सामान्य आवागमन के साथ-साथ रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है बोगीबील सेतु

यह  देश का सबसे लंबा और एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल सड़क सेतु है। बोगीबील सेतु असम के धीमाजी जिले को डिब्रूगढ़ से जोड़ता है। इसके बन जाने से अरुणाचल प्रदेश से चीन की सीमा तक सड़क एवं रेल से पहुंचना एवं रसद भेजना आसान हो जाएगा।

दशकों से लंबित अनेक परियोजनाओं को नरेंद्र मोदी ने अपने एक कार्यकाल में ही अंजाम तक पहुँचाया है। इस फेहरिस्त में एक नया नाम जुड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बना भारत का सबसे बड़ा रेल व सड़क सेतु राष्ट्र को समर्पित किया। यह परियोजना दो दशक से लंबित थी।

यूपीए सरकार को एकमुश्त दो कार्यकाल मिले थे। वह चाहती तो ऐसी अनेक परियोजनाओं को परवान चढ़ा सकती थी, लेकिन उसकी सुस्त कार्यशैली के चलते ऐसा नहीं हो सका। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री को सोने नहीं देंगे। यदि मनमोहन सिंह सरकार में वह इतना जोश दिखाते तो शायद उनकी सरकार में इतनी परियोजनाएं लंबित नहीं रह जातीं। देश के हजारों करोड़ रुपये की बचत होती।

यूपीए सरकार ने इसका रणनीतिक महत्व अपने पहले कार्यकाल में ही स्वीकार कर लिया था। लेकिन दूसरे कार्यकाल तक पर्याप्त कार्य नहीं हो सका। यह ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर रहने वाले लोगों को होने वाली असुविधाओं को काफी हद तक कम कर देगा। 

साभार : नवभारत

इसके निर्माण में रक्षा जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखा गया। चीन अपनी सीमा पर ढांचागत सुविधाओं का विस्तार कर रहा था। ऐसे में भारत को भी तैयारी करने की आवश्यकता थी। लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार की कार्यशैली में ऐसी तेजी कभी नहीं रही।नरेंद्र मोदी ने चीन की चुनौती को स्वीकार कर उसके अनुरूप अपनी तैयारियों को तेज किया है। योजनाओं को समयबद्ध ढंग से पूरा किया। इस क्रम में यह सेतु सुरक्षा बलों और उनके उपकरणों के तेजी से आवागमन की सुविधा प्रदान करके पूर्वी क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूती देगा।

इसका निर्माण इस तरह से किया गया है कि आपात स्थिति में एक लड़ाकू विमान भी इस पर उतर सके। चीन के साथ भारत की करीब चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा का पचहत्तर प्रतिशत हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में है। यह पुल भारतीय सेना के लिए सीमा तक आवागमन में बहुत सहायक होगा।

नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर के विकास और शेष भारत से उसके सम्पर्क को बढ़ाने का अभियान चलाया। सड़क, सेतु, हवाई सेवा, रेल आदि से संबंधित परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है। अब असम और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर और दक्षिण तट के बीच संपर्क आसान हो जायेगा। इससे अरुणाचल प्रदेश के अंजाव, चंगलांग, लोहित, निचली दिबांग घाटी, दिबांग घाटी और तिरप के दूरस्थ इलाके लाभान्वित होंगे।

यह  देश का सबसे लंबा और एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल सड़क सेतु है। बोगीबील सेतु असम के धीमाजी जिले को डिब्रूगढ़ से जोड़ता है। इसके बन जाने से अरुणाचल प्रदेश से चीन की सीमा तक सड़क एवं रेल से पहुंचना एवं रसद भेजना आसान हो जाएगा।

1997 में इसके महत्व को सरकार ने स्वीकार किया था। उस समय देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पर ध्यान दिया। उन्होंने तकनीकी और प्राकृतिक कठिनाइयों को दूर करने की दिशा में कार्य प्रारंभ कराया। लेकिन 2004 में उनकी सरकार गिर गई।

नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि अटल जी को दुबारा सरकार बनाने का अवसर मिलता तो यह पुल 2008 तक बनकर तैयार हो जाता। ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी और उत्तरी की रेलवे लाइनें आपस में जुड़ गई हैं। ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे पर मौजूद धमाल गांव और तंगनी रेलवे स्टेशन भी तैयार हो चुके हैं। डिब्रूगढ़ और अरुणाचल प्रदेश  की दूरी सौ किलोमीटर और ईटानगर के लिए रोड की दूरी डेढ़ सौ किमी कम हुई है।

इस सेतु के साथ कई संपर्क सड़कों तथा लिंक लाइनों का निर्माण भी किया गया है। इनमें ब्रह्मापुत्र के उत्तरी तट पर ट्रांस अरुणाचल हाईवे तथा मुख्य नदी और इसकी सहायक नदियों जैसे दिबांग, लोहित, सुबनसिरी और कामेंग पर नई सड़कों तथा रेल लिंक का निर्माण भी शामिल है। असम से कोयला, उर्वरक आदि की रेल से सप्लाई उत्तर व शेष भारत को होती है। पंजाब, हरियाणा से यहां अनाज आता है। इस पुल के बनने से परिवहन में बहुत बचत होगी। व्यापार की यह सुगमता लोगों के बीच संवाद भी बढ़ाएगी।

मोदी  सरकार ने पूर्वोत्तर में विकास की अनेक योजनाएं लागू की है। प्रदेशों में भाजपा सरकार बनने से कार्यो  में गति आ गई है। पूर्वोत्तर में सड़कों के निर्माण की करीब दो सौ परियोजनाएं, रेलवे की बीस परियोजनाएं चल रही हैं।  तेरह नई रेल लाइनें बिछाने का कार्य प्रगति पर है। 

पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को रेल मार्ग से जोड़ा जा रहा है। अभी सिर्फ तीन राज्यों की राजधानियां ही रेल लाइन से जुड़ी हुई हैं। जाहिर है कि एक पुल का ही पूर्वोत्तर में उद्घाटन नहीं हुआ है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता अखंडता के विचार की प्रतिष्ठा प्रतीक है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)