जिस प्रकार से बीएमसी ने कंगना का ऑफिस तोड़ा है, वह सरकारी कार्यवाही कम और असामाजिक तत्वों की करतूत अधिक मालूम होती है। रिटायर्ड नौसेना अधिकारी मदन शर्मा पर हमला भी अराजकता का प्रमाण है। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में लोकतंत्र नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं बची है और पूर्ण रूप से उद्धव ठाकरे की तानाशाही चल रही है।
महाराष्ट्र में इन दिनों कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। बात नौकरशाही की हो या कानून व्यवस्था की, हर मोर्चे पर ठाकरे सरकार ना केवल विफल नजर आई है बल्कि तीखे सवालों से भी घिर गई है। अभिनेत्री कंगना रनोट का ऑफिस तोड़ने के साथ ही नौ सेना के पूर्व अधिकारी पर शिवसैनिकों का जानलेवा हमला यही इंगित करता है कि महाराष्ट्र में बिहार के वर्षों पुराने लालू के जंगलराज की झलक देखने को मिल रही है।
बीता सप्ताह महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत गहगागहमी भरा रहा। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद पुलिस जांच में बिहार राज्य की पुलिस से तनातनी के बाद जब मामले की सीबीआई जांच शुरू हुई तो समीकरण तेजी से बदलते चले गए। इस मामले में आरोपी अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के खिलाफ एनसीबी की जांच शुरू हुई और नौबत गिरफ्तारी तक आ गई।
उधर, अभिनेत्री कंगना रनोट बॉलीवुड के कतिपय लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया पर मोर्चा बुलंद करते करते महाराष्ट्र सरकार से जा भिड़ी हैं। कंगना की अभिव्यक्ति शिवसेना को इतनी असह्य हो गयी कि ठाकरे सरकार ने बीएमसी के द्वारा उनका ऑफिस जमीदोंज करवा डाला।
महाराष्ट्र में ठाकरे की गठबंधन सरकार को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और यह सरकार बुरी तरह विफल साबित हो गई है। राज्य के मौजूदा हालात देखकर तो यही लगता है। सत्ता में आने की जो अधीरता उद्धव ठाकरे ने दिखाई थी, जिसके चलते उन्होंने अपने दल के पारंपरिक विरोधी दल कांग्रेस से भी हाथ मिला लिया था, वह अधीरता सत्ता में आने के बाद एक अवगुण बनकर उभरी है। कई उदाहरण गिनाए जा सकते हैं।
ठाकरे जिस प्रकार से निर्णय ले रहे हैं, उससे केवल उनकी मनमानी, हठधर्मिता और बदले की भावना ही प्रकट होती है। एक राजनेता के लिए ये अपरिपक्वता की निशानी है और मुख्यमंत्री के लिए तो ये बातें अक्षम्य ही हैं। उनके नेता संजय राउत ने अभिनेत्री कंगना को खुलेआम अभद्र शब्द कहे लेकिन उसी कंगना ने जब बीएमसी की पक्षपातपूर्ण एवं गलत कार्यवाही के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया तो उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया।
इसके पीछे हवाला दिया गया कि मुख्यमंत्री के प्रति अससंदीय शब्दावली का उपयोग हुआ है। लेकिन जब राउत ने कंगना पर खुलेआम आक्षेप किया तब महाराष्ट्र सरकार का यह तर्क जाने कहां हवा हो गया। जहां तक बीएमसी की कार्यवाही की बात है, यह पूरी तरह से एकपक्षीय कार्यवाही है।
जब कंगना ने 9 सितंबर को मुंबई आने की पूर्व सूचना दी थी, तभी उनके खिलाफ यह कुत्सित षडयंत्र शुरू हो गया था। उनके आने से पहले ही उनका ऑफिस तोड़ दिया गया जबकि स्वयं बॉम्बे हाईकोर्ट ने त्वरित सुनवाई करते हुए इस पर रोक लगाई है और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया है।
यही बात तो कंगना कह रही हैं कि उन्हें पक्ष रखने का अवसर तो मिलना ही चाहिये, लेकिन ठाकरे सरकार ने एक ना सुनी। जाहिर है, ठाकरे ने महाराष्ट्र की सरकारी मशीनरी को अपनी निजी लड़ाई का हथकंडा बना लिया है।
