राहुल गांधी के पास जानकारियों को घोर अभाव है। उन्हें आईएस की उत्पत्ति और इस खूंखार आतंकी संगठन के सीरिया में पैर जमाने के इतिहास के बारे में अध्ययन करना चाहिये। यह संगठन इस्लामिक कट्टरता के साथ आतंकियों के उस आपसी गतिरोध का भी परिणाम है जिसमें वर्चस्व की लड़ाई शामिल है। इसका किसी देश की बेरोजगारी से कोई संबंध नहीं है। लेकिन आईएसआईएस का कारण बेरोजगारी को बताने वाले राहुल गांधी ने इसके असल कारण ‘इस्लामिक कट्टरता’ का नाम तक नहीं लिया।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दो दिनों के जर्मनी दौरे पर गए। उन्होंने हैमबर्ग के ब्यूकेरियस समर स्कूल के कैंपनागेल थिएटर एवं बर्लिन में भारतीय समुदाय को संबोधन दिया। वहां जाने का उनका मकसद जो भी रहा हो, मगर जाहिर यही हुआ कि वे वहां केवल और केवल केंद्र की भाजपा सरकार को कोसने गए थे। यह काम वे भारत में भी कर सकते थे, लेकिन पता नहीं उनके विचित्र मन में क्या सूझी कि वे घर के दुखड़े रोने परदेश चले गए।
उन्होंने वहां जाकर क्या कहा, क्यों कहा इस पर तो विस्तार से बात हो सकती है लेकिन सबसे खास बिंदु यह है कि उनके जाने की टाइमिंग क्या रही। सरकार को कोसने जर्मनी जाने के लिए उन्होंने जो समय चुना वो असल में क्या समय था। उस समय देश के हालात क्या थे। जब राहुल जर्मनी गए तब देश में केरल की बाढ़ का संकट सबसे बड़ा विषय बना हुआ है। केरल में बाढ़ की आपदा कोई बीते दो या तीन में नहीं आई, यह एक पखवाड़े से बनी हुई है। राहुल गांधी ने केरल जाकर मौका मुआयना करना शायद उचित नहीं समझा।
विपक्ष उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री करार देता है, लेकिन क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि देश की मौजूदा समस्या से मुंह मोड़कर राहुल अचानक ऐन मौके पर विदेश चले गए और वे वहां जाकर संसद के मानसून सत्र की एक महीने पुरानी बातों की मनमानी व्याख्या करते नज़र आ रहे हैं।
वैसे तो राहुल ने जर्मनी के दो दिनी दौरे में अनेक बिंदुओं पर बोला लेकिन सबका सार एक ही है कि उन्हें केंद्र की मोदी सरकार से समस्या है। हालांकि विपक्ष होने के नाते ऐसा कहना स्वाभाविक है लेकिन विरोध के लिए विरोध करने की प्रवृत्ति के लिए क्या कहा जाए! आपके विरोध में तर्कबल और तथ्यों का समावेश होना चाहिये अन्यथा आप स्वयं हंसी के पात्र बनते हैं। राहुल गांधी के साथ यही हो रहा है।
गत 20 जुलाई को उन्होंने भरी संसद में आंख मारने और प्रधानमंत्री से लिपटने की जो सतही हरकतें की थीं, उस पर पूरे देश में उनका उपहास ही उड़ा है। हैरत है कि इस बचकानी हरकत का बिना मांगा स्पष्टीकरण देने वे जर्मनी चले गए। बेहतर होता कि भारत में यह सब कहते। संसद देश के लोकतंत्र का मंच है जहां विपक्ष के तौर पर उनके पास अहम मसलों पर बोलने का अवसर था, लेकिन जब समय था तब वे वहां मसखरी कर रहे थे। अब समय निकल चुका है तो उन्हें देश के सामने आसन्न बड़े मुद्दे नज़र आ रहे हैं।
जर्मनी में राहुल ने अपने अफलातूनी अंदाज में अजीबोगरीब थ्योरी दी। पता नहीं वे अपनी रिसर्च कहां से करते हैं। आतंकी संगठन इस्मालिक स्टेट पर उन्होंने चौंकाने वाली बात कही कि यदि देश के युवाओं को सरकार ने कोई विजन नहीं दिया तो देश में भी ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं। उन्होंने आइएस आतंकी बनने को बेरोजगारी से जोड़ने का अनोखा समीकरण प्रस्तुत किया।
