बैड बैंक एनपीए खातों में से वसूली करके पूँजी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने का काम करेंगे। पूँजी होने पर ही बैंक जरूरतमंदों को ऋण दे सकते हैं। इसी वजह से बैड बैंक की जरूरत बैंकिंग क्षेत्र में एक लंबे समय से महसूस की जा रही थी।माना जा रहा है कि इस बैंक के अस्तित्व में आने के बाद, बैंक अपने कारोबार को बढ़ाने की तरफ ध्यान दे सकेंगे। साथ ही, ग्राहक सेवा में भी सुधार कर सकेंगे, जिससे बैंकों के मुनाफे में वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ ग्राहकों, निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों का भरोसा भी उनपर बढ़ेगा।
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश किये गये बजट में बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिये बैड बैंक बनाने की घोषणा की गई है, जो समय की मांग है, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से आमजन और कारोबारियों की आय में भारी कमी आई है और इस वजह से वे ऋण की किस्त एवं ब्याज चुकाने में असमर्थ हैं। इससे बैंकों के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में भारी-भरकम इजाफा होने की संभावना है।
बैड बैंक बनाने के आलोक में सरकार परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) एवं परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) का गठन करेगी। एआरसी और एएमसी का उद्देश्य बड़े दबावग्रस्त ऋण खातों का समाधान प्रस्तुत करना है, जिनका एक्सपोजर एक से अधिक बैंकों में है। एआरसी दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान के लिए काम करेगा, जबकि एएमसी दबावग्रस्त परिसंपत्तियों का मूल्यांकन, विपणन, परिसंपत्ति की वास्तविक मूल्य की वसूली आदि काम करेगा।
बैड बैंक में सरकार कोई निवेश नहीं करेगी और न ही इसमें सरकार की शेयरहोल्डिंग होगी। बैड बैंक बाजार भाव पर बैंकों से उनका डूबा कर्ज खरीदेगा, जिससे अधिक एनपीए वाले बैकों की बैलेंसशीट अच्छी हो जायेगी और उन्हें अपने कारोबार के लिए पूँजी जुटाने में आसानी होगी।
बैड बैंक के कई मॉडल हो सकते हैं। सभी सरकारी बैंकों के लिए एक बड़ा बैड बैंक हो सकता है या फिर एक की जगह, कई बैड बैंक बनाये जा सकते हैं। फिर भी, मौजूदा परिवेश में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह बैंक 15:85 मॉडल पर काम करेगा और इसमें सभी बैंकों के एनपीए खातों को एक प्लेटफॉर्म पर लाया जायेगा।
इस मॉडल के तहत बैड बैंक से एनपीए वाले बैंक 15 प्रतिशत नकदी के रूप में अपफ्रंट भुगतान हासिल करेंगे, जबकि 85 प्रतिशत बैड बैंक को मिलेगा। इस बैंक में शुरुआत में 2 से 2.25 लाख करोड़ रुपए तक की एनपीए राशि शामिल की जा सकती है और इसकी स्थापना 2 से 3 महीनों के अंदर किये जाने का अनुमान है।
बैड बैंक के अनेक फायदे हैं। इस बैंक के अस्तित्व में आने पर बैंक गुणवत्तायुक्त परिसंपत्ति पर विशेष ध्यान दे पायेंगे, जिससे स्टैंडर्ड खातों के एनपीए में तब्दील होने की संभावना कम हो जायेगी। बैलेंस शीट के साफ-सुथरा होने से रेटिंग एजेंसियों, देसी व विदेशी निवेशकों, जमाकर्ताओं आदि पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और बैंक अपने कारोबार को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर सकेंगे।
वित्त वर्ष 2017-18 तक एनपीए का स्तर 11 प्रतिशत के स्तर पर था। हालांकि, सामान्य तौर पर हुई एनपीए की वसूली और ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की मदद से हुई एनपीए की वसूली से वित्त वर्ष 2019-20 में एनपीए का स्तर घटकर 8.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में ऋण पुनर्गठन और ऋण के किस्त एवं ब्याज के भुगतान पर लगे रोक से बैंकों को एनपीए के मद में बड़ी राशि का प्रावधान करना पड़ा है। चार फरवरी, 2021 को भारतीय स्टेट बैंक ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के वित्तीय परिणामों की घोषणा की, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक का एकल शुद्ध लाभ 7 प्रतिशत कम होकर 5,196.22 करोड़ रूपये रहा, जबकि पिछले वित्त वर्ष में अक्टूबर से दिसंबर तिमाही में भारतीय स्टेट बैंक का शुद्ध लाभ 5,583.36 करोड़ रूपये रहा था।
