मूल समस्या थरूर या अंसारी जैसे लोगों के बयानों में नहीं है, बल्कि वह विचार-प्रक्रिया इसकी दोषी है जो इन्हें पोषित करती रही है। इनकी विचार-प्रक्रिया में ही खोट है जिससे ये भारत को लेकर अनर्गल धारणाएं बनाते और उन्हें अभिव्यक्त करते रहते हैं। उस विचार-प्रक्रिया का उद्गम कांग्रेस है।
पिछले दिनों दो बयान ऐसे सामने आए जो विवादित रहे। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए सत्ता में वापसी की स्थिति में देश में हिंदू पाकिस्तान बनने जैसे विवादित विशेषण का इस्तेमाल किया, वहीं पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने एक बार फिर से ऐसा बयान दे डाला जो उनकी एकतरफा मानसिकता को प्रदर्शित करता है। अंसारी ने कहा कि यदि इस देश में विक्टोरिया मेमोरियल हो सकता है तो जिन्ना की तस्वीर क्यों नहीं हो सकती।
मालूम हो कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पिछले दिनों जिन्ना की तस्वीर लगाए जाने के मसले पर देश भर में हंगामा हुआ था। जैसे-तैसे यह मामला ठंडा हुआ था कि अंसारी ने फिर से इस मुद्दे को हवा दे दी। एक साक्षात्कार में अंसारी ने इसके अलावा कुछ और बातें भी कहीं जो कि सिरे से बेतुकी, अव्यवहारिक और नासमझी से भरी हुईं थीं।
विक्टोरिया के बहाने जिन्ना का बचाव करने की ये कोशिश कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती। जिन्ना पाकिस्तानियों के लिए कायदे आजम हो सकते हैं, लेकिन भारत के लिए कतई नहीं। भारत में जिन्ना की वकालत करके अंसारी और कुछ नहीं कर रहे, केवल स्वयं को पाकिस्तान का हितैषी ही साबित कर रहे हैं। ये हाल तब है जब अंसारी लंबे समय तक इस राष्ट्र के एक संवैधानिक पद पर काबिज रहे हैं।
अंसारी के पास सामान्य ज्ञान के साथ-साथ इतिहास बोध और तर्क क्षमता का भी अभाव मालूम पड़ता है। यदि ऐसा ना होता तो उन्हें यह देश कथित रूप से असुरक्षित नहीं लगता। यह बहुत बड़ी विडंबना है कि वे प्रकट रूप से देश के उपराष्ट्रपति बने रहे लेकिन मन ही मन स्वयं को अल्पसंख्यक मानते रहे। यही कारण है कि विदाई के पलों में उन्होंने वह बेतुका बयान दिया कि देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित हो रहे हैं।
अब जरा थरूर की बात करें तो ये लगातार सुर्खियों में रहे हैं और हमेशा नकारात्मक कारणों से ही रहे। बात उनके निजी जीवन की हो या राजनीतिक जीवन की, वे सदा चारित्रिक और वैचारिक अभिव्यक्ति के चलते ही सवालों के कठघरे में रहे हैं। अब उन्होंने कहा है कि यदि बीजेपी दोबारा चुनाव जीतकर सत्ता में आती है तो देश में संवैधानिक व्यवस्था फिर से बनेगी और देश “हिंदू पाकिस्तान” बन जाएगा। निश्चित ही थरूर का यह बयान न केवल नफरत की राजनीति से उपजा है बल्कि इसमें कांग्रेस की असुरक्षा और बौखलाहट भी साफ प्रतीत हो रही है।
पाकिस्तान महज एक देश नहीं, वह एक अलगाववादी विचारधारा का प्रकटीकरण है। अखंड भारत में कभी भी अलगाव की अवधारणा नहीं थी, बावजूद इस देश के टुकड़े हुए, तिस पर भी कांग्रेस का दिल नहीं पसीजा। अब कांग्रेस के नेता शशि थरूर इस देश के मूल नागरिकों, मूल अवाम बहुसंख्यकों पर तोहमत लगाने की शरारत कर रहे हैं। वे क्यों भूल जाते हैं कि वे स्वयं विदेश में जन्मे हैं और उनका आधे से अधिक जीवन विदेशों में बीता है। वे स्वयं इस देश को कितना जानते हैं, वे यहां कितना रहे हैं और इस देश के जमीनी हालातों, समस्याओं से वे स्वयं कितना वाकिफ हुए हैं।
यदि हिंदू पाकिस्तान शब्द का उपयोग करके वे यह बताना चाह रहे हैं कि देश में अराजकता बढ़ने वाली है तो वे स्वयं ही पाकिस्तान शब्द को अराजकता का पर्याय प्रमाणित कर रहे हैं। लेकिन यदि वे हिंदू पाकिस्तान शब्द का प्रयोग करके यह जताना चाह रहे हैं कि देश में हिन्दू अराजकता मचाएँगे तो इसे उनकी बुद्धि का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
भाजपा ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए सीधे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी की मांग की है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने थरूर के बयान की निंदा की है, वहीं भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने स्मरण दिलाया है कि ऐसी अलगाववादी बातें कहना कांग्रेस का मूल चरित्र रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वैमनस्य रखते हुए कांग्रेस लोकतांत्रिक तरीकों का अतिक्रमण कर जाती है और व्यक्तिगत आक्षेप पर उतर आती है।
अब सवाल ये उठता है कि थरूर आखिर इस अलगाववाद की भाषा बोलने पर विवश क्यों हो रहे हैं। यदि वे भारत एवं पाकिस्तान की तुलना कर रहे हैं तो उन्हें बखूबी पता होगा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की कितनी दुर्दशा है। लेकिन शायद वे इस सच्चाई से आँख मूँद लिए हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा कोई भेदभाव नहीं होता और दुनिया में अल्पसंख्यक सर्वाधिक सुरक्षित भारत में हैं। अब वे किस आधार और किस पैमाने पर यह बेतुका विचार लेकर आए हैं, ये वही बता सकते हैं।
मूल समस्या थरूर या अंसारी जैसे लोगों के बयानों में नहीं है, बल्कि वह विचार प्रक्रिया इसकी दोषी है जो इन्हें पोषित करती रही है। इनकी विचार प्रक्रिया में ही खोट है जिससे ये भारत को लेकर अनर्गल धारणाएं बनाते और उन्हें अभिव्यक्त करते रहते हैं। उस विचार प्रक्रिया का उद्गम कांग्रेस है।
कांग्रेस का पूरा इतिहास नफरत एवं सांप्रदायिक विद्वेष के राजनीति की कहानी कहता रहा है, अब उसमें निम्नता, सतहीपन और वैचारिक दिवालियेपन का भी अध्याय जुड़ गया है। शशि थरूर यदि अपनी बात सच मानते तो उन्हें अगले दिन विस्तार से इसका स्पष्टीकरण देने की आवश्यक्ता नहीं पड़ती लेकिन वे बुरा बोलकर फंस चुके हैं जिसकी कीमत हो सकता है कि पूरी पार्टी को चुकाना पड़े।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)