सत्ता के लिए आपस में लड़ने वाले पिता और पुत्र जब एक दूसरे के ही नहीं हो सके, तो वे आखिर जनता के कैसे हो सकते हैं। पता नहीं, समाजवादी पार्टी और अपराध का आपस में कैसा नाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अखिलेश हमेशा दुष्कर्म के आरोपी मंत्री गायत्री प्रजापति को बचाते नज़र आए और अब यह कैग की रिपोर्ट आई है जो उनके शासन में जनता के पैसे के बंदरबांट की कहानी कहती है।
उत्तर प्रदेश से अखिलेश राज के एक बड़े घोटाले की आहट सुनाई दे रही है। बताया जाता है कि ये घोटाला 97 हजार करोड़ रुपए का है जो कि अपने आप में बहुत बड़ी राशि है। देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी सीएजी (कैग) की रिपोर्ट में यह गड़बड़ी उजागर हुई है। अधिक चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस राशि के खर्च का कोई हिसाब अभी तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। यानी 97 हजार करोड़ रुपए की रकम कहां खपा दी गई, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी कहीं दर्ज ही नहीं हो पाई है। जिन कथित कार्यों के लिए यह धनराशि का उपयोग किया गया, उसका उपयोगिता प्रमाण-पत्र अभी उपलब्ध ही नहीं कराया गया है।
सबसे अधिक गड़बड़ी समाज कल्याण, शिक्षा व पंचायती राज विभाग में देखने में आई है जहां इन विभागों के तकरीबन 25 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, लेकिन इसकी रिपोर्ट सरकार के समक्ष प्रस्तुत ही नहीं की गई। असल में पिछले महीने कैग की एक रिपोर्ट आई थी, उसमें इस घोटाले का खुलासा हुआ है।
चूंकि नियमानुसार खर्च की गई धनराशि का कोई उपयोगिता प्रमाण-पत्र सामने नहीं आया है, ऐसे में उक्त राशि के दुरुपयोग की आशंका गहराती है। अब यहां उल्लेखनीय बात यह है कि यह तमाम अनियमितता उत्तर प्रदेश की पिछली राज्य सरकार यानी अखिलेश यादव के कार्यकाल की है जो अब सामने आ रही है।
एक बड़ी राशि का हिसाब कैग को न मिलना और अखिलेश राज में बिना यूटिलिटी सर्टिफिकेट के बजट जारी हो जाना यही इंगित करता है कि हो न हो एक बड़े घोटाले को चुपचाप होने दिया गया। यदि यह घोटाला नहीं है तो क्या वजह हो सकती है कि ऑडिट दल को इसकी बुनियादी जानकारियां भी ना दी जाएं। असल में उत्तर प्रदेश की सत्ता में लंबे समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार के ये दुष्परिणाम हैं जो इस प्रकार उजागर हो रहे हैं।
उक्त आर्थिक अनियमितता मार्च 2017 तक प्रदेश में हुए व्यय की जांच करने पर ज्ञात हुई, जबकि इससे दो साल पहले 2015 में धड़ल्ले से कई कार्यों के उपयोगिता प्रमाण-पत्र जमा नहीं हुए। मार्च 2017 में ही उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए थे और जनता ने बहुमत से योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुना था। यानी ये सारी गड़बड़ी योगी के पदभार संभालने के पहले के समय की है।
अखिलेश यादव की सरकार को उप्र के मतदाताओं ने किस तेजी के साथ खारिज किया, यह तो सभी जानते हैं। यह अलग बात है कि जनता द्वारा सत्ता से हटा दिए जाने के बाद जब कोर्ट ने बँगला खाली करने का आदेश सुनाया तो अखिलेश अपनी खीझ सरकारी बंगले पर उतारकर गए और जाते-जाते बंगले को तहस-नहस कर दिया।
दरअसल सत्ता के लिए आपस में लड़ने वाले पिता और पुत्र जब एक दूसरे के ही नहीं हो सके, तो वे आखिर जनता के कैसे हो सकते हैं। पता नहीं, समाजवादी पार्टी और अपराध का आपस में कैसा नाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अखिलेश हमेशा दुष्कर्म के आरोपी मंत्री गायत्री प्रजापति को बचाते नज़र आए और अब यह कैग की रिपोर्ट आई है जो उनके शासन में जनता के पैसे के बन्दरबाँट की कहानी कहती है।
ऐसा नहीं है कि कैग ने यूपी सरकार से कोई संवाद नहीं किया। तथ्य बताते हैं कि कई बार उपयोगिता प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराने की बात संज्ञान में लाने के बावजूद कोई सुधार नहीं किया गया। हैरत तो यह है कि पिछला अनुदान खर्च न हो पाने के बावजूद शासन ने कई विभागों को बजट आवंटित कर दिया जो कि नियम का उल्लंघन है। जाहिर है, दाल में सब काला ही काला है।
मुलायम हों या अखिलेश, समाजवादी पार्टी के है। अब जब कैग की रिपोर्ट में यह घोटाला सामने आ रहा है तो ऐसे में बड़बोले अखिलेश की सिट्टी-पिट्टी गुम है और उन्हें जवाब नहीं सूझ रहा। क्या कारण है कि सरकार के पास उस पैसे का ही हिसाब नहीं है जो सरकारी योजनाओं के लिए ही जारी की गई थी। कैग की सजगता है कि उसने इस गड़बड़ी को पकड़ लिया और समय रहते उजागर कर दिया। उम्मीद है कि इस घोटाले की निष्पक्ष जांच होगी और जनता की अमानत में खयानत करने के दोषियों को इसका दंड भी भुगतना पड़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)