दिखने लगे हैं आईबीसी क़ानून के सकारात्मक परिणाम

आईबीसी के तहत चालू वित्त वर्ष 2019-20 में दबाव वाली संपत्तियों के निपटान से बैंक करीब 80,000 करोड़ रुपये की वसूली कर पायेंगे। यह अनुमान रेटिंग एजेंसी इक्रा के एक अध्ययन में लगाया गया था। हालाँकि, इक्रा के अनुमान से अधिक की वसूली सितंबर, 2019  तक आईबीसी के जरिये की गई है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही तक आईबीसी के तहत 156 मामले सुलझाये गये, जो राशि में 3.32 लाख करोड़ रूपये थी। इनमें कुल वसूली 1.38 लाख करोड़ रूपये की हुई, जो प्रतिशत में 41.5 है। 156 कंपनियों का परिसमापन मूल्य 74997 करोड़ था, लेकिन वसूली परिसमापन मूल्य से 184 प्रतिशत अधिक हुई।

ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं,  हालाँकि, इसका सफर मुश्किलों भरा रहा है। लंबे समय की रणनीति और निरंतर सुधार की परिणति है यह। दूसरे देशों में भी इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन हेतु आईबीसी को लाने में लंबा समय लगा है।  

2016 में आईबीसी अस्तित्व में आया और अपने आगाज के 3 सालों के अंदर ही इसने एनपीए वसूली में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। वर्ष 2016 से पहले कॉर्पोरेट एनपीए की वसूली 16 प्रतिशत से 25 प्रतिशत थी, जो  वित्त वर्ष 2016 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गयी। यह वित्त वर्ष 2015 के मुक़ाबले 12 प्रतिशत अधिक है। 

वादों की ताजा स्थिति 

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2542 मामलों को सितंबर, 2019 तक वादों के रूप में स्वीकृत किया गया, जिसमें से 1045 मामलों में अपील, समाधान, परिसमापन आदि के माध्यम से समाधान निकाला गया और 1497 वादों पर सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है।

एक लाख रुपये के एनपीए मामलों में भी परिचालन कॉर्पोरेट लेनदार एनसीएलटी में वाद दाखिल कर रहे हैं। इसकी वजह से एनसीएलटी बड़े एनपीए खातों का समय से निपटारा नहीं कर पा रहा। वर्ष 2016 के बाद से लोक अदालत में दाखिल किये जाने वाले वादों एवं उनके निपटारे में कमी आई है। ऐसा लगता है कि छोटे लेनदार सरफेसी और डीआरटी की जगह आईबीसी को तरजीह दे रहे हैं।   

सांकेतिक चित्र

चालू वित्त वर्ष में बेहतर वसूली की उम्मीद 

आईबीसी के तहत चालू वित्त वर्ष 2019-20 में दबाव वाली संपत्तियों के निपटान से बैंक करीब 80,000 करोड़ रुपये की वसूली कर पायेंगे। यह अनुमान रेटिंग एजेंसी इक्रा के एक अध्ययन में लगाया गया था। हालाँकि, इक्रा के अनुमान से अधिक की वसूली सितंबर, 2019  तक आईबीसी के जरिये की गई है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही तक आईबीसी के तहत 156 मामले सुलझाये गये, जो राशि में 3.32 लाख करोड़ रूपये थी। इनमें कुल वसूली 1.38 लाख करोड़ रूपये की हुई, जो प्रतिशत में 41.5 है। 156 कंपनियों का परिसमापन मूल्य 74997 करोड़ था, लेकिन वसूली परिसमापन मूल्य से 184 प्रतिशत अधिक हुई। 

30 सितंबर, 2019 के अंत में, 498 कॉर्पोरेट इकाइयों ने स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया शुरू की, जिनमें से अधिकांश कॉर्पोरेट इकाइयाँ छोटी थीं। इनमें से 289 कॉर्पोरेट इकाइयों की पेडअप इक्विटी पूंजी 1 करोड़ रुपये से कम थी, जबकि 45 कॉर्पोरेट इकाइयों की पेडअप इक्विटी पूंजी 5 करोड़ रूपये से अधिक थी। 

आईबीसी में संशोधन 

दिवालिया समाधान प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में संशोधनों को मंजूरी दी है। यह संशोधन ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2019 के जरिये किए जाएंगे। इन संशोधनों में सबसे अहम धारा 32बी जोडऩा है, जिसमें कॉरपोरेट कर्जदार को पिछले आपराधिक कृत्यों से बचाने का प्रावधान है।   

उद्योग मंडल फिक्की और इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) के ताजा सर्वे के अनुसार आईबीसी के लागू होने से बैंकों के फंसे कर्ज की वसूली प्रक्रिया में तेजी आई है और बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार आया है।  

निष्कर्ष

कहा जा सकता है कि 3 वर्ष पूरे होने के बाद आईबीसी के सकारात्मक परिणाम निकलने लगे हैं। इसकी मदद से बड़े एनपीए खातों की वसूली में तेजी आने की संभावना बढ़ी है, जो बैंकों एवं अर्थव्यवस्था की सेहत के लिये बेहद ही मुफीद साबित हो सकता है।