विडंबना देखिये कि आज उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद वही मोदी विरोधी खेमा इसे सरकार का दबाव न मानने के कारण लिया गया उनका निर्णय बता रहा है, जो नियुक्ति के समय उन्हें मोदी का करीबी बताने में लगा था। हालांकि उर्जित ने साफ़ कहा है कि वे निजी कारणों से अपना पद छोड़ रहे हैं। लेकिन सोते-जागते मोदी विरोध का राग आलापने वाले विपक्षी दलों के लिए कोई भी चीज बिना मोदी विरोध के जैसे पूरी ही नहीं होती। चाहें कुछ भी हो जाए, हर हाल में बस मोदी विरोध ही उनका लक्ष्य है।
सितम्बर, 2016 में जब उर्जित पटेल ने आरबीआई गवर्नर का पदभार संभाला था, तब मोदी विरोधी खेमा उन्हें मोदी का बेहद करीबी आदमी बता रहा था। कहा जा रहा था कि उर्जित को इसलिए लाया गया है ताकि वे सरकार की आर्थिक नाकामियों को ढँक सकें। हालांकि देखा जाए तो उर्जित के आने के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किसी बुरी स्थिति में नहीं थी।
बहरहाल, विडंबना देखिये कि आज उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद वही मोदी विरोधी खेमा इसे सरकार का दबाव न मानने के कारण लिया गया उनका निर्णय बता रहा है। जबकि उर्जित ने कहा है कि वे निजी कारणों से अपना पद छोड़ रहे हैं। लेकिन सोते-जागते मोदी विरोध का राग आलापने वाले विपक्षी दलों के लिए कोई भी चीज बिना मोदी विरोध के जैसे पूरी ही नहीं होती। हर हाल में बस मोदी विरोध ही उनका लक्ष्य है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि उर्जित पटेल का इस्तीफा अर्थव्यवस्था के लिए गहरा आघात है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि आत्मसम्मान वाला कोई भी विद्वान् इस सरकार में काम नहीं कर सकता। सवाल यह है कि आखिर इस प्रकार की बातों का आधार क्या है? न तो उर्जित पटेल ने अपने इस्तीफे से पूर्व या उसके बाद सरकार पर दबाव बनाने का कोई आरोप लगाया है और न ही सरकार के किसी मंत्री आदि की तरफ से ही ऐसी कोई बात कही गयी है जिससे दोनों पक्षों में किसी टकराव का संकेत मिलता हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो उर्जित के इस्तीफे के बाद किए ट्विट में उनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि पटेल ने बैंकिंग प्रणाली को अफरातफरी से निकालकर व्यवस्थित और अनुशासित करने का काम किया है। ऐसे में जब इस मामले सम्बंधित लोगों में से किसीकी तरफ से कोई सवाल नहीं उठ रहा तो आखिर किस आधार पर पटेल के इस्तीफे को लेकर इतना शोर मचाया जा रहा है? यदि हाल ही में सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच हुए मतभेदों के आधार पर ये सब बातें कही जा रही हैं, तो भी इनका कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि उर्जित के इस्तीफे से पूर्व ही वो मतभेद दूर हो चुके थे।
एक सवाल यह भी है कि इस तरह के आरोप लगाने वाले सिर्फ हवा-हवाई बातें करने में क्यों लगे हैं, अपनी बात के पक्ष में कोई प्रमाण क्यों नहीं प्रस्तुत कर रहे? दरअसल प्रस्तुत करने के लिए प्रमाण होने भी तो चाहिए और प्रमाण उस चीज के होते हैं जो वास्तव में हुई हो, मनगढ़ंत आरोपों के प्रमाण कैसे हो सकते हैं। बस यही बात इस मामले में भी है। उर्जित पटेल के इस्तीफे पर शोर मचाने वालों के पास सिवाय चिल्ल-पों मचाने के और कुछ नहीं है। मोदी सरकार के खिलाफ तथ्यपरक मुद्दे के अभाव में कांग्रेस आदि विपक्षी दल ऐसी ही बेसिर-पैर की बातों को मुद्दा बनाने में लगे हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)