वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक नीति-संबंधी निर्णय तेजी से लिये जाने के कारण देश में विकास दर के बढ़ने की संभावना बढ़ी है। पूँजी निवेश में सुधार आया है और जीएसटी से जुड़े अवरोध खत्म हो रहे हैं। कृषि, निर्माण और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की बदौलत अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गई, जो पिछली पांच तिमाहियों में सर्वाधिक है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारत-कोरिया व्यापार सम्मेलन को संबोधित करते हुए हाल ही में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 से 8 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने की क्षमता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगले 10 से 20 सालों तक भारत दुनिया की सबसे तेज वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा। वित्त मंत्री के अनुसार बीते महीनों में भारत में कारोबार करना सुगम हुआ है। जीएसटी की प्रक्रिया सरल हुई है और निवेश के माहौल में सुधार आ रहा है।
विश्व बैंक द्वारा अपने द्विवार्षिक प्रकाशन “इंडिया डेवलपमेंट अपडेट्स् इंडियाज ग्रोथ स्टोरी” नामक रिपोर्ट में वित्त मंत्री के अनुमान की पुष्टि करते हुए कहा गया कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2018-19 में 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो सकती है। रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर के 6.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई गई है और कहा गया है कि 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के लिए भारत को ऋण और निवेश से संबंधित मुद्दों को सुलझाने और निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मकता बनाने की पहल करनी होगी। विश्व बैंक ने रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा कि नोटबंदी और जीएसटी का प्रभाव अल्पकालिक था और अब आर्थिक गतिविधियां सामान्य हो रही हैं।
वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि दर के वित्त वर्ष 2018-19 में 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत पहुँचने का अनुमान लगाया है। एजेंसी ने अपनी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में कहा कि चालू वित्त वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार 6.5 प्रतिशत रहेगी। फिच का यह अनुमान केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आधिकारिक अनुमान 6.6 प्रतिशत से महज 0.1 प्रतिशत कम है।
फिच के मुताबिक नीति-संबंधी निर्णय तेजी से लिये जाने के कारण देश में विकास दर के बढ़ने की संभावना बढ़ी है। पूँजी निवेश में सुधार आया है और जीएसटी से जुड़े अवरोध खत्म हो रहे हैं। कृषि, निर्माण और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की बदौलत अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गई, जो पिछली पांच तिमाहियों में सर्वाधिक है।
फिच ने कहा कि सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाये हैं जैसे, न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं मुफ्त स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से किसानों और गरीबों के जीवन को बेहतर बनाने की पहल की है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में माँग बढ़ने की संभावना बढ़ी है। इधर, सड़क निर्माण योजना और बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के माध्यम से सरकार बुनियादी क्षेत्र को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। फिच ने वित्त वर्ष 2018 और वित्त वर्ष 2019 में मुद्रास्फीति के पाँच प्रतिशत से कुछ कम रहने की उम्मीद जताई है, जो रिजर्व बैंक के लक्ष्य के दायरे में है।
उम्मीद के मुताबिक, सीपीआई मुद्रास्फीति भी फरवरी 2018 में घटकर 4.44% हो गई, जोकि पिछले महीने 5.07% थी। इस अवधि में स्वास्थ्य, कपड़े व जूते, परिवहन और संचार को छोड़कर अन्य घटकों की कीमत में गिरावट देखी गई। जनवरी 2018 के 4.58% की तुलना में फरवरी 2018 में खाद्य एवं पेय पदार्थों की कीमत में 3.28% की गिरावट दर्ज की गई। इसी वजह से फरवरी में सीपीआई मुद्रास्फीति में बेहतरी आई। सीपीआई एक्स-फूड की कीमत फरवरी 2018 में 5.37% रही, जो जनवरी 2018 में 5.49% थी।
फरवरी 2018 में ग्रामीण मुद्रास्फीति जनवरी 2018 के 5.21% के मुक़ाबले घटकर 4.37% हो गई, जबकि शहरी सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी 2018 में 4.52% रही, जो जनवरी 2018 में 4.93% थी। इस बीच, कोर सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी 2018 में 5.17% रही, जोकि जनवरी 2018 में 5.14% थी। इस तरह, कुल सीपीआई मुद्रास्फीति वर्ष 2018 में मूल मुद्रास्फीति से नीचे आई है। पहले हफ्ते के मंडी कीमतों से संकेत मिलता है कि सब्जी की कीमत में मार्च 2018 में गिरावट आई है, इसलिए, उम्मीद की जा सकती है कि पहले सप्ताह का रुझान आगे भी कायम रहने पर मार्च 2018 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी 2018 से कम रहेगी। मौजूदा रुख से लगता है कि वित्त वर्ष 2018 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति दर औसतन 4.6% रह सकती है, जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान 5.1% से कम है।
जनवरी में थोक मुद्रास्फीति भी 6 महीने के निचले स्तर 2.84 प्रतिशत पर आ गई है। पिछला निम्न स्तर जुलाई में 1.88 प्रतिशत दर्ज किया गया था। आंकड़ों के अनुसार इस साल जनवरी में खाद्य वस्तुओं की थोक कीमतों में औसत वृद्धि सालाना आधार पर 3 प्रतिशत रही, जबकि दिसंबर 2017 में थोक खाद्य मुद्रास्फीति 4.72 प्रतिशत थी।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) जनवरी 2018 में 7.5% रहा, जो दिसंबर 2017 में 7.1% और जनवरी 2017 में 3.5% था। विनिर्माण क्षेत्र में 8.6% और बिजली क्षेत्र में 7.6% की तेज वृद्धि की वजह से इसमें बढ़ोतरी दर्ज की गई। अप्रैल 2017 से जनवरी 2018 के लिए आईआईपी में संचयी रूप से विकास 4.1% की दर से हुआ, जो पिछले वर्ष समान अवधि में 5.0% था।
उपयोग आधारित वर्गीकरण के अनुसार पूँजीगत वस्तुओं में 14.6% की दर से वृद्धि हुई। प्राथमिक वस्तुओं में 5.8% की दर से वृद्धि हुई। इंटरमीडिएट वस्तुओं में 4.9% और आधारभूत व निर्माण में 6.8% की दर से वृद्धि हुई। उपभोक्ता टिकाऊ और उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं में क्रमशः 8.0% और 10.5% की दर से वृद्धि हुई। विनिर्माण क्षेत्र में 23 उद्योग समूहों में से 16 में जनवरी, 2018 के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। उम्मीद है कि फरवरी 2018 में पहली बार नई श्रृंखला में आईआईपी की वृद्धि दो अंकों में रह सकती है। पिछली बार पुरानी श्रृंखला में आईआईपी वृद्धि अक्टूबर 2010 में दो अंकों में हुई थी।
जीडीपी में बेहतरी आने का सीधा अर्थ है देश में विकास की गतिविधियों में तेजी आना। नोटबंदी का प्रभाव खत्म होने और जीएसटी की प्रक्रिया के सरल होने से कारोबारी माहौल में सुधार आ रहा है, जिससे राजस्व में भी वृद्धि हो रही है। कारोबारी अड़चनों को दूर करने से निवेश में भी तेजी आने की संभावना बनी हुई है। कहा जा सकता है कि मौजूदा सकारात्मक आंकड़े अर्थव्यवस्था में बेहतरी के प्रति आश्वस्त करते हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)