लोया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला दिल की बात जुबान पर ले आए। उन्होंने कहा कि भले ही यह मामला कोर्ट से निरस्त हो गया हो, लेकिन राजनीतिक लड़ाई में इसे कायम रखा जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि राजनीतिक लड़ाई में इसे कायम क्यों रखा जाना चाहिये। क्या विपक्ष के तौर पर अब कांग्रेस का यही काम रह गया है कि वह मूल मुद्दों से भटककर दीगर और निराधार बातों पर समय नष्ट करे।
हाल ही में सु्प्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया की मृत्यु के मामले में अहम और महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस निर्णायक सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने वे तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनके माध्यम से इस मामले में एसआईटी जांच की मांग उठाई जा रही थी। अब चूंकि कोर्ट का फैसला आ चुका है, ऐसे में इस प्रकरण को भुनाने वाले तत्व सिरे से खीझ उठे हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि कांग्रेस ने जस्टिस लोया की मृत्यु के प्रकरण को भरपूर भुनाने की कोशिश की। ऐसा करते हुए कांग्रेस ने एक बार भी यह सोचना उचित नहीं समझा कि किसी की मृत्यु को तो कम से कम राजनीतिकरण से दूर रखना चाहिये, लेकिन मुद्दों की तलाश में लगभग बदहवास हो चुकी कांग्रेस का नैतिक स्तर इतना गिर चुका है कि अब वह अंधविरोध की राजनीति को ही अपना मुख्य काम समझने लगी है। यह खीझ ही है कि अब कांग्रेस प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग ला रही है।
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि जस्टिस लोया की मृत्यु प्राकृतिक है एवं इसमें कोई साजिश नहीं है। कोर्ट ने याचिकाओं के साजिशन व राजनीति से प्रेरित भी बताया। असल में कई राज्यों में हुए आम एवं निकाय चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस ने शायद भाजपा सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार को ही अपनी नीति बना लिया है। चूंकि जनाधार तो खोता ही जा रहा है, ऐसे में क्या किया जाए, लिहाजा सत्तारूढ़ दल के खिलाफ विष-वमन करके ही कांग्रेस अपनी खीझ मिटा रही है।
निश्चित ही यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बदनाम करने की एक साजिश से बढ़कर कुछ नहीं था। हालांकि अदालत के फैसले के बाद सारी स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। कांग्रेस का सच सामने आ चुका है कि यह पार्टी देश में एक नकारात्मक माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। यह कांग्रेस का अड़ियल रवैया ही है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने न्यायपालिका पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि बिना जांच के फैसला मान्य नहीं है।
कोर्ट के फैसले पर बयान देते समय रणदीप दिल की बात जुबान पर ले आए। उन्होंने कहा कि भले ही यह मामला कोर्ट से निरस्त हो गया हो, लेकिन राजनीतिक लड़ाई में इसे कायम रखा जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि राजनीतिक लड़ाई में इसे कायम क्यों रखा जाना चाहिये। क्या विपक्ष के तौर पर अब कांग्रेस का यही काम रह गया है कि वह मूल मुद्दों से भटककर दीगर और निराधार बातों पर समय नष्ट करे।
यदि कांग्रेस ऐसा कहती है कि जस्टिस लोया का मामला राजनीतिक लड़ाई की विषय-वस्तु है, तो इससे यह स्पष्ट साबित हो जाता है कि कांग्रेस की रुचि मसलों के सच्चे-झूठे होने में नहीं, बल्कि उनका राजनीतिकरण करने में है। कांग्रेस के सुर में सुर मिलाने वाले फेक न्यूज ब्रिगेड की भी देश में कमी नहीं है। वे भी कांग्रेस की ही तरह बिना सोचे-समझे किसी भी विषय पर प्रतिक्रिया देने और उसे फैलाने का गोरखधंधा शुरू कर देते हैं। यह फेक न्यूज ब्रिगेड के मुंह में पर करारा तमाचा ही था, जब लोया के बेटे ने भरी प्रेस वार्ता में साफ-साफ कह दिया था कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाए और परेशान ना किया जाए।
लोया सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के स्पेशल जज थे। वर्ष 2014 के अंत में एक विवाह समारोह में ह्दयाघात के चलते उनकी मृत्यु हो गई थी। इस साल जनवरी में लोया के पुत्र ने स्वयं एक प्रेस वार्ता बुलाकर सारी अटकलों को विराम दे दिया और स्पष्ट कर दिया कि उनके पिता की मृत्यु स्वाभाविक एवं प्राकृतिक थी। न्यायालय के निर्णय के बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस के रवैये की जमकर खबर ली। उन्होंने कहा कि कोर्ट के निर्णय से कांग्रेस की पोल खुल गई है तथा राहुल गांधी की जनहित याचिका पूरी तरह से षड्यंत्रकारी थी।
निश्चित ही योगी की बात में बल झलकता है और कोर्ट के निर्णय के बाद तो अब कांग्रेस को भाजपा एवं न्यायपालिका दोनों से क्षमायाचना करनी चाहिये। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सत्य की जीत का प्रतीक बनकर सामने आया है। अदालत से भद्द पिटने के बाद कांग्रेस बौखला गई है, लेकिन यह पार्टी अब केवल छींटाकशी से अधिक और कुछ करने की स्थिति में नहीं है। कहना न होगा कि कांग्रेस का यही रवैया रहा तो आने वाले समय में देश के मतदाता बची-खुची कांग्रेस को भी दरकिनार कर कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण करने में सहयोग देंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)