मौजूदा समय में भारत और रूस इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर और ब्रिक्स में मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों देश मिलकर अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने, कारोबारी गतिविधियों में तेजी लाने, आतंकवाद से निपटने, तीसरी दुनिया के देशों में परमाणु क्षेत्र में सहयोग करने आदि मुद्दों पर भी सकारात्मक कदम उठा सकते हैं, जिससे दोनों देशों सहित समूचे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को निकट भविष्य में फ़ायदा हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभी संपन्न हुई अनौपचारिक रूस यात्रा को बेहद ही खास माना जा रहा है, क्योंकि दोनों नेताओं की यह मुलाकात निकट भविष्य में भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की दशा व दिशा तय करेगी। हालांकि मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकातों का दौर इस पूरे साल चलने वाला है। इस साल के अंत तक दोनों राष्ट्राध्यक्ष चार बार मिलेंगे।
अगले महीने दोनों नेता चीन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेंगे। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में मुलाकात करेंगे। फिर ईस्ट एशियाई देशों के साथ सहयोग बैठक में उनकी मुलाकात होगी। इसके बाद भारत में होने वाली भारत-रूस सालाना बैठक की अगुवाई ये दोनों नेता करेंगे। कहना न होगा कि मोदी के इस अनौपचारिक रूस दौरे में आगामी मुलाकातों में होने वाली बातचीत के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार हो गयी होगी।
यात्रा शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी प्रस्तावित बातचीत से भारत और रूस के बीच “विशेष और विशेषाधिकार युक्त” रणनीतिक भागीदारी को और भी ज्यादा मजबूती मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह वक्तव्य अक्षरश: सही है। आगे की मुलाक़ातों में ईरान से अफगानिस्तान व मध्य एशिया होते हुए रूस तक रेल व सड़क मार्ग का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करने व आपसी सहयोग से तीसरे देशों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने पर खास जोर दिया जायेगा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह पहली रूस यात्रा नहीं है। इसके पहले भी वे रूस की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन व्लादिमीर पुतिन के चौथी बार रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की यह पहली यात्रा है। पुतिन ने चौथी बार रूस का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद मोदी को रूस आने का न्योता दिया था। मोदी की यह यात्रा इसी परिप्रेक्ष्य में है।
मोदी की इस अनौपचारिक रूस यात्रा से दोनों देशों के बीच के रिश्तों में और भी मजबूती आई है और अमेरिका को एक कड़ा संदेश गया है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में ईरान से परमाणु करार तोड़ने का मुद्दा अभी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में सबसे गर्म है। भारत, ईरान परमाणु मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले से बेहद असहज है।
ट्रंप के फैसले से भारत व रूस दोनों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत असर होने के आसार हैं। ऐसे में दोनों देशों को वैसे उपाय खोजने की जरूरत है, जिससे उनपर आर्थिक दबाव कम हो सके। जाहिर है, दोनों देश इस मुद्दे पर एक योजना के तहत काम करके अमेरिका पर कूटनीतिक जीत हासिल करेंगे।
मौजूदा परिदृश्य में भारत यह नहीं चाहेगा कि रूस के साथ रक्षा सहयोग के मामले में बने रिश्तों में कोई दूसरा देश हस्तक्षेप करे। दूसरे मुद्दों के संदर्भ में भी भारत ऐसा ही चाहता है। इसलिये, इस अनौपचारिक बातचीत के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों देशों के बीच मैत्री और आपसी विश्वास का इस्तेमाल कर वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर के अहम मुद्दों पर आम राय कायम करना चाहते हैं। इसलिये, इस बैठक में सीरिया और अफगानिस्तान के हालात, आतंकवाद के खतरे तथा आगामी शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स सम्मेलन आदि से संबंधित मामलों पर भी बातचीत की गई।
दरअसल भारत और रूस के बीच शुरू से ही सौहार्द्रपूर्ण संबंध रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच भी दोस्ताना संबंध है। भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में स्थाई सदस्यता दिलाने में रूस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मौजूदा समय में भारत और रूस इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर और ब्रिक्स में मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों देश मिलकर अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने, कारोबारी गतिविधियों में तेजी लाने, आतंकवाद से निपटने, तीसरी दुनिया के देशों में परमाणु क्षेत्र में सहयोग करने आदि मुद्दों पर भी सकारात्मक कदम उठा सकते हैं, जिससे दोनों देशों सहित समूचे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को निकट भविष्य में फ़ायदा हो सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)