भारत की क्रय क्षमता के आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय करीब 4.55 लाख रुपये पहुंच गई है, जो पिछले साल से 23,470 रुपये अधिक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के साथ-साथ ऑक्सफर्ड पॉवर्टी ऐंड ह्यूमन डिवेलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में परंपरागत तौर पर कमजोर तबके के लोग सबसे तेज गति से विकास कर रहे हैं।
वित्त वर्ष 2005-06 से लेकर 2015-16 के दौरान यानी 10 सालों में गरीबी दर घटकर आधी रह गई है। गरीबी दर पहले 55 प्रतिशत थी, जो घटकर अब 28 प्रतिशत हो गई है। गरीबी मापने वाले सूचकांक में आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण आदि 10 संकेतकों को शामिल किया जाता है। गरीबी मापने वाले सूचकांक के अनुसार इन 10 सालों में 27.1 करोड़ लोग गरीबी की दलदल से बाहर निकले हैं। मुस्लिम, दलित और अनुसूचित जनजाति के लोगों ने सबसे ज्यादा विकास किया है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक विगत दशक में भारत में गरीब तबके के लोगों की स्थिति में तेज गति से सुधार हुआ है। भारत में रहनेवाले कुल गरीबों की आधी आबादी यानी 19.6 करोड़ लोग केवल चार राज्यों मसलन, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में रहते हैं। दिल्ली, केरल और गोवा में इनकी संख्या सबसे कम है। 41 प्रतिशत भारतीय बच्चे या 10 साल से कम उम्र के हर 5 में से 2 बच्चे गरीब हैं, जबकि एक चौथाई या 24 प्रतिशत वयस्क, जिनकी उम्र 18 से 60 साल के बीच है गरीब हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2005-06 में भारत में गरीबों की संख्या 63.5 करोड़ थी, जो 2015-16 तक घटकर 36.4 करोड़ रह गई अर्थात कुल 27.1 करोड़ लोग गरीबी के दलदल से बाहर निकले। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 1990 से वर्ष 2017 के बीच सकल राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय में 266.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
भारत की क्रय क्षमता के आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय करीब 4.55 लाख रुपये पहुंच गई है, जो पिछले साल से 23,470 रुपये अधिक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के साथ-साथ ऑक्सफर्ड पॉवर्टी ऐंड ह्यूमन डिवेलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में परंपरागत तौर पर कमजोर तबके के लोग सबसे तेज गति से विकास कर रहे हैं।
क्रेडिट सुइस 2018 की ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार भारत में करोड़पतियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। वित्त वर्ष 2017-18 में नये करोड़पतियों की संख्या में 7,300 की वृद्धि हुई है। अब देश में करोड़पतियों की संख्या 3.43 लाख हो गई है, जिनके पास तकरीबन 6 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 441 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नये बने करोड़पतियों में से 3,400 के पास 368 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है, जबकि 1500 के पास 736 करोड़ रुपये की संपत्ति है।
वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान देश में प्रति वयस्क संपत्ति 7,020 डॉलर पर बनी रही। भारत में लोगों की व्यक्तिगत सम्पत्ति जमीन-जायदाद और अन्य अचल सम्पत्तियों के रूप में है। पारिवारिक संपत्तियों में ऐसी संपत्ति का हिस्सा 91 प्रतिशत है। गरीबी मापने वाले सूचकांक में आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण आदि मेँ सुधार होना आम आदमी के आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त होने का संकेत है, तो करोड़पतियों की संख्या में इजाफा होना देश में कारोबारी माहौल के बेहतर होने का संकेत है।
निश्चित तौर पर गरीबी का कम होना और करोड़पतियों की संख्या में इजाफा होना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन बातों की पुष्टि देश के बाहर की एजेंसियां कर रही हैं। इसलिये, बेहतर हुए आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को आंकड़ों की बाजीगरी तो कदापि नहीं कह सकते हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)