कमलनाथ के इस अनर्गल बयान से दुख तो होता है, लेकिन हैरानी नहीं, क्योंकि यह कांग्रेस का मूल चरित्र ही है। देश में जाति, धर्म, क्षेत्र के नाम पर संघर्ष की स्थिति पैदा करना, लोगों को आपस में लड़ाना और सत्ता हासिल करना, ये कांग्रेस की पुरानी रीत है। इन्हीं हथकंडों के दम पर वो लम्बे समय तक मतदाताओं को भरमाती रही है। अभी तो कमलनाथ को सत्ता में आए दस दिन भी नहीं हुए हैं और अभी से ये तेवर सामने आ रहे हैं तो आगे क्या होगा, ये सोचकर ही सिहरन होती है।
मध्य प्रदेश में इस सप्ताह नई सरकार की आधिकारिक शुरुआत हो गई। सप्ताह की शुरुआत में ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शपथ ग्रहण की और पदभार ग्रहण किया। कार्यभार संभालते ही उन्होंने राज्य की जनता को फिर से क्षेत्रवाद की अराजकता में झोंकने वाला गैर-जिम्मेदाराना बयान भी दे डाला। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग मध्य प्रदेश में आकर यहां के लोगों का कामकाज छीन लेते हैं।
गौर करें तो मप्र में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का सशक्त चेहरा थे। मप्र में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस इतनी असमंजस में थी कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तरह यहां भी कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री तत्काल नहीं चुन सकी। लेकिन कमलनाथ को आखिर सीएम चुना गया।
ऐसे में सिंधिया वंचित रह गए और दिल्ली में सिंधिया के समर्थकों ने इस बात पर हंगामा किया। गौरतलब है कि सिंधिया मप्र के ही मूल निवासी हैं और पूर्व मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया के पुत्र हैं। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि कमलनाथ मूल रूप से कानपुर के रहने वाले हैं, लेकिन मप्र के छिंदवाड़ा से बरसों पहले चुनाव लड़कर हमेशा मप्र में अपना राजनीतिक उपनिवेश कायम रखे हुए हैं।
अब एक उत्तर प्रदेश का व्यक्ति होकर भी मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठकर वे यूपी-बिहार के लोगों को लेकर गैरजिम्मेदाराना बयान देने में लगे हैं। क्या वर्षों पुरानी राजनीति की पारी में उन्होंने यही नफरत भरे भाषण देना ही सीखा है। आज जब वे मुख्यमंत्री बन गए हैं तो ऐसे में उनसे कोई सकारात्मक बयान की अपेक्षा थी, लेकिन उन्होंने ऐसा न करते हुए अत्यंत विवादित और नफरत फैलाने वाला बयान दे डाला। यूपी-बिहार के लोगों के चरित्र पर इस प्रकार की आपित्तजनक टिप्पणी करने का भला इस समय क्या तुक और औचित्य है।
कमलनाथ के इस अनर्गल बयान से दुख तो होता है, लेकिन हैरानी नहीं, क्योंकि यह कांग्रेस का मूल चरित्र ही है। देश में जाति, धर्म, क्षेत्र के नाम पर संघर्ष की स्थिति पैदा करना, लोगों को आपस में लड़ाना और सत्ता हासिल करना, ये कांग्रेस की पुरानी रीत है। इन्हीं हथकंडों के दम पर वो लम्बे समय तक मतदाताओं को भरमाती रही है। अभी तो कमलनाथ को सत्ता में आए दस दिन भी नहीं हुए हैं और अभी से ये तेवर सामने आ रहे हैं तो आगे क्या होगा, ये सोचकर ही सिहरन होती है।
किसानों की कर्ज माफी की बात करें तो ऊपर से देखने पर लगता है कि कमलनाथ ने बहुत अच्छा काम किया लेकिन जब इसकी गहराई में जाएं तो पता चलता है कि ये घोषणा कोरी ही नहीं, किसानों के लिए भी छलावा है। असल में, मप्र में चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस ने घोषणा की थी कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो दस दिनों के भीतर किसानों का कर्ज माफ कर देंगे। संयोग से उनकी सरकार बन गई। सोशल मीडिया कांग्रेस को उनकी घोषणा की याद दिलाने लगा। ऐसे में दबाव में आकर आखिर कमलनाथ को घोषणा करना ही पड़ी लेकिन यहां भी कांग्रेस ने चालाकी दिखा दी।
जारी आदेश में उन्होंने स्पष्ट किया है कि मार्च 2018 के पहले कृषि ऋण लेने वाले किसानों को ही माफी की पात्रता रहेगी। ऐसे में कई किसान कर्ज माफी से वंचित रह गए। उधर, राजस्थान में नई कांग्रेसी सरकार ने भी गुरुवार को किसानों की कर्ज माफी की लुभावन घोषणा की लेकिन इसमें भी केवल 2 लाख रुपए तक का कर्ज ही माफ हो सकेगा। असल में यह एक तरह से छल है जो किसानों को सीधे तौर पर समझ में नहीं आने वाली है। मप्र में भी सारे किसान इस कर्ज माफी के दायरे में नहीं आ रहे हैं।
इसमें नया पेंच यह है कि कर्ज माफी अपने आप में कोई बहुत स्वागत योग्य कदम नहीं है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पिछले दिनों एक वक्तव्य में कहा था कि कर्ज माफी अर्थव्यवस्था के लिए एक उचित कदम नहीं है। नीति आयोग ने भी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए स्पष्ट किया है कि कृषि संकट का स्थायी समाधान कर्ज माफी कभी नहीं बन सकती।
बहरहाल, बिहार के बेतिया में कमलनाथ की टिप्पणी के विरोध में बकायदा कोर्ट में एक केस भी दर्ज कराया जा चुका है। कोर्ट ने इस पर संज्ञान भी लिया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों प्रदेशों में कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को मुख्यमंत्री चुना है जो स्वयं वर्षों तक जनता के कठघरे में रहे हैं। कमलनाथ का नाम जहां सिख दंगों में आता रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल हाल ही में सीडी कांड में घिरे हुए थे। राजस्थान में अशोक गहलोत पर जमीनें हड़पने के आरोप लगते रहे हैं। इन तीन राज्यों में अब कांग्रेस काबिज है। तीनों जगह सरकारों ने आते ही अपनी मौजूदगी का अहसास करा दिया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)