अब पहले चरण का मतदान होने में कुछ ही दिन शेष है। भाजपानीत एनडीए, जहां नेतृत्वविहीन और सिद्धांतविहीन महागठबंधन व 55 साल बनाम 55 माह के तुलनात्मक विकास जैसी चीजों को लेकर आगे बढ़ रहा है, वहीं समूचा विपक्ष ‘मोदी हटाओ’ के सहारे चुनावी मैदान में है। कौन मुद्दा और कौन से दल को जनता पसंद करती है, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं, परन्तु इतना तय है कि अभीतक मुद्दों की रेस में मोदी विपक्ष पर भारी नजर आ रहे जबकि विपक्ष के पास नकारात्मक राजनीति के सिवा कुछ नहीं दिखता।
लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है, सभी राजनीतिक दल अपने–अपने ढ़ंग से अपनी पार्टी का प्रचार कर जनता का समर्थन पाने की कवायद में जुटे हुए हैं, किन्तु इस महान लोकतांत्रिक देश में मतदाता अब सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को अपनी अपेक्षाओं की कसौटी पर कसने लगे हैं। उनके मुद्दों, कार्यों तथा विजन का अवलोकन करने लगे हैं, ऐसे में इस चुनाव की दिशा बदलना स्वभाविक है। 17वीं लोकसभा का ये चुनाव ऐसे चुनाव के रूप में दर्ज होगा जब राजनेता वादों की पोटली खोलेंगे तो जनता डिजिटल इंडिया के इस दौर में अपने फोन पर उनके इतिहास के वायदों का हिसाब–किताब टटोलने और उनसे सवाल पूछने से पीछे नहीं हटेगी।
गौरतलब है कि प्रत्येक चुनाव के अपने अलग मुद्दे होते हैं जिसके आधार पर चुनाव होता है। इन मुद्दों में प्रमुख रूप से गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा इत्यादि शामिल हैं, किन्तु अबकी इन सब मुद्दों से हटकर समूचा विपक्ष इस बात पर चुनाव लड़ रहा है कि जैसे भी हो मोदी को हटाना है। एक हैरत में डालने वाली बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष ने जनहित की एक भी लड़ाई नहीं लड़ी।
लोकतंत्र में इसका क्या मतलब निकला जाए? क्या नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष को एक भी ऐसा बड़ा अवसर नहीं दिया? प्रत्येक सरकार की कोई न कोई कमजोरी रहती है और यह स्वभाविक है कि इतने बड़े देश में सब व्यवस्थाएं सुचारू ढंग से चलाना मुश्किल है। जाहिर है, यहाँ सुधार और कमियों की गुंजाइश सदैव बनी रहती है। लेकिन बावजूद इसके मोदी सरकार के कार्यकाल में सही अर्थों में विपक्ष मुद्दाविहीन ही नजर आया है।
जब भी कांग्रेस किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी करती है, उसी मुद्दे पर भाजपा उसके काले अध्याय से उसको आईना दिखा देती है। शर्मनाक यह है कि मोदी सरकार के इस कार्यकाल में विपक्षी दलों की दिलचस्पी झूठे दस्तावेजों, मनगढंत बातों के सहारे व्यर्थ का विमर्श खड़ा करने में ज्यादा रही है।
दूसरी तरफ़ सरसरी तौर पर सरकार के कामकाज को देखें तो यह कार्यकाल एक ऐसी विकास यात्रा नजर आएगा जिसमें प्रत्येक वर्ष भारत क्रमबद्ध ढंग से प्रगति के मार्ग पर बढ़ता गया है। केंद्र सरकार की विदेशी नीति ने विश्व में भारत का गौरव बढ़ाने का काम किया है। इसका सबसे ताज़ा उदारहण है कि एयर स्ट्राइक पर विश्व के किसी भी शक्तिशाली देश ने भारत का विरोध नहीं किया, वहीं पुलवामा आतंकी हमले पर समूचा विश्व हमारे दुःख में सहभागी हुआ था। योग को वैश्विक मान्यता मिलना भी दुनिया में भारत की बढ़ती धाक दिखाता है।
