मोदी की कार्यशैली ही है कि भारत ने ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व ने उनका लोहा माना है। बहरीन, मालदीव, संयुक्त अरब अमीरात, फिलिस्तीन, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, रूस ने मोदी को सर्वोच्च सम्मानों से नवाज़ा है। जिस अमेरिका ने कभी उनको वीजा देने से मना किया था, वह आज उनकी बार-बार तारीफ करता है। मोदी अमेरिका में जाकर इतनी बड़ी रैली करते हैं, जितनी बड़ी रैली वहा का कोई स्थानीय नेता भी ना कर सके।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि एक राजनीतिक दल अपने बलबूते पर केंद्र में सरकार बना सकता है। अधिकतर राजनीतिक विश्लेषक और समीक्षक तो यह कहते थे कि आने वाले 25 से 30 वर्ष तक केंद्र में गठबंधन की सरकारें ही आएंगी। लेकिन इन सब अनुमानों और कयासों को गलत साबित करने का साहस यदि किसीमे था तो वो थे उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री और आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
13 सितम्बर 2013 को नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर भाजपा ने घोषित किया था। मोदी ने प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनते ही सबसे पहले नारा दिया 272 प्लस, उनका लक्ष्य साफ़ था पूर्ण बहुमत वाली सरकार।
मोदी के इस नारे का मज़ाक और मखौल खूब उड़ाया गया। लेकिन नरेंद्र मोदी ने वो कर दिखाया जो शायद उनके शुभचिंतको ने भी नहीं सोचा था। 1984 के लोकसभा चुनावों के बाद पहली बार 2014 में ऐसा हुआ कि एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला। तीन दशकों बाद ऐसा कुछ हुआ था। लेकिन मोदी ने जीत को अपनी जीत नहीं, संगठन और पार्टी की जीत माना और बाकि सब इतिहास है।
मोदी की राजनीतिक यात्रा को देखें तो इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया, जब संगठन के सालों के अनुभव के बाद उनको गुजरात की सत्ता संभालने का दायित्व मिला। अक्टूबर 2001 में वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने और पार्टी को 2002 के चुनावों में विजयी बनाया। उसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
अपनी नीतियों से उन्होंने गुजरात को विकास का एक मॉडल ही बना दिया। गुजरात निवेशकों की पहली पसंद बन गया। वाइब्रेंट गुजरात की शुरुआत की जिससे मोदी और गुजरात की बात देश में ही नहीं, विदेशों में भी होने लगी। जाति और क्षेत्रवाद को पीछे करते हुए विकास को राजनीती का मुख्य बिंदु बनाया। 2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव भी जीते और गुजरात मॉडल की चर्चा देश भर में चलने लगी।
अब बात दिल्ली आने की थी, लेकिन राह आसान नहीं थी। एक तरफ विपक्ष के आरोप तो दूसरी तरफ दिल्ली का नया अनुभव लेकिन मोदी के साहस, संयम और संकल्प में कमी नहीं थी। किसी ने ”मौत का सौदागर” कहा तो किसी ने ”नीच” , मोदी ने कभी जवाब नहीं दिया बल्कि जवाब दिया उनके समर्थकों ने। अद्भुत जनसमर्थन के साथ वे 2014 का लोकसभा चुनाव जीते। दिल्ली आये तो सीधा प्रधानमंत्री बनके। न पहले विधायक का अनुभव था न अब सांसद का, लेकिन जनता का मन और ह्रदय मोदी जरूर जानते थे, जो हुनर उन्होंने लम्बे सामाजिक जीवन से अर्जित किया है।
अब बारी देश के लिए काम करने की थी और मोदी ने जन साधारण के लिए योजनओं की झड़ी लगा दी। आज़ादी के बाद लगभग 70 साल बीत जाने पर भी देश की करोड़ों की आबादी बैंकिंग व्यवस्था से अछूती थी और अधिकांश जनता के पास एक बैंक बचत खाता तक नहीं था। अतः जनधन योजना से करोड़ों भारतीयों को बैंकिंग व्यवस्था से सीधे जुड़ने का मौका मिला।
उज्ज्वला योजना, जनसुरक्षा योजना, मुद्रा योजना, सॉयल हेल्थ कार्ड योजना, उजाला योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, ‘गरीब’ सवर्णों को आरक्षण बिल, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया आदि तमाम योजनाओं के जरिये मोदी जनकल्याण के मार्ग पर चल पड़े।
यह मोदी का ही करिश्मा था जिसके कारण भाजपा को उन राज्यों में भी सरकार बनाने का मौका मिला जहा वो सीधा विपक्ष की भूमिका में भी नहीं थी। हरियाणा, असम, त्रिपुरा अरुणाचल प्रदेश में पहली बार भाजपा की मजबूत सरकार बनी तो वहीं उत्तर प्रदेश में भी वर्षो बाद वापसी हुई। बंगाल और दक्षिण भारत में पार्टी पहले से कही अधिक मजबूत हुई।
2019 आते-आते एक बार फिर मोदी को अग्नि परीक्षा से गुजरना था और इसबार वह पहले से कही ज्यादा सीट जीतकर पुनः प्रधानमंत्री बने। आते ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया। देश के सबसे बड़े कानूनी विवाद, अयोध्या विवाद का हल भी मोदी सरकार 2.0 के पहले वर्ष में ही हो गया।
मोदी की कार्यशैली ही है कि भारत ने ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व ने उनका लोहा माना है। बहरीन, मालदीव, संयुक्त अरब अमीरात, फिलिस्तीन, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, रूस ने मोदी को सर्वोच्च सम्मानों से नवाज़ा है। जिस अमेरिका ने कभी उनको वीजा देने से मना किया था, वह आज उनकी बार-बार तारीफ करता है। मोदी अमेरिका में जाकर इतनी बड़ी रैली करते हैं, जितनी बड़ी रैली वहा का कोई स्थानीय नेता भी ना कर सके।
मोदी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए 20 वर्ष पूरे कर चुके हैं। आज भी चुनौतियां उनके सामने कम नहीं हैं। लेकिन उनकी ताकत उन्हें प्राप्त विशाल जनसमर्थन है जो उन्होंने प्रमाणिकता से पाया है और यह जनता का उनके ऊपर विश्वास ही है, जिसके कारण वह एक चाय बेचने वाले से आज विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का सर्वोच्च नेता बनने तक का सफर तय कर पाए हैं।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैंI प्रस्तुत विचार उनके निजी हैंI)