अगले लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के नेता उस कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सम्भावना तलाश रहे हैं, जिसके भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनाव लड़कर वह सत्ता में आए, जिसके नेताओं के भ्रष्टाचारों को उजागर कर उन्हें सलाखों के पीछे भेजने का प्रण लिया था। लेकिन अब केजरीवाल और उनकी पार्टी ये सब बातें भूल गयी है, अब उसके लिए राजनीति महज संभावनाओं का खेल बन गया है। अब कांग्रेस वाले भी एक नए समीकरण की तलाश कर रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस का आम आदमी पार्टी सरकार के खिलाफ मुहिम का प्रयास एक दिखावा ही लगने लगा है।
देश की राजनीति में उस शख्स को किसलिए याद किया जाए, जो देश में बदलाव का नारा लगाते-लगाते दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच गया। अपनी कुर्सी यात्रा के क्रम में उस शख्स ने दूसरी पार्टी के नेताओं पर खूब बेबुनियाद इल्जाम भी लगाए, लेकिन जब अदालतों में आरोपों के पक्ष में सबूत पेश करने की बात आई, तो उसने धीरे-धीरे एक-एक कर सबसे माफ़ी मांग ली। आपकी सोच बिलकुल दुरुस्त है, हम अरविन्द केजरीवाल की ही बात कर रहे हैं, जो शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन चलाकर छप्पर फाड़ बहुमत के साथ सत्ता में आए थे।
इंडिया अगेंस्ट करप्शन के साथियों ने अगर केजरीवाल से प्रश्न किया, तो उनको कान पकड़कर उन्होंने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। आज पार्टी को बचाने के लिए हर कदम पर वह नया कारनामा कर रहे हैं, उन्हें हर मोड़ पर नया यू टर्न नज़र आता है। इन महोदय ने आज अपने हर उस विरोधी से माफ़ी मांग ली है, जिसके खिलाफ 2013-14 में इन्होने बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगाई थी।
कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर अपनी राजनीति शुरू करने वाले केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के नेता आज कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए मचलने लगे हैं। खबर है कि आप के नेता लोग कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो क्या इसे 2019 से पहले एक बड़े सियासी ड्रामे का ट्रेलर माना जाए ?
अगले लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के नेता उस कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सम्भावना तलाश रहे हैं, जिसके भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनाव लड़कर वह सत्ता में आए, जिसके नेताओं के भ्रष्टाचारों को उजागर कर उन्हें सलाखों के पीछे भेजने का प्रण लिया था। लेकिन अब केजरीवाल और उनकी पार्टी ये सब बातें भूल गयी है, अब उसके लिए राजनीति महज संभावनाओं का खेल बन गया है। अब कांग्रेस वाले भी एक नए समीकरण की तलाश कर रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस का आम आदमी पार्टी सरकार के खिलाफ मुहिम का प्रयास एक दिखावा ही लगने लगा है।
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस बारे में कहा कि राजनीति में कुछ भी संभव है। इस मौके पर केजरीवाल भी पीछे नहीं रहे, उन्होंने भी अजय माकन के बेटे के बोर्ड नतीजे आने पर उन्हें बधाई सन्देश दे दिया। राजनीति में इन वक्तव्यों और औपचारिकताओं का दूरगामी मतलब निकाला जाना स्वाभाविक ही है। जिस कांग्रेस पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों पर केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता से बेदखल कर दिया, उसी कांग्रेस से आप पांच साल के बाद अगर बीजेपी को हराने के लिए हाथ मिला लेते हैं, तो जनता आपका हिसाब-किताब करने में शायद ही चूके।
हालाँकि कांग्रेस अभी किसी जल्दबाजी में नहीं है और ‘आप’ से आनन-फानन में हाथ मिलाने के मूड में नजर नहीं आ रही है। शायद कांग्रेस अभी हवा का रुख भी देख रही हो। इसलिए कयासबाज़ी का सिलसिला चल रहा है। दिल्ली में अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अरविन्द केजरीवाल कुछ भी कर सकते हैं। उन्होंने कभी कांग्रेस के भ्रष्ट नेताओं की सूची निकाली थी, अब उस सूची को उन्होंने कूड़ेदान में डाल दिया है। अब वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ़ कर रहे हैं। अचरज नहीं होगा, अगर 2019 से पहले-पहले वे कांग्रेस को ईमानदार पार्टी का सर्टिफिकेट भी दे डालें।
यमुना नदी में केजरीवाल सरकार के तीन सालों के शासन के दौरान काफी पानी बह चुका है। अब उनके लिए सत्ता में बने रहने की खातिर सब कुछ जायज़ है, ऐसे में केजरीवाल अगर कांग्रेस से हाथ मिला कर साथ-साथ चुनाव लड़ते हैं, तो किसी को कोई अचरज नहीं होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)