शिवराज सरकार के प्रयासों से प्रदेश में सिंचाई का रकबा भी विगत वर्षों में बढ़ा है। प्रदेश में वर्ष 2003 में जहाँ सिर्फ सात लाख हेक्टेयर के आसपास सिंचित भूमि थी। शिवराज सरकार के प्रयासों से अब यह 45 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसे 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। नहरों के फैलते जाल से आने वाले वर्षों में मध्यप्रदेश में 65 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता देखने को मिलेगी।
खेती-किसानी और उससे जुड़े व्यवसाय मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था एवं विकास की धुरी हैं। यह बात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी सरकार बखूबी समझती है। मुख्यमंत्री शिवराज के हाथ में जब से प्रदेश की कमान है, तब से उन्होंने लगातार किसानों की बेहतरी के लिए प्रयास किए हैं। केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में शिवराज सरकार, दोनों ने अपनी प्राथमिकता में किसानों को रखा है।
मध्य प्रदेश के राजगढ़ में आयोजित ‘किसान-कल्याण महाकुंभ’ के आयोजन से सरकार ने यही संदेश देने का प्रयास किया है कि वह किसानों के हितों की चिंता करने में सदैव की तरह अग्रणी रहेगी। महाकुंभ में शिवराज सरकार ने किसानों को राहत देते हुए 2200 करोड़ रुपये कृषि ऋण का ब्याज माफ करने, मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की लगभग 1400 करोड़ रुपये की राशि जारी करने और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 2900 करोड़ रुपये के दावों के भुगतान अंतरण करने का बड़ा काम किया है।
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कर्जमाफी के वायदे के चक्कर में प्रदेश के किसानों पर कृषि ऋण के ब्याज का बोझ बढ़ गया था, जिसके कारण वे डिफाल्टर हो गए थे, उन्हें सरकार की कृषि संबंध योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। शिवराज सरकार ने किसानों को इस भंवर से निकाल कर बड़ी राहत दी है।
याद हो कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि “कांग्रेस की पूर्व सरकार के समय वर्ष 2018 में ऋणमाफी की उम्मीद में हजारों किसान डिफाल्टर हो गए और खाद बीज लेने से वंचित हो गए। ऐसे दो लाख रुपये तक के फसल ऋण वाले किसानों की पीड़ा को राज्य सरकार ने समझा है और ब्याज माफी का निर्णय लिया है”।
अपनी घोषणा और किसानों के साथ किए वायदे को निभाते हुए पिछले माह ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सागर के प्राथमिक सहकारी साख समिति केरबना के दो किसानों पंचमलाल और जुगरेन्द्र झल्लू का आवेदन भरकर ‘मुख्यमंत्री कृषक ब्याज माफी योजना’ की शुरुआत की दी थी, जिसके अंतर्गत जिला सहकारी केन्द्रीय बैंको से संबद्ध प्रदेश की लगभग साढ़े चार हजार प्राथमिक कृषि साख समितियों में दो लाख रुपये तक के फसल ऋण वाले डिफाल्टर किसानों का ब्याज माफ करने के लिए आवेदन भरने का कार्य शुरु किया गया था।
मध्यप्रदेश में कर्जमाफी या ब्याजमाफी जैसी स्थितियां न बनें, इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जोर रहा है। कर्जमाफी जैसे योजनाएं किसानों के स्वाभिमान के अनुकूल भी नहीं है। किसान तो अपने पुरुषार्थ से देश-प्रदेश का पोषण करता है। प्रदेश के किसानों की अपेक्षा यही रही है कि सरकार ऐसी नीतियां बनाए कि उसे उचित मूल्य पर खाद-बीज और कृषि उपकरण मिलें।
कृषि कार्य के लिए बैंक से उचित दर पर लोन मिल जाए। सबसे महत्वपूर्ण उसकी उपज का ठीक मूल्य उसे प्राप्त हो। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पहले कार्यकाल से इसी बात पर जोर दिया कि किसान के स्वाभिमान को बढ़ाने एवं उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या पहल की जाए?
