डॉ. आम्बेडकर के नाम को सही करने, पूरे नाम से आमजन को अवगत कराने के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा होनी चाहिए। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने एक अप्रैल से सरकारी कार्यालयों में डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर की तस्वीर लगाना अनिवार्य कर दिया है। इसी प्रकार राजकीय अभिलेखों में उनका पूरा नाम लिखा जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले में डॉ. आंबेडकर के प्रति सम्मान का भाव है। जबकि जो इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें केवल अपनी राजनीति की चिंता है।
डॉ. आंबेडकर अपने नाम के साथ पिता के नाम को देखकर भावविह्वल होते होंगे। मगर, बिडंबना देखिये उनके नाम पर सियासत करने वालों को इस पर भी आपत्ति है। वह उनके नाम में उतने शब्द ही देखना चाहते हैं, जितने उनकी सियासत में फिट बैठते हैं। जिन्हें उनके नाम के कुछ शब्दों पर कठिनाई है, वह उनका पूरा सम्मान कभी नहीं कर सकते। इसका जवाब तलाशना होगा कि उनके पूरे नाम को किसकी इच्छा से प्रचलन से बाहर किया गया था। कहीं इसके पीछे वह लोग तो नहीं थे, जिन्होंने उनसे संबंधित पांच स्थानों को स्मारक नहीं बनने दिया जिन्हें नरेंद्र मोदी की सरकार ने बनवाया। वैसे ही लोग आज उनके पूरे नाम से बेचैन दिख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने संविधान निर्माता का पूरा नाम क्या लिया, इसपर राजनीति होने लगी। उनके नाम पर राजनीति करने वाले सर्वाधिक परेशान दिखाई दिए। ऐसा लग रहा है कि वे संविधान निर्माता का नाम अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से चलाना चाहते हैं। उन्हें उनके नाम का राम शब्द पसन्द नहीं, इसलिए उसका विरोध कर रहे हैं।
वस्तुतः पूरे नाम का विरोध करने वाले डॉ. आंबेडकर का सम्मान नहीं कर रहे हैं। जो नाम उनको प्रिय था, उसको उनपर राजनीति करने वालो ने अपनी सुविधा के लिए छोटा कर दिया। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन्होंने अपना पूरा नाम भीमराव राम जी आंबेडकर लिखा था। इसका मतलब था कि उन्हें इस पूरे नाम से लगाव था। इसमें उनके पिता के प्रति उनके लगाव और सम्मान का भाव भी समाहित था। लेकिन, उनके नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को डॉ. आंबेडकर की भावनाओं का भी ख्याल नहीं है।
सोचने वाली बात है कि डॉ. आंबेडकर के पूरे नाम को प्रचलन से दूर करने के पीछे क्या उद्देश्य था। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद्र गांधी देश के बच्चे भी जानते हैं। इसी प्रकार नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी लोग जानते हैं। दोनों के पूरे नाम प्रचलन में नहीं हैं, लेकिन नाम के किसी हिस्से को छिपाने का प्रयास भी नहीं हुआ है। जबकि डॉ. आंबेडकर के पूरे नाम से डाक टिकट जारी होने के बाद भी उनके नाम की व्यापक जानकारी लोगों को नहीं हुई।
किसी ने कहा कि यह फैसला समझ से परे है। यह अनावश्यक विवाद खड़ा करने की कोशिश है। बाबा साहेब के नाम में कुछ जोड़ने या घटाने की जरूरत नहीं है। मतलब किसी के सही नाम लिखने में ऐसे लोगों को विवाद उत्पन्न होता दिखाई दे रहा है। ऐसे में प्रश्न यह है कि जिन्हें उनके पूरे नाम पर आपत्ति है, वह उनका क्या सम्मान करते होंगे। यदि डॉ. आंबेडकर के प्रति सम्मान है, तो उनके नाम के एक-एक शब्द के प्रति भी आदर भाव रखना होगा। यह कतई स्वीकार्य नहीं है कि कोई किसी महापुरुष के नाम के आधे शब्द को प्रचलन से बाहर कर दे और जब कोई यह गलती सुधारे, तो उस पर हमला बोलने लगे।
उनके नाम में कुछ भी अतिरिक्त जोड़ा या घटाया नहीं गया है, बल्कि उनके पूरे नाम के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है। इस नाम सुधार की ओर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने ध्यान आकृष्ट किया था। उन्होंने प्रमाणों के आधार पर बताया कि संविधान निर्माता के सरनेम का पहला अक्षर ‘आ’ होगा। आंबेडकर शब्द सही है। अम्बेडकर शब्द गलत है। इसी प्रकार उन्होनें पूरे नाम के प्रति भी सुझाव दिया था।
नाम तो प्रत्येक व्यक्ति का सही ढंग से ही लिखना चाहिए। महापुरुषों के संबन्ध में और अधिक सावधानी रखनी चाहिए। इसलिए डॉ. आम्बेडकर के नाम को सही करने, पूरे नाम से आमजन को अवगत कराने के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा होनी चाहिए। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने एक अप्रैल से सरकारी कार्यालयों में डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर की तस्वीर लगाना अनिवार्य कर दिया है। इसी प्रकार राजकीय अभिलेखों में उनका पूरा नाम लिखा जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले में डॉ. आंबेडकर के प्रति सम्मान का भाव है। जबकि जो इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें केवल अपनी राजनीति की चिंता है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)