लगातार खोते जनाधार, पार्टी की अंर्तकलह, नौकरशाही से बिगड़ते संबंध और विभिन्न शख्सियतों से माफी मांगने की शर्मनाक स्थिति के बाद अब कैग की रिपोर्ट आने के बाद भी अरविंद केजरीवाल यदि आत्ममंथन नहीं करते हैं, तो यह मान लेना चाहिए कि वे खुद ही अपनी ताबूत में कील ठोंक रहे हैं। कैग की रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि आम आदमी पार्टी की कथनी एवं करनी का अंतर उसकी सरकार में भी पूरी तरह से कायम है और जनता के हितैषी होने का दावा करते नहीं थकने वाली इस पार्टी ने जनता के हक पर ही डाका डाल दिया है।
कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट में गंभीर खुलासे सामने आए हैं। इस खुलासे से बहुत सारी चीजें सार्वजनिक प्रकाश में आ गईं जो अभी तक दबे-छिपे रूप से संचालित हो रही थीं। आम आदमी पार्टी की सरकार इस रिपोर्ट के आने के बाद मुश्किल में फंसती नज़र आ रही है। यह मुश्किल भी छोटी-मोटी नहीं, बड़ी और निर्णायक है; क्योंकि, भाजपा एवं कांग्रेस दोनों दलों ने अब आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वैसे तो रिपोर्ट में दिल्ली में राशन को लेकर बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है, लेकिन केवल राशन ही नहीं, ऐसे कई और मामले भी सामने आए हैं जहां अनियमितताएं पाई गयी हैं।
अनुमान के अनुसार कैग की रिपोर्ट में अभी तक 50 से अधिक ऐसे प्रकरण प्रकाश में आए हैं, जहां कानून, नियमावली की धज्जियां उड़ाते हुए धड़ल्ले से गड़बड़ियाँ की गयीं हैं। निश्चित ही इस पार्टी के लिए अब कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। लगातार एवं हर मोर्चे पर अपयश, विपन्नता, पतन और पराजय का सामना कर रही आम आदमी पार्टी का यह अधोगमन अचानक या संयोगवश नहीं, बल्कि सायास अर्जित है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। विडंबना की बात तो यह है कि ऐसी जगहंसाई के बावजूद पार्टी के मुखिया एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यूं जता रहे हैं मानो वे बहुत निष्कलंक हैं और इतनी फजीहत के बावजूद उनके कानों पर पर जूं तक नहीं रेंग रही।
घोटालों की मानो पोटली खुल गई हो और उसमें से धड़ाधड़ गड़बड़झाले सामने आ रहे हैं, ऐसे में भी केजरीवाल अपने आप को बचाने व दूसरों पर दोषारोपण करने की बचकानी और हास्यास्पद करतूतें कर रहे हैं। हालांकि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने औपचारिकतावश ही सही, लेकिन इतना तो कहा ही है कि घोटालों के आरोपियों के खिलाफ कदम उठाए जाएंगे, लेकिन केजरीवाल तो अभी भी सतही और बेसिर-पैर के हथकंडे अपनाने की नासमझी से उबर ही नहीं पा रहे। वे उपराज्यपाल पर सारा दोष मढ़कर खुद पाक साफ बच निकलने की फिराक में हैं। हालांकि अन्य राजनीतिक दलों को इस बात से कोई फर्क पड़ता नहीं नज़र आ रहा है कि अरविंद केजरीवाल क्या दलीलें दे रहे हैं, क्योंकि लोगों ने उन्हें गंभीरता से लेना बहुत पहले ही छोड़ दिया था।
जहां एक तरफ दिल्ली में सांसद मीनाक्षी लेखी ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रदर्शन किया और इस्तीफे की मांग की, वहीं कांग्रेस की तरफ से भी ऐसी ही मांग उठती नजर आ रही है। कांग्रेस भी केजरीवाल से इस्तीफे की मांग कर रही है। सत्तारूढ़ एवं विपक्ष, दोनों दलों का विरोध झेलने के बाद भी केजरीवाल आरोप लगाने की गंदी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं।
यह सब मुसीबतें यूँ ही नहीं हैं, बल्कि इस पार्टी द्वारा खुद ही कमाई हुई हैं, जो अब एक के बाद एक प्रकट हो रही हैं। राशन घोटाला तो जर्बदस्त सुर्खियों में है। फर्जी राशन कार्ड की भरमार से किनके हित साधने की कुत्सित कोशिशें की गईं, यह सब रिपोर्ट ने उजागर कर दिया है। रही सही कसर आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने पूरी कर दी। वे खुद भी इस फजीहत अभियान में शामिल हो गए और ट्वीट करके विस्तार से सभी को जानकारी दे दी।
