भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावना है। नरेंद्र मोदी ने इसके लिए दोहरी नीति बनाई। एक का संबन्ध भारत की आंतरिक आवश्यकता से था। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर अन्य संसाधनों पर निर्भरता कम करने की योजना बनाई गई। सौर ऊर्जा अभियान का दूसरा संबन्ध विदेश नीति से था। विश्व के सौ से अधिक देश ऐसे हैं, जहाँ सौर ऊर्जा की बड़ी संभावना है। मोदी ने इन देशों को सौर ऊर्जा के साझा हित से जोड़ा। स्पष्ट है कि मोदी की नीतियों से सौर ऊर्जा न केवल देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ती के एक स्वस्थ और अक्षय स्रोत के रूप में विकसित हो रही, बल्कि विदेशनीति के मोर्चे पर भी देश के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई है।
सौर ऊर्जा का क्षेत्र नया नहीं है। प्राचीन भारत में ही इसके महत्व का प्रतिपादन हो गया था। ऋषियों ने सूर्य को प्रत्यक्ष देव माना। संभव है कि वह सौर ऊर्जा से भी परिचित रहे होंगे। परतंत्रता के दौर में इस ज्ञान को नजरअंदाज किया गया। स्वतंत्रता के बाद इस दिशा में व्यापक शोध की आवश्यकता थी। लेकिन बहुत समय बाद इसकी सीमित शुरुआत की गई। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही सौर ऊर्जा को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया।
भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावना है। नरेंद्र मोदी ने इसके लिए दोहरी नीति बनाई। एक का संबन्ध भारत की आंतरिक आवश्यकता से था। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर अन्य संसाधनों पर निर्भरता कम करने की योजना बनाई गई। सौर ऊर्जा अभियान का दूसरा संबन्ध विदेश नीति से था। विश्व के सौ से अधिक देश ऐसे हैं, जहाँ सौर ऊर्जा की बड़ी संभावना है। मोदी ने इन देशों को सौर ऊर्जा के साझा हित से जोड़ा।
मोदी की सोच थी कि तेल उत्पादक देशों का संगठन बन सकता है, तो सौर ऊर्जा का उत्पादन करने वाले देशों का भी संगठन बन सकता है। मोदी ने के प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के नाम से 122 देशों के इस संगठन ने आकर लिया जिसका स्थापना सम्मेलन बीते मार्च में हुआ था। भविष्य में सौर ऊर्जा उत्पादक देशों का ये समूह एक मजबूत संगठन के रूप में जगह बना सकता है।
आज देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ रही है। चार वर्षों में इस दिशा में बेमिसाल कार्य हुए हैं। इससे परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम होगी। पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को बीस गीगावाट से बढ़ाकर सौ गीगावाट कर दिया गया है।
चालू वर्ष में दस हजार मेगावाट का लक्ष्य पूरा होने को है। सोलर लाइटिंग सिस्टम की स्थापना में भी तेजी आई है। देश भर में लगभग बयालीस लाख से भी ज्यादा सोलर लाइटिंग प्रणालियां, करीब डेढ़ लाख सोलर पम्प और एक सौ इक्यासी ऐंमडब्लूईक्यू के पावर पैक स्थापित किए गए हैं। चार वर्षों में सौर ऊर्जा के सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
आने वाले समय में एक सौ पचहत्तर गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा संस्थापित क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पिछले दो वर्षों के दौरान सोलर पार्क, सोलर रूफटॉप योजना, सौर रक्षा योजना, नहर के बांधों तथा नहरों के ऊपर सीपीयू सोलर पीवी पॉवर प्लांट के लिए सौर योजना, सोलर पंप, आदि के लिए बड़े कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
पवन ऊर्जा क्षमता-स्थापना में भारत दुनिया में चौथे नंबर पर आ गया है। यहां की पवन टर्बाइन विश्व गुणवत्ता मानको के अनुरूप है और यूरोप, अमेरिका तथा अन्य देशों से आयातित टर्बाइनों में सबसे कम लागत की है। पवन ऊर्जा में पांच गीगावाट से अधिक की बढोत्तरी हुई है।