गरीबी इस देश का सबसे अधिक संभावनाओं वाला मुद्दा है। चुनाव आते ही राजनीतिक दलों, खासकर कांग्रेस द्वारा गरीबी दूर करने की कसमें खाई जाने लगती हैं, पर चुनाव के पश्चात गरीब ठगे हुए महसूस करते हैं। किन्तु भाजपानीत केंद्र सरकार ने इस मिथक को तोड़ा है। केंद्र सरकार ने गरीबी को दूर करने के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की और उसे अमल में भी लाया गया।
इस सरकार की कार्य संस्कृति काबिले तारीफ़ है कि योजनाएं केवल कागजों तक सिमटी रहने के बजाय जमीन पर अपना असर दिखाने में कामयाब रहीं। आज देश के सभी कोनों में बिजली पहुँची है, उज्ज्वला योजना के तहत 7,16,57,884 करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ़्त में गैस सिलेंडर दिया गया है, स्वच्छ भारत अभियान के तहत 9,79,04,880 करोड़ शौचालय बनाने में सरकार सफ़ल रही है।
इसे सरकार की गरीबी दूर करने की प्रतिबद्धता और सफल क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति के तौर पर देखा जाना चाहिए। सरकार के प्रयासों के ही फलस्वरूप विश्व की भरोसेमंद संस्था ब्रुकिंग्स के फ्यूचर डवलपमेंट ब्लॉग में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में प्रति मिनट 44 लोग ‘अत्यंत गरीब’ की श्रेणी से बाहर आ रहे हैं। विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि पहले ही भारत को तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बता चुके हैं। इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में देश की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार आया है।
जब भी केंद्र सरकार कोई ऐतिहासिक एवं साहसिक राजनीतिक फैसला लेती है, भले ही वह फैसला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ क्यों न हो, विपक्ष उसमें राजनीतिक नफ़ा–नुकसान को ध्यान में रखकर उसका विरोध करता है। इतना ही नहीं, कई बार यह विरोध खतरनाक और षडयंत्रकारी ढंग से भी किया गया। उदाहरण के लिए सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने जिस ढ़ंग से सेना के पराक्रम संदेह किया उससे विपक्षी दलों का असली चेहरा देश ने देखा।
इस चुनाव में सरकार अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों को जोर–शोर से जनता के बीच रख रही है। जनधन योजना, उज्ज्वला, मुद्रा, स्वच्छ भारत तथा मानवरहित रेलवे फाटकों से निजात नरेंद्र मोदी सरकार की सफ़ल क्रियान्वयन योजनाओं की लंबी फेहरिस्त है, जो जनता के बीच में यह विमर्श खड़ा करने में सहायक हो रहा है कि गत पांच वर्षों में जिस तरह से असरकारी परिवर्तन इस सरकार के दौरान देखने को मिले हैं, यदि आगे इस सरकार को और जनादेश मिलता है तो भारत विकास के मोर्चे पर एक नयी ऊँचाइयों पर विराजमान होगा।
अब पहले चरण का मतदान होने में कुछ ही दिन शेष है। भाजपानीत एनडीए, जहां नेतृत्वविहीन और सिद्धांतविहीन महागठबंधन तथा 55 साल बनाम 55 माह के तुलनात्मक विकास जैसे मुद्दों को लेकर आगे बढ़ रहा है, वहीं समूचा विपक्ष ‘मोदी हटाओ’ के सहारे चुनावी मैदान में है। कौन मुद्दा और कौन से दल को जनता पसंद करती है, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं परन्तु इतना तय है कि अभीतक मुद्दों की रेस में मोदी विपक्ष पर भारी नजर आ रहे जबकि विपक्ष के पास नकारात्मक राजनीति के सिवा कुछ नहीं दिखता।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)