मध्य प्रदेश में कैसे किसानों के हित में सरकार काम कर रही है, इस बात को आसानी से और तर्कसंगत ढंग से समझना है, तो हमें लगभग 20 साल पीछे पलट कर देखना चाहिए। आज से लगभग 20 साल पीछे जाएं तब हम जान पाएंगे कि आखिर क्यों प्रदेश बदहाली के दौर से गुजर रहा था? उस वक्त प्रदेश में खेती के लिए न तो बिजली थी और न ही सिंचाई सुविधा। उत्पादन और लागत में बड़ा अंतर था।
खेतों के लिए खाद और बीज भी किसान को उपलब्ध नहीं था। किसानों को लगभग 16 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मिल पाता था। किसान ऋण लेने के बाद उसके ब्याज के बोझ से दब जाता था। शिवराज सरकार ने सबसे पहले इस व्यवस्था को बदला, आज प्रदेश के किसान को शून्य ब्याज दर पर कृषि ऋण मिलता है। किसान क्रेडिट कार्ड ने किसानों को कर्ज उपलब्ध कराने में एक क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है।
शिवराज सरकार के प्रयासों से प्रदेश में सिंचाई का रकबा भी विगत वर्षों में बढ़ा है। प्रदेश में वर्ष 2003 में जहाँ सिर्फ सात लाख हेक्टेयर के आसपास सिंचित भूमि थी। शिवराज सरकार के प्रयासों से अब यह 45 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसे 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। नहरों के फैलते जाल से आने वाले वर्षों में मध्यप्रदेश में 65 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता देखने को मिलेगी।
‘किसान-कल्याण महाकुंभ’ में लोकार्पित ‘मोहनपुरा-कुंडालिया प्रेशराइज्ड पाइप सिंचाई प्रणाली’ को सरकार के इसी संकल्प के अंतर्गत देखना चाहिए। लगभग 8500 करोड़ की लागत की यह देश की पहली वृहद प्रेशराइज्ड पाइप सिंचाई परियोजना है। इसके अतिरिक्त भी प्रदेश में नर्मदा कछार की 24 हजार 500 करोड़ रुपए से अधिक लागत की 5 लाख 50 हजार हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई क्षमता वाली 12 परियोजनाओं के निर्माण की कार्यवाहियां प्रारम्भ हो गई हैं।
प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार, जल संसाधन विभाग द्वारा निर्माणाधीन 475 सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 28 लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई क्षमता विकसित की जा रही है। इन सब प्रयासों के अतिरिक्त भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों के हित में निरंतर सराहनीय प्रयास किए हैं। इसके बावजूद कहना होगा कि अभी भी किसानों की स्थिति सुधारने के लिए बहुत काम किए जाने बाकी हैं। उत्साहजनक बात यह है कि इस दिशा में सरकार प्रयासरत भी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि “अन्नदाताओं की कठिनाइयों को दूर करके उनके जीवन में समृद्धि और खुशहाली लाना ही मेरे जीवन का ध्येय है”। मुख्यमंत्री का यह विचार किसानों के प्रति उनकी संवेदनाओं को भली प्रकार प्रकट करता है। यह ध्येय ही है जिसने मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही किसानों की खुशहाली के लिए नीति बनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान को प्रेरित किया।
वह पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने किसानों की आय दोगुनी करने का विचार दिया और उस पर नीतिगत प्रस्ताव बनाने की पहल भी प्रारंभ की। उनके इस प्रयास को वर्ष 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आगे बढ़ाया है।
‘किसान पुत्र’ होने की छवि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विशिष्टता है। उनकी यह छवि राजनीतिक या गढ़ी हुई नहीं है अपितु वास्तविक है। गाँव और खेती-किसानी से उनका गहरा जुड़ाव है। एक छोटे-से गाँव जैत में उनका जन्म साधारण किसान परिवार में हुआ। उन्होंने खेत-खलियान में अपने जीवन का कुछ हिस्सा बिताया है।
इसलिए उनके संबंध में कहा जाता है कि वह खेती-किसानी के दर्द-मर्म और कठिनाइयों को भली प्रकार समझते हैं। अपनी इसी छवि के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय एवं विश्वसनीय हैं। किसानों के हित में निर्णय लेकर उन्होंने यह लोकप्रियता एवं विश्वास कमाया है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)