कोरोना महामारी से बैंकों के परिचालन लाभ का लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित हुआ है। हालांकि, यह प्रभाव सभी बैंकों के लिए उनके सेगमेंट, ग्राहक आधार और आंतरिक जोखिम आकलन के अलावा मार्च 2020 तिमाही में किये गये कोरोना महामारी से संबंधित प्रावधान की मात्रा आदि के आधार पर अलग-अलग है।
सकल एनपीए, जो मार्च 2018 में 12.5 प्रतिशत था, वह मार्च 2019 में कम होकर 9.7 प्रतिशत हो गया और सितंबर 2019 में 9.3 प्रतिशत तथा मार्च 2020 में महज 8.5 प्रतिशत रह गया, लेकिन स्थिति फिर न बिगड़े इसके लिए कदम उठाना जरूरी था।
निजी बैंक पूंजी बढ़ा चुके हैं या पूँजी बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। सरकार, सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण करने के लिए कोशिश कर रही है, लेकिन सभी कमजोर बैंकों का पुनर्पूंजीकरण करना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में जिन बैंकों को पूंजी नहीं मिलेगी, उनकी वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है।
एनपीए की वसूली में तेजी लाने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ढांचे को और मजबूत करने और दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के तेजी से समाधान के लिए ई-कोर्ट प्रणाली शुरू करने की घोषणा बजट में की गई है। इस नई संकल्पना की मदद से अदालत में चल रहे वादों का जल्दी निपटारा किया जायेगा, जिससे बैंकों के एनपीए स्तर में कमी आयेगी।
सूक्ष्म, लघु, मध्यम एवं मझौले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के एनपीए की वसूली के लिए सरकार एक अलग ढांचा बनायेगी, क्योंकि 31 मार्च 2021 से एमएसएमई क्षेत्र के एनपीए के नये मामलों के एनसीएलटी में दर्ज करने पर लगी पाबंदी को हटाने का प्रस्ताव है। मौजूदा प्रावधान की वजह से एनपीए की वसूली में कमी आई है, लेकिन नये प्रस्ताव से इसमें तेजी आयेगी की उम्मीद है।
फिलहाल, सरकारी बैंकों का प्रोविज़न कवरेज अनुपात 86 प्रतिशत है, जो वर्ष 2018 में 62 प्रतिशत था। इससे पता चलता है कि दबावग्रस्त परिसंपत्ति में वृद्धि होने की वजह से सरकारी बैंकों को एनपीए के मद में ज्यादा राशि का प्रावधान करना पड़ रहा है, जिससे बैंकों का मुनाफा प्रभावित हो रहा है साथ ही साथ उनके कारोबार में भी इजाफा नहीं हो पा रहा है। इसलिये, बैड बैंक के गठन के बाद दबावग्रस्त परिसंपत्तियों को तुरंत बैड बैंक में स्थानांतरित करना बैंकों और सरकार दोनों के लिये मुफीद होगा।
अर्थव्यवस्था के विकास में मूल बाधा पूँजी की कमी है और बैड बैंक एनपीए खातों में से वसूली करके पूँजी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने का काम करेंगे। पूँजी होने पर ही बैंक जरूरतमंदों को ऋण दे सकते हैं। इसी वजह से बैड बैंक की जरूरत बैंकिंग क्षेत्र में एक लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
माना जा रहा है कि इस बैंक के अस्तित्व में आने के बाद, बैंक अपने कारोबार को बढ़ाने की तरफ ध्यान दे सकेंगे। साथ ही, ग्राहक सेवा में भी सुधार कर सकेंगे, जिससे बैंकों के मुनाफे में वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ ग्राहकों, निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों का भरोसा भी उनपर बढ़ेगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।