सत्ता में रहते हुए भी भाजपा सक्रियता एवं गंभीरता के साथ चुनाव से पहले सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचा रही है तथा आज भी भाजपा के बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक के नेता इन राज्यों में पार्टी की विजय को सुनिश्चित करने के लिए पसीना बहा रहे हैं। वही विपक्षी दलों की सुस्ती यही बताती है कि इन राज्यों में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने शायद चुनाव से पहले ही हार मान ली है।
देश के दो अहम राज्य महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावी प्रक्रिया अपने मध्यान्ह पर है। यहाँ के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने सियासत के समीकरणों को साधने के लिए प्रत्याशियों की घोषणा की प्रक्रिया को भी लगभग पूरा कर लिया है। गौरतलब है कि 21 अक्टूबर को एक ही चरण में दोनों राज्यों में मतदान होगा और 24 अक्टूबर को परिणाम हमारे सामने होंगे। ऐसे में अब चुनाव प्रचार के लिए 15 दिन का समय शेष रह गया है।
यह सभी जानते हैं कि वर्तमान परिदृश्य में किसी राज्य का चुनाव हो अथवा आम चुनाव देशभर में चर्चा का केंद्र बन ही जाता है, लेकिन इन दोनों राज्यों के चुनावों में अभीतक अपेक्षाकृत शांति रही है। कारण कि दोनों राज्यों में विपक्षी दलों में रार और कांग्रेस की अंतर्कलह ही सामने आई है।
चुनावों के समय सत्तापक्ष अक्सर थोड़ा ढीला रहता है जबकि विपक्ष आक्रामक होता है, लेकिन यहाँ तस्वीर अलग है। कांग्रेस अपनी ही चुनौतियों से घिरी हुई नजर आ रही है। इसके उलट सत्ताधारी भाजपा अत्यंत सक्रिय है। इस स्थिति को देखते हुए लगता है कि दोनों राज्यों में सत्ताधारी दल भाजपा पुनः जोरदार बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने जा रही है।
बात हरियाणा की हो अथवा महाराष्ट्र की दोनों जगह कांग्रेस के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति है। महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संजय निरूपम ने अपने ही पार्टी और शीर्ष नेताओं के खिलाफ़ बगावत का बिगुल फूंक दिया है। वे इशारों में पार्टी के कई बड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगाते हुए राहुल गाँधी की वापसी का राग अलाप रहे हैं। इससे पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो चुनाव से ठीक पहले पार्टी को अलविदा कह चुके हैं।
हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर विरोध प्रदर्शन के उपरांत एक चिट्टी के द्वारा कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को अपना इस्तीफा भेज चुके हैं। उन्होंने पार्टी पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें टिकट बंटवारे में आर्थिक भ्रष्टाचार भी शामिल है। हरियाणा में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। जाहिर है, कांग्रेस के भीतर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा।
गठबंधन के नजरिए से एनडीए हो अथवा यूपीए महाराष्ट्र में स्थिति बहुत ठीक नहीं रहती है, किन्तु एनडीए गठबंधन ने स्थिति को अनुकूल बनाए रखा है। वहीं यूपीए गठबंधन की स्थिति पस्त नजर आ रही है। बात यह भी निकलकर सामने आ रही है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस के बीच का गठबंधन ठीक-ठाक बना रहेगा, इसपर भी संशय है।
पार्टी में जारी तमाम उठापटक के बीच शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी दिखाती है कि कांग्रेस नेतृत्वविहीन हो चुकी है और उसका संगठन भी पूरी तरह से भरभरा चुका है। सनद रहे मतदान में लगभग बीस दिन का समय शेष रह गया है, और कांग्रेस नीतिविहीन और दिशाविहीन नजर आ रही है। स्वयं की चुनौतियों से चौतरफा घिरी हुई कांग्रेस महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के लिए कोई विजन भी नहीं रख पाई है। दूसरी तरफ भाजपा अपने विकास के कार्यों को लेकर जनता के बीच पहुंच रही है,
कुशल रणनीति एवं आक्रामक चुनाव प्रचार भाजपा ने चुनाव घोषणा से पहले ही शुरू कर दिया था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस महाजनादेश यात्रा के माध्यम से व्यापक जन संपर्क अभियान पहले ही पूरा कर चुके हैं, वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।
यानी सत्ता में रहते हुए भी भाजपा सक्रियता एवं गंभीरता के साथ चुनाव से पहले सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचा रही है तथा आज भी भाजपा के बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक के नेता इन राज्यों में पार्टी की विजय को सुनिश्चित करने के लिए पसीना बहा रहे हैं। वही विपक्षी दलों की सुस्ती यही बताती है कि इन राज्यों में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने शायद चुनाव से पहले ही हार मान ली है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)