भ्रष्टाचार, वंशवाद और वोट बैंक की राजनीति में उलझी सरकारों ने कभी ऐसे दूरगामी महत्व का काम ही नहीं किया। यही कारण है कि जहां आजादी के बाद देश में महज पांच जलमार्गों का विकास किया गया, वहीं मोदी सरकार ने महज चार साल में 106 जलमार्गों को जोड़ा।
हमारे देश में जलपरिवहन की समृद्ध परंपरा रही है। यहां की नदियों में बड़े-बड़े जहाज चला करते थे, लेकिन आजादी के बाद इसे बढ़ावा देने की बजाय इसकी उपेक्षा की गई। नेताओं का पूरा जोर रेल व सड़क यातायात विकसित करने पर रहा, क्योंकि इसमें नेताओं-भ्रष्ट नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी को मलाई खाने के भरपूर मौके थे। इतना ही नहीं, सड़क और रेल परियोजनाएं लेट-लतीफी का शिकार बनाई गईं ताकि मलाई खाने के मौके सूखे नहीं।
लेट-लतीफी की इसी कांग्रेसी संस्कृति का नतीजा है कि चार साल पहले जब प्रधानमंत्री ने वाराणसी और हल्दिया को जलमार्ग से जोड़ने की योजना का उद्घाटन किया तब लोग इसे असंभव मान रहे थे। कई लोग तो प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का मजाक भी उड़ा रहे थे। लेकिन 28 अक्टूबर को हल्दिया से चला मालवाहक जहाज जब 1390 किलोमीटर दूरी तय कर निर्धारित समय से तीन दिन पहले अर्थात 9 नवंबर को वाराणसी पहुंच गया तब आलोचकों ने दांतों तले अंगुली दबा ली।
नेताओं-भ्रष्ट नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी पर कटाक्ष करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार गंगा जी का पैसा पानी में नहीं बहा रही, बल्कि गंगा में जो गंदा पानी आ रहा है, उसे साफ करने में लगा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार सीधे गंगा सफाई अभियान में जुटने के साथ-साथ गंगा नदी को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ रही है ताकि लोग स्वयं नदी संरक्षण से जुड़े। इसे राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 के उदाहरण से समझा जा सकता है।
पूर्वी भारत में जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए वाराणसी और हल्दिया के बीच राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 को मालवाहक जहाजों के परिचालन योग्य बनाया गया है। इसके लिए वाराणसी में एक मल्टी मॉडल टर्मिनल विकसित किया गया है। आगे चलकर वाराणसी से हल्दिया के बीच 20 मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाए जाएंगे।
विश्व बैंक की सहायता से बने इस जलमार्ग के जरिए 1500 से 2000 डीडब्ल्यूटी क्षमता वाले जहाजों का परिचालन संभव होगा। ये जहाज दो से तीन मीटर गहरे पानी में भी सफलतापूर्वक चलेगें और एक बार में 140 ट्रकों में ढोए जाने वाले सामान के बराबर माल ढोएंगे। इन जहाजों का निर्माण भी ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम के तहत देश में ही हो रहा है।
भ्रष्टाचार, वंशवाद और वोट बैंक की राजनीति में उलझी सरकारों ने कभी ऐसे दूरगामी महत्व का काम ही नहीं किया। यही कारण है कि जहां आजादी के बाद देश में महज पांच जलमार्गों का विकास किया गया, वहीं मोदी सरकार ने महज चार साल में 106 जलमार्गों को जोड़ा।
इस प्रकार देश की 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम चल रहा है। इसके साथ ही मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाकर जलमार्गों को सड़क व रेल से जोड़ा जाएगा। वस्तुओं और वाहनों के परिवहन के लिए मोदी सरकार पांच ठिकानों पर 2000 जल बंदरगाह बनाएगी और माल की लोडिंग-अनलोडिंग में काम आने वाली “रोल ऑन–रोल ऑफ वैसेल्स” की स्थापना की जाएगी।
आज भारत औद्योगिक विकास में पिछड़ा है तो इसका एक कारण यह भी है कि यहां परिवहन लागत घटाने पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। महंगी ढुलाई का ही नतीजा है कि भारतीय सामान बाजार में पहुंचते-पहुंचते महंगे हो जाते हैं और प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी सामान की दिल्ली से मुंबई तक की परिवहन लागत मुंबई से लंदन तक के माल भाड़े से ज्यादा होती है। इसे आलू के उदाहरण से समझा जा सकता है।
ऊंची क्वालिटी के बावजूद महंगी ढुलाई के कारण भारतीय आलू अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में पिछड़ जाता है। चिली से नीदरलैंड की दूरी 13000 किमी है जबकि भारत से नीदरलैंड के बीच की दूर महज सात हजार किमी है। इसके बावजूद नीदरलैंड के बाजारों में चिली का आलू सस्ता पड़ता है। इसी तरह के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जहां महंगी ढुलाई के कारण भारतीय सामान ऊंची गुणवत्ता के बावजूद प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाते हैं।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जहां भारत में जल परिवहन की उपेक्षा की गई, वहीं दुनिया भर के देशों ने इसे आसान परिवहन साधन के रूप में अपनाया। उदाहरण के लिए भारत के कुल माल का 6 फीसदी अंतरदेशीय जल परिवहन से ढोया जाता है जबकि चीन में यह अनुपात 47 फीसदी, यूरोपीय देशों में 44 फीसदी और पड़ोसी देश बांग्लादेश में 35 फीसदी है। दूसरी विडंबना यह रही कि भारत में जो माल अंतरदेशीय परिवहन से ढोया जाता है, वह कुछ चुनिंदा स्थानों-नदियों तक सीमित है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस ऐतिहासिक भूल को सुधारने में जुटे हैं।
राष्ट्रीय जलमार्ग-1 उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी से सीधे जुड़ता है। ऐसे में इस जलमार्ग से हथकरघा उत्पाद, अनाज, सब्जियां, खाद, आलू, लीची, खाद्य तेल, कोयला आदि की कम लागत पर ढुलाई हो सकेगी। इसी तरह का अंतरदेशीय जल परिवहन नेटवर्क जब पूरे देश में शुरू हो जाएगा तब न केवल सड़कों पर दबाव कम होगा बल्कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। सबसे बढ़कर सस्ती ढुलाई देश की आर्थिक तस्वीर बदल देगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)