देखा जाए तो आम आदमी के हितों का हवाला देकर सत्ता तक पहुँचने वाली पार्टी घोटालों की सरताज बनती जा रही रही है। दूसरों को ईमानदारी, योग्यता और चरित्र का प्रमाण-पत्र बांटने वाले अरविंद केजरीवाल की खुद की सरकार अपने तीन सालों में भ्रष्टाचार, अनियमितता, और फर्जीवाड़े के दलदल में आकंठ डूब चुकी है।
आम आदमी पार्टी के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। निरर्थक मुददों को लेकर विवादों में रहने वाले पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल फिर से मुश्किल में हैं। ताजा मामले में खबर है कि पार्टी पर 139 करोड़ रुपए के बड़े घोटाले का आरोप है। यह घोटाला निर्माण श्रमिक कोष को लेकर है। दिल्ली सरकार एक बार फिर से कठघरे में खड़ी है। शिकायत के अनुसार दिल्ली लेबर वेलफेयर बोर्ड में उन लोगों का भी गैर-कानूनी ढंग से दिल्ली श्रम कल्याण बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करा दिया गया जो कि श्रमिक की श्रेणी में न आते हुए नौकरीपेशा वर्ग के लोग हैं।
मामला तब उजागर हुआ जब बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष ने भ्रष्टाचार निरोधी शाखा में शिकायत दर्ज कराई। शाखा ने बोर्ड के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। आरंभिक सूचनाओं के अनुसार दिल्ली सरकार अब 139 करोड़ रुपए के फंड स्कैंडल में उलझती नज़र आ रही है। देखा जाए तो आम आदमी के हितों का हवाला देकर सत्ता तक पहुँचने वाली पार्टी घोटालों की सरताज बनती जा रही रही है। दूसरों को ईमानदारी, योग्यता और चरित्र का प्रमाण-पत्र बांटने वाले अरविंद केजरीवाल की खुद की सरकार अपने तीन सालों में भ्रष्टाचार, अनियमितता, और फर्जीवाड़े के दलदल में आकंठ डूब चुकी है।
असल में इस पार्टी की बुनियाद में ही त्रुटि सदा से रही है। केजरीवाल ने उत्साह में आकर पार्टी का गठन तो कर दिया, लेकिन इसे अनुशासन और पारदर्शिता का खाद-बीज नहीं दे पाए, नतीजा पार्टी में पाखंड और कदाचरण के कीड़े पड़ गए। अधिक दिन नहीं बीते जब आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया गया था। उसी कालखंड में पार्टी के नेता ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों से अभद्रता की थी। पूर्ववर्ती समय में यही पार्टी उपचुनाव एवं निकाय चुनाव में बुरी तरह हार का मुंह देख चुकी है।
यानी ना पार्टी की जनता से निभा पा रही है, ना सरकार से। यहां तक भी ठीक था, लेकिन पार्टी अंर्तकलह का भी शिकार रही है, जिसके केंद्र में केवल केजरीवाल का विकृत अहंकार और पतन की पराकाष्ठा तक आत्म केंद्रित हो जाने की ग्रंथि रही है। राज्यसभा टिकट वितरण में केजरीवाल ने जो बंदरबांट दिखाई, उससे उनकी पार्टी के निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं में आक्रोश पनप गया। पार्टी के ही पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने एक के बाद एक करके सिलसिलेवार केजरीवाल को उजागर करना शुरू किया तो केजरीवाल के पास उनके सबूतों के खिलाफ कोई ठोस जवाब नहीं था।
राशन कार्ड घोटाले की आंच अभी थमी ही नहीं थी कि श्रमिक कोष घोटाला अब सामने आ गया है। केजरीवाल की छवि पूरी तरह से अपरिपक्व और विचारधारा तथा नीतियों से विहीन राजनेता के रूप में स्थापित हो गयी है। किसी भी नेता या संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्तिपर बिना सोचे-समझे आरोप लगाना और खुद को फंसता देखकर माफी मांग लेना, अब उनका शगल हो चला है। दूसरी तरफ, ऐसा लगता है जैसे दिल्ली सरकार अब घोटालों और फजीहत की ही सरकार बनकर रह गई है। आने वाले विधानसभा चुनाव में दिल्ली के मतदाता इन सब कारनामों का हिसाब केजरीवाल से जरूर बराबर करेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)