जीडीपी के ताजा आंकड़े अर्थव्यवस्था को लेकर आश्वस्त करते हैं। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर, 17 की तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर बढ़ कर 7.2 प्रतिशत पहुंच गई, जो वित्त वर्ष, 17 की दूसरी तिमाही में 6.5% थी। यह वृद्धि पिछली 5 तिमाहियों में सबसे अधिक है। यही नहीं, ताजा आंकड़ों के साथ भारत ने जीडीपी की वृद्धि दर के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार भारत द्वारा किये जा रहे आर्थिक सुधारों का सकारात्मक परिणाम दिखने लगा है। आईएमएफ के उप प्रबंध निदेशक (प्रथम) डेविड लिप्टन के अनुसार वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को अमलीजामा पहनाने से प्रणाली को पारदर्शी और कर चोरी को रोकने में मदद मिलेगी। लिप्टन के मुताबिक, बैंकों की समस्याओं से निपटने के लिये उठाये गये कदम समीचीन एवं महत्वपूर्ण हैं।
डिजिटल पहचान तकनीक और अन्य ढांचागत सुधारों से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी। साथ ही, समावेशी विकास को सुनिश्चित करना आसान होगा। आईएमएफ और विश्व बैंक की ग्रीष्मकालीन बैठक में लिप्टन ने कहा कि इसमें दो राय नहीं है कि अभी भी भारत को बहुत सारे कार्य करने हैं, लेकिन उसने अब तक जो कदम उठाये हैं उनका फायदा दिखने लगा है। भारत की वृद्धि दर पिछले साल 6.7 प्रतिशत थी, लेकिन इस वित्त वर्ष में इसके 7.4% और आगामी साल में 7.8% रहने का अनुमान है।
प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपने एक बयान में कहा है कि भारत में आ रहे डिजिटल बदलावों से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2021 तक 154 अरब डॉलर जुड़ जायेंगे। यह खुलासा माइक्रोसॉफ्ट और आईडीसी की रिपोर्ट “एशिया प्रशांत में डिजिटल बदलाव के आर्थिक प्रभाव” में किया गया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये 15 मध्यम एवं बड़े आकार के संगठनों के 1,560 लोगों द्वारा व्यक्त विचारों का समावेश किया गया।
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत की जीडीपी में बढ़ोत्तरी डिजिटल उत्पादों और सेवाओं में सकारात्मक बदलावों के कारण मुमकिन हुई। ये उत्पाद एवं सेवायें डिजिटल प्रौद्योगिकियों जैसे, मोबिलिटी, क्लाउड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से संभव हो सकीं। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि आगामी 4 सालों में देश के तकरीबन 60% जीडीपी में वृद्धि के कारक डिजिटल बदलाव होंगे।
जीडीपी के ताजा आंकड़े अर्थव्यवस्था को लेकर आश्वस्त करते हैं। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर, 17 की तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर बढ़ कर 7.2 प्रतिशत पहुंच गई, जो वित्त वर्ष, 17 की दूसरी तिमाही में 6.5% थी। यह वृद्धि पिछली 5 तिमाहियों में सबसे अधिक है। यही नहीं, ताजा आंकड़ों के साथ भारत ने जीडीपी की वृद्धि दर के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
उम्मीद के मुताबिक वित्त वर्ष, 18 की तीसरी तिमाही में सकल कीमत 6.7% रही, जो दूसरी तिमाही में 6.2% थी। इसका कारण विनिर्माण क्षेत्र में 8.1% दर की वृद्धि और व्यापार, होटल, परिवहन, संचार उप क्षेत्रों में 9.0% दर की वृद्धि का होना है। विगत दो तिमाहियों में जीवीए में वृद्धि कम जीवीए डिफ्लेटर के कारण हुई थी, लेकिन वित्त वर्ष, 18 की तीसरी तिमाही में जीडीपी और जीवीए डिफ्लेटर दोनों में बढ़ोतरी हुई है, जो अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत है।
उद्योग क्षेत्र में वित्त वर्ष, 18 की तीसरी तिमाही में 6.8% की दर से वृद्धि हुई, जो दूसरी तिमाही में 5.9% की दर से हुई थी, जिसका कारण विनिर्माण जीवीए में 8.1% की दर से वृद्धि होना है। कॉर्पोरेट जीवीए में भी 11.3% की दर से वृद्धि हुई है। निर्माण क्षेत्र में तीसरी तिमाही में 6.8% की दर से बढ़ोतरी हुई, जबकि पहली तिमाही में इसमें 5.2% की दर से वृद्धि हुई थी।
वित्त वर्ष, 18 में सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर 8.3% रही, जो वित्त वर्ष, 17 के 7.5% से बेहतर है, जिसका कारण व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और सेवा क्षेत्र में 8.3%, वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवा में 7.2% आदि की दर से वृद्धि होना है। व्यय के संदर्भ में जीएफसीएफ में वित्त वर्ष, 18 की तीसरी तिमाही में 12.0% की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछली तिमाही में इसमें 6.9% की दर से वृद्धि दर्ज की गई थी। मौजूदा कीमतों पर जीएफसीएफ में 9.7% की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि स्थिर मूल्य पर इसमें 7.6% की दर से वृद्धि होने की संभावना है।
मार्च महीने में सीपीआई मुद्रास्फीति घटकर 4.24% हो गई, जो पिछले महीने 4.44% थी। इस महीने खाद्य व पेय पदार्थों और ईंधन की कीमतों में क्रमशः 3.01% और 5.73% की गिरावट दर्ज की गई है, जो फरवरी में क्रमशः 3.46% और 6.88% थी। बाजार में आशंका है कि तेल की कीमतों में निरंतर वृद्धि से मुद्रास्फ़ीति, राजकोषीय घाटे और चालू खाता के घाटे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, लेकिन ऐसा मानने का सशक्त आधार नहीं है। कम से कम मुद्रास्फीति पर कच्चे तेल की कीमतों का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2012 में किये गये एक अध्ययन के अनुसार, घरेलू कीमतों के कैलिब्रेटेड और चरणबद्ध समायोजन की रणनीति मुद्रास्फीति को बढ़ाने और विकास को अस्थिर करने की बजाय मुद्रास्फ़ीति की संभावनाओं को स्थिर करने में उपयोगी होती है।
भारत में पेट्रोलियम की कीमतों को चरणबद्ध तरीके से विनियंत्रित किया गया है और कीमतें दैनिक आधार पर समायोजित की जा रही हैं। इसलिए यहाँ अचानक से ईंधन की कीमत में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। यदि हम कच्चे तेल के संदर्भ में सीपीआई का अध्ययन करते हैं, तो जून,17 से मार्च,18 की अवधि में कच्चे तेल की कीमतें जून, 17 से बढ़ने लगीं। औसत कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी 17 डॉलर प्रति बैरल की हुई, जिसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव लगभग 13 आधार अंकों का रहा। कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि होने पर सीपीआई में 10 आधार अंकों की बढ़ोतरी होती है।
कच्चे तेल की कीमत का कारोबार पर पड़ने वाला प्रभाव पहले से कम हुआ है, जिसका कारण प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में इजाफा का होना हो सकता है। भारत में पिछले 4 वर्षों में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में 1.4 गुना की वृद्धि हुई है। साथ ही, कुशल श्रम की प्रचुरता ने भी मुद्रास्फीति को कम करने का काम किया है। स्पष्ट है कि सरकार के आर्थिक सुधारों और ढांचागत विकास ने अर्थव्यवस्था को गति देने तथा महंगाई पर अंकुश लगाने का काम किया है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)