सरकारी अमले और बीएमसी के संसाधनों का उन्होंने पूरी तरह से दुरुपयोग किया। वह भी केवल अपनी खिसियाहट मिटाने के लिए। नतीजा क्या हुआ। पूरे देश में उनकी थू-थू हो रही है। खुद महाराष्ट्र के लोग उनकी निंदा कर रहे हैं।
ऐसा लगता है जैसे ठाकरे के पास यही केवल एक बड़ा मुद्दा बचा था। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि जिस राज्य में कोरोना महामारी चरम पर है और जहां के संक्रमितों के आंकड़े भय पैदा करते हों, वहां का मुख्यमंत्री जनता की सुरक्षा की फिक्र छोड़कर अपनी थोथी राजनीति करने में लगा है।
ठाकरे के पास ना राजनीतिक समझ है, ना अनुभव। वे केवल जोड़-तोड़ करके सत्ता में आ गए हैं लेकिन उनके अपरिपक्व शासन का खामियाजा अब महाराष्ट्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है।
देश में इस समय कोरोना से महाराष्ट्र सर्वाधिक पीड़ित राज्य है। यहां के संक्रमण के आंकड़े रूस के आंकड़ों को भी मात कर रहे हैं। शनिवार को महाराष्ट्र में 22 हजार से अधिक मामले आए हैं। एक दिन में यहां 391 लोगों की कोरोना की वजह से मौत हुई। यहां मरीजों का आंकड़ा 10.37 लाख को पार कर गया है। पूरे देश के 60 प्रतिशत कोरोना मरीज अकेले महाराष्ट्र से हैं।
क्या ये आंकड़े एक डरावनी तस्वीर पेश नहीं करते? क्या इस संकट के समय ठाकरे को अपनी टुच्ची बदले की राजनीति करना शोभा देता है। एक पल को मान भी लिया जाए कि कंगना का कार्यालय बीएमसी के नियमों के अनुकूल नहीं था लेकिन कंगना के ऑफिस के समीप ही कई हस्तियों के घर, दुकानें हैं जो कि बीएमसी के नियमों का खुलेआम मखौल उड़ा रहे हैं। वहां बीएमसी की नज़र क्यों नहीं गई। यह तो स्पष्ट ही दिखाई दे रहा है कि ये विशुद्ध रूप से खुन्नस मिटाने के लिए की गई ओछी कार्रवाई है और इसका नियम-कानून से कोई लेना देना नहीं है।
इस मामले का दुखद पहलू यह है कि ठाकर ने अपनी घटिया राजनीति के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है। महाराष्ट्र सरकार यदि इतनी ही नियमों की पक्की है तो मुंबई में दाउद का घर क्यों नहीं तोड़ पा रही है।
ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद को मजाक बनाकर रख दिया है। लगता है, महाराष्ट्र में शिवसेना की मनमानी चल रही है। हाल ही में यहां शिवसैनिकों ने नौ सेना के पूर्व अधिकारी मदन शर्मा पर प्राणघातक हमला किया। उनका गुनाह क्या था, बस यही कि उन्होंने सीएम उद्धव ठाकरे से संबंधित एक कार्टून को व्हाट्सएप पर फारवर्ड किया था। इसी के चलते शिवसैनिकों ने उनकी जमकर पिटाई कर दी।
क्या ठाकरे भूल गए कि उनके पिता बालासाहेब ठाकरे एक जाने माने कार्टूनिस्ट रहे थे। जिसके परिवार में कार्टूनिंग का सिलसिला रहा हो क्या उसे नहीं पता कि कार्टून कटाक्ष का एक माध्यम है। उनके तो घर में ही इसकी परंपरा रही है। इसके बावजूद वे इसका मर्म नहीं समझ पाए और शिवसेना के गुंडों से एक सम्मानित नागरिक को पिटवा दिया।
जिस प्रकार से बीएमसी ने कंगना का ऑफिस तोड़ा है, वह सरकारी कार्यवाही कम और असामाजिक तत्वों की करतूत अधिक मालूम होती है। रिटायर्ड नौसेना अधिकारी मदन शर्मा पर हमला भी अराजकता का प्रमाण है। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में लोकतंत्र नाम की कोई व्यवस्था नहीं बची है और पूर्ण रूप से उद्धव ठाकरे की तानाशाही चल रही है।
कुल मिलाकर इन दिनों महाराष्ट्र के हालात अत्यंत लचर हैं। कोरोना संकट जैसे चुनौतीपूर्ण समय में ठाकरे पलायन कर गए हैं और सतही बातों को तूल देकर अपनी अधकचरी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। साल भर के भीतर ही यह सरकार बुरी तरह विफल साबित हो गई है। यदि इसी तरह अराजकता के हालात बने रहे तो राज्य में इस सरकार के लिए आगे के आसार ठीक नहीं कहे जा सकते।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)