भारत सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा बाजार बन सकता है। यदि भारत में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ेगा तो इससे जीडीपी दर भी बढ़ेगी। अनुमान है कि अगले दो वर्षों में देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ कर हजार मेगावाट हो जाएगा। इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए अब विदेशी कंपनियों भी आकर्षित हो रही हैं।
सौर ऊर्जा का उत्पादन अपनी स्थापित क्षमता से चार गुना बढ़ गया है। यह देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का सोलह प्रतिशत है। सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ा कर स्थापित क्षमता का साठ प्रतिशत करना है। चार साल में ऊर्जा क्षेत्र की तस्वीर बदल गई है।
देश हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। सरकार का कहना है कि सौर ऊर्जा की लागत में कमी आने की वजह से अब यह ताप बिजली से मुकाबले की स्थिति में है। सूर्य की गर्मी का उपयोग अनाज को सुखाने, जल ऊष्मन, खाना पकाने, पानी को पीने लायक बनाने, पम्प आदि चलाने जैसे कार्यों में बढ़ाया जा रहा है।
सौर ऊर्जा से ट्यूबवेल और सबमर्सिबल पंप चलाने के उपकरण भी बन रहे है। सरकार बिजली की समस्या से निपटने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले मोनो ब्लॉक पम्प सेट और सबमर्सिबल पंप सैट की मोटरों पर अनुदान दे रही है। सौर ऊर्जा से चलने वाले सबमर्सिबल पंप सैट से प्रतिदिन पांच एकड़ भूमि की सिंचाई कर सकते हैं। किसान सौर ऊर्जा से चलने वाले इन उपकरणों का प्रयोग करेंगे तो एक तरफ जहां बिजली की बचत होगी, दूसरी ओर फसलों की सिंचाई करने के लिए उन्हें बिजली पर निर्भर नहीं रहना पडे़गा।
इस सरकार ने पारंपरिक स्ट्रीट और घरेलू लाइट के स्थान पर एलईडी लाइट लगाने के कार्यक्रम की शुरूआत की थी जिसके अंतर्गत अब तक करीब तीस करोड़ एलईडी बल्ब लगाए जा चुके हैं। बिजली की खूब बचत भी हो रही है और पैसे भी बच रहे हैं। पर्यावरण के लिए भी यह अनुकूल है। तीन करोड़ टन कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो गया है। यह परियोजना तेईस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चलाई जा रही है।
सबसे बड़ी बात है कि इसके चलते खर्च और बिजली की तो बचत हो ही रही है, इसकी रोशनी भी ज्यादा तेज है। पहली बार भारत बिजली का निर्यातक देश बना है। चार साल पहले देश अभूतपूर्व बिजली संकट झेल रहा था। ऐसा पहली बार हुआ है कि अब देश में खपत से अधिक बिजली का उत्पादन होने लगा है। मोदी सरकार के प्रयासों से बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है। वितरण में होने वाला नुकसान कम हुआ है। पारदर्शी ढंग से कोयला उत्पादन बढ़ाया गया है।
जाहिर है कि मोदी सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र को बहुत महत्व दिया। उसने एक साथ अनेक मोर्चो पर कार्य किया। पानी और कोयला से बनने वाली ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाया गया। इस संबन्ध में पिछली सरकार के समय पैदा हुई कठिनाइयों को दूर किया गया। इसी के साथ वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र की भी उपेक्षा नहीं की गई। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा की दृष्टि से चार साल बेमिसाल रहे हैं। सौर ऊर्जा क्लब में सौ से अधिक देशों को जोड़ना नरेंद्र मोदी की बड़ी कामयाबी है। इसके विदेश नीति के क्षेत्र में दूरगामी सकारात्मक प्रभाव दिखाई देंगे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)