हम संपतिया उइके के राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो सरपंच से उन्होंने राजनीतिक पारी की शुरुआत की, उसके पश्चात् 2004 से इस राज्यसभा निर्वाचन से पहले तक, मंडला से जिला पंचायत अध्यक्ष थीं। पंचायत से ससंद तक इन्होने अपना सफर कठिन संघर्षों व अथक परिश्रम से तय किया है। पंरतु, जिस प्रकार उनका नाम भाजपा ने आगे बढ़ाया वह भी चकित रह गईं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस बात को बखूबी जानतें है कि अगर पिछड़े, दलित, आदिवासियों को मुख्यधारा में लाना है, तो सबसे पहले संसद में उनकी भागीदारी बढ़ानी जरूरी है। देश की राजनीतिक व्यवस्था में उनकी सक्रियता बढ़े जिससे यह आदिवासियों, दलितों की समस्याएं सदन में उठा सकें।
इसीका परिणाम है कि जिन संपतिया उइके ने पंचायत स्तर से राजनीति शुरू कर आदिवासियों की समस्याओं को मुखरता से उठाया, आज भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें संसद के उच्च सदन में भेजकर यह संकेत दे दिया कि जो व्यक्ति परिश्रम की पराकाष्ठा करेगा पार्टी शीर्ष नेतृत्व द्वारा निस्संदेह उसके परिश्रम का सम्मान किया जाएगा। पहले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिए घोषित करना और अब आदिवादियों के बीच से आनेवाली संपतिया उइके को राज्यसभा भेजना यह दर्शाता है कि भाजपा दलितों, आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)