गुजरात चुनाव से पहले अचानक राहुल गांधी में इतना मंदिर प्रेम कैसे जग गया है ?

राहुल गांधी गुजरात में सॉफ्ट हिंदुत्व की चादर ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बहुसंख्यक हिन्दू वोटर कांग्रेस को हिन्दू विरोधी न मान लें। इसीलिए मंदिरों के तूफानी दौरों में लगे हैं। मगर जनता नासमझ नहीं है, जो इन दौरों का मतलब न समझे। जनता यह शायद ही भूली हो कि ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने कभी कहा था कि जो लोग मंदिर, गुरुद्वारा जाते हैं, वही लड़कियों को छेड़ते भी हैं। ऐसा बयान देने वाला नेता चुनावों के मौसम में अगर युद्ध स्तर पर मंदिरों के दौरे कर रहा तो इसका मतलब समझना किसीके भी लिए कोई राकेट साइंस नहीं है।

चुनाव के दिनों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के मंदिरों के तूफानी दौरों से वाकई कई सवाल उठते हैं। क्या राहुल अपनी “सॉफ्ट हिंदुत्ववादी” नेता की छवि बनाकर कांग्रेस को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहे हैं? मंदिर जाने के क्रम में ही राहुल गांधी ने अपनी भक्ति से जुड़ा एक खुलासा भी किया। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने उत्तरी गुजरात के शहर पाटन में कहा कि वह भगवान शिव के परम भक्त हैं और वह सच्चाई में यकीन रखते हैं। हालांकि लोगों ने राहुल को भगवान शंकर की पूजा करते कभी किसी मंदिर में देखा-सुना नहीं है। बहरहाल, शिवभक्त होना या न होना एक निजी मामला है, ऐसे में राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह से सार्वजनिक रूप से शिव भक्त होने का ढोल पीटने का क्या अर्थ है?

राहुल के इस बयान के बाद भाजपा ने उनकी शिवभक्ति और मंदिर प्रेम पर सवाल उठाने में देर नहीं लगाया। गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा कि राहुल का मंदिर प्रेम चुनाव के ठीक पहले ही क्यों जग रहा है? चुनाव से पहले उन्हें मंदिरों का ख्याल क्यों नहीं आता? बीजेपी की तरफ से राहुल पर निशाना साधते हुए यह भी कहा गया कि मंदिरों का दर्शन “स्वाभाविक कर्म” होना चाहिए, “चुनावी कर्म” नहीं!

राहुल गांधी में अचानक जगा मंदिर प्रेम

राहुल गांधी अगर बहुत मंदिर प्रेमी होते तो वह इतने सालों में दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर ज़रूर जाते, दक्षिणी दिल्ली स्थित कात्यायनी मंदिर ज़रूर जाते। लेकिन, इन मंदिरों में जाते वे कभी नहीं दिखे, मगर चुनाव के समय उनमें अचानक ही मंदिर प्रेम जग गया है। राहुल गांधी ने गुजरात के दर्जन भर से ज्यादा मंदिरों का दौरा किया है। कहना न होगा कि ऐसा करके कांग्रेस अपनी प्रचलित हो रही ‘हिन्दू विरोधी छवि’ को सुधारने का प्रयास कर रही है।

अचरज की बात है कि जिस कांग्रेस ने मोदी के स्कल कैप (नमाज के दौरान पहनी जाने वाली टोपी) न पहनने पर सवाल उठाए थे, आज उसी कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात दौरे के दौरान एक भी मस्जिद का दौरा नहीं किया है। समझा जा सकता है कि राहुल में कांग्रेस को हिंदूवादी दिखाने की अकुलाहट किस कदर है। गुजरात में चुनाव सिर पर हैं, सो वहां प्रतीकों की राजनीति भी अपने चरम पर है।

इसी तरह का प्रयास राहुल गांधी ने दिल्ली से देवरिया के बीच अपनी किसान यात्रा के दौरान किया था, जिसकी शुरुआत राहुल ने अयोध्या में हनुमानगढ़ी मंदिर जाकर की थी, उसके बाद मथुरा और फिर चित्रकूट का भी राहुल गांधी ने दौरा किया था। गुजरात में बहुसंख्यक हिन्दुओं को लुभाने के लिए राहुल गांधी की यह कवायद लोगों के समझ में तो आ रही है, लेकिन इसका चुनाव पर कितना और कैसा असर होगा, ये कहना कठिन है।

कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल कहते हैं कि राहुल गांधी ने न सिर्फ हिन्दू मंदिरों का बल्कि जैन मंदिरों और गुरुद्वारों का भी दौरा किया है। कांग्रेस एक सेक्युलर पार्टी है, वह सभी धर्मों का बराबर सम्मान करती है। हालांकि मंदिरों में जाने की काग्रेसी उपाध्यक्ष की इस ‘अचानक’ जगी ललक का किसी कांग्रेसी नेता के पास शायद ही कोई जवाब हो।

कांग्रेस सोशल मीडिया के ज़रिये राहुल गांधी के मंदिर दौरों की तस्वीरे फैलाकर उनको एक ऐसे सर्वमान्य नेता के तौर पर प्रचारित करने में लगी हुई है, जो सभी धर्मों का सम्मान करता है। राहुल गांधी गुजरात में सॉफ्ट हिंदुत्व की चादर ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बहुसंख्यक हिन्दू वोटर कांग्रेस को हिन्दू विरोधी न मान लें। मगर जनता नासमझ नहीं है, जो इन दौरों का मतलब न समझे। जनता यह शायद ही भूली हो कि ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने कभी कहा था कि जो लोग मंदिर जाते हैं, वही लड़कियों को छेड़ते हैं। ऐसा बयान देने वाला नेता चुनावों के मौसम में अगर युद्ध स्तर पर मंदिरों के दौरे कर रहा तो इसका मतलब समझना किसीके भी लिए कोई राकेट साइंस नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)