राहुल गांधी के पास जानकारियों को घोर अभाव है। उन्हें आईएस की उत्पत्ति और इस खूंखार आतंकी संगठन के सीरिया में पैर जमाने के इतिहास के बारे में अध्ययन करना चाहिये। यह संगठन इस्लामिक कट्टरता के अलावा आतंकियों के उस आपसी गतिरोध का भी परिणाम है जिसमें वर्चस्व की लड़ाई शामिल है। इसका किसी देश की बेरोजगारी से कोई संबंध नहीं है।
बगदादी ने इराक में आईएस का फैलाव अपनी धार्मिक कट्टरता को लादने के लिए किया था, जिसने पूरी दुनिया में आतंक की काली इबारत लिखी। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट करते राहुल की तगड़ी खिंचाई की और कहा कि सीरीया में आईएस की उत्पत्ति को राहुल गलत ढंग से परिभाषित कर रहे हैं। देश में बढ़ती उन्मादी हिंसा की घटनाओं के पीछे स्थानीय और क्षणिक कारण रहे हैं लेकिन राहुल ने अपनी अजीब थ्योरी के अनुसार इसे जीएसटी और नोटबंदी से जोड़ दिया।
यह अत्यंत हास्यास्पद तर्क है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। यदि राहुल के पास लिंचिंग की घटनाओं का पूरा अध्ययन है तो उन्हें पता होना चाहिये कि राजधानी नई दिल्ली में दिनदहाड़े डॉक्टर नारंग को और अंकित सक्सेना नामक युवक को मजहब विशेष के लोगों ने मिलकर किस तरह कत्ल किया था। नारंग के समय तो नोटबंदी भी नहीं हुई थी। आपराधिक घटनाओं का अर्थव्यवस्था से कैसे संबंध हो सकता है। उक्त घटनाएं धन के कारण नहीं, अन्य कारणों से हुईं थीं।
असल में नोटबंदी और जीएसटी भारत के इतिहास के दो बड़े आर्थिक सुधार हैं जिन्हें कांग्रेस नहीं ला सकी। इसकी खीझ ही अब कांग्रेस जगह-जगह अर्नगल बयानबाजी करके निकाल रही है। जिस समय राहुल गांधी जर्मनी में बैठकर मोदी सरकार के कार्यों पर सवाल उठा रहे थे, उसी समय देश में गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करोड़ों रुपए की लागत के विकास कार्यों का शुभारंभ कर रहे थे और हज़ारों लोगों को ई-गृह प्रवेश करा रहे थे। प्रगति का इससे अधिक प्रत्यक्ष प्रमाण क्या हो सकता है भला! केंद्र सरकार का विकास क्रम निर्बाध गति से चल रहा है।
राहुल गांधी के पास ना ठोस तर्क हैं, ना तथ्य, ना प्रमाण। वे केवल सतही बयानबाजी कर सकते हैं जो कि उनका सदा से शगल रहा है। निरर्थक और आधारहीन बयान देने के लिए अब प्रसिद्ध हो चुके राहुल गांधी ने जर्मनी में भारतीय पुरुषों को महिलाओं के प्रति सोच बदलने की नसीहत तो दे डाली, लेकिन स्वयं अपनी पार्टी के गिरेबान में झांककर नहीं देखा कि उनकी अपनी पार्टी में महिलाओं का कितना प्रतिनिधित्व है।
जब राहुल के पास कोई मुद्दा नहीं होता तो बार-बार घूम-फिरकर राजीव गांधी हत्याकांड के राग को आलापने बैठ जाते हैं। पूरी दुनिया जानती है कि राजीव गांधी की हत्या हुई थी, लेकिन राहुल बार-बार इसे बोलकर, भुनाने की कोशिश करके क्या साबित करना चाहते हैं, ये समझ से परे है। उन्होंने आज तक देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में कोई बयान नहीं दिया, लेकिन राजीव गांधी की मौत को भुनाने का कोई अवसर नहीं चूकते।
राहुल गांधी क्यों भूल जाते हैं कि देश राजीव गांधी की हत्या से बहुत आगे बढ़ चुका है। देश को केवल मौजूदा संदर्भ में ही सुनना पसंद है, जो कि कांग्रेस जैसी अतीतजीवी पार्टी के बस का नहीं है। राहुल गांधी ने जर्मनी में भले ही अपनी हीनता के चलते मोदी सरकार के खिलाफ बहुत ज़हर उगला हो और मोदी की नकल करते हुए भारतीय समुदाय को प्रभावित करने की बचकानी कोशिश की हो, लेकिन नतीजा बेअसर ही रहेगा। राहुल की अनर्गल बयानबारी से बेफिक्र केंद्र सरकार ने गुजरात में गुरुवार को करोड़ों रुपए के विकास कार्यों की सौगात दी और अपनी विकासमयी यात्रा जारी रखी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)