कपिल ने लिखा है कि 4 लाख फर्जी राशन कार्ड बनाकर करीब डेढ़ सौ रुपए हर माह का राशन ठिकाने लगाया गया है। दो माह पहले ही 4 लाख फर्जी राशन कार्डों की धरपकड़ की गई थी। यह तो हुई तथ्यात्मक बात, लेकिन कैग की रिपोर्ट में सोचने की बात तो यह है कि सामान्य रूप से राशन कार्ड परिवार की महिला सदस्यों के नाम के आधार पर ही तैयार किया जाता है, लेकिन 12 हजार से अधिक प्रकरण ऐसे निकले हैं, जिसमें परिवार में एक भी महिला सदस्य नहीं थी। कुछ परिवारों यह अवस्था संभव है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर ऐसा होना गले नहीं उतरता।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि राशन के परिवहन के लिए 42 वाहन पंजीकृत ही नहीं थे। आठ वाहन ऐसे थे, जिन्होंने 1500 क्विंटल से अधिक के राशन का परिवहन किया, लेकिन उनके आरटीओ रजिस्ट्रेशन क्रमांक बस और दोपहिया वाहन के पाए गए। सबसे मज़े की बात तो यह निकली कि जितने भी राशन कार्ड धारक थे, उन्हें मोबाइल पर एसएमएस भेजे जाने थे, लेकिन करीब ढाई हज़ार मामलों में स्वयं दुकानदार ही इन नंबरों के चलाने वाले निकले। यानी पूरा-पूरा पक्का गड़बड़झाला।
कुछ व्यक्ति आधारित उदाहरण भी रिपोर्ट में सामने आए, मसलन एक मंजू नामक महिला के पास 109 राशन कार्ड हैं। इसी तरह लक्ष्मी नामक महिला के पास 68 कार्ड हैं। ऐसे व्यक्तिों की संख्या सवा सौ से अधिक की है। सबसे बड़ा सवाल है कि दूसरों से ईमानदारी का सबूत मांगने वाले, हमेशा खुद को पाक साफ बताने वाले, दूसरों पर कीचड़ उछालने वाले और स्वयं को बेदाग बताते नहीं थकने वाले अरविंद केजरीवाल की अपनी सरकार में इतनी बड़ी-बड़ी और इतनी अधिक गड़बडि़यां आखिर कैसे हो गईं।
इसके अलावा सीएजी की रिपोर्ट में डीटीसी में प्रबंधन की कमी और लापरवाही के चलते राजस्व को करीब पौने तीन करोड़ रुपये के नुकसान की बात भी कही गई है। नगर निगमों के कामकाज पर भी सवाल उठाए गए हैं और कहा गया है कि सड़कों के निर्माण में ठेकेदारों की लापरवाही और नजरअंदाजी के चलते काम नहीं हुए। रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में उपकरणों और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी की बात भी कही गई है।
आखिर यह कैसे संभव हो गया कि देश के नेताओं को चरित्र, शिक्षा और योग्यता का प्रमाण-पत्र बांटने वाले केजरीवाल की खुद की नाक के नीचे घोटालों का पहाड़ खड़ा हो गया और उन्हें भनक तक नहीं लगी। या तो वे इतने लचर हैं कि इतनी बड़ी बात संभाल नहीं पाए या फिर कहीं ना कहीं वे स्वयं इन सबमें लिप्त रहे हैं। केजरीवाल के इस राशन घोटाले से बिहार के चारा घोटाले की याद बरबस ताज़ा हो उठी है। ऐसा लगता है जैसे केजरीवाल इस देश की राजनीति के नए लालू यादव हैं और घोटालों के मामले में शायद लालू को पीछे छोड़ने की होड़ में होंगे।
लगातार खोते जनाधार, पार्टी की अंर्तकलह, नौकरशाही से बिगड़ते संबंध और विभिन्न शख्सियतों से माफी मांगने की शर्मनाक स्थिति के बाद अब कैग की रिपोर्ट आने के बाद भी अरविंद केजरीवाल यदि आत्ममंथन नहीं करते हैं, तो यह मान लेना चाहिए कि वे खुद ही अपनी ताबूत में कील ठोंक रहे हैं। कैग की रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि आम आदमी पार्टी की कथनी एवं करनी का अंतर उसकी सरकार में भी पूरी तरह से कायम है और जनता के हितैषी होने का दावा करते नहीं थकने वाली इस पार्टी ने जनता के हक पर ही डाका डाल दिया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)