कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल पर लोगो का मत जानने के लिए एक सवाल पूछा। सवाल कुछ इस तरह से था कि इराक़ में मारे गये 39 भारतीयों की मौत विदेश मंत्री की बड़ी असफ़लता है ? इस सवाल का जवाब लगभग 33,789 लोगों ने दिया, जिसमें 76% लोगों ने इसे विदेश मंत्री की असफलता मानने से इनकार कर दिया। इस पोल के कारण कांग्रेस की भद्द तो पिटी ही, जनता ने 39 भारतीयों की मौतों पर उसकी शर्मनाक राजनीति को आईना भी दिखा दिया।
इराक़ के मोसुल में जून, 2014 से लापता 39 भारतीयों के जिंदा न होने की जानकारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा दिए जाने के बाद कांग्रेस ने जिस ओछी राजनीति का परिचय सदन के अंदर और सदन के बाहर दिया, वो शर्मनाक और निंदनीय है। इसके बाद कांग्रेस की जम कर फ़जीहत भी हुई है।
कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल पर लोगो का मत जानने के लिए एक सवाल पूछा। सवाल कुछ इस तरह से था कि क्या इराक़ में मारे गये 39 भारतीयों की मौत विदेश मंत्री की बड़ी असफ़लता है ? कांग्रेस को उम्मीद रही होगी कि इस सवाल पर लोग सुषमा स्वराज के खिलाफ वोट करेंगे। इस सवाल का जवाब 33,789 लोगों ने दिया, जिसमें 76% लोगों ने इसे विदेश मंत्री की असफलता मानने से इनकार कर दिया। इस पोल के कारण कांग्रेस की भद्द तो पिटी ही, लोगों ने 39 भारतीयों की मौतों पर उसकी शर्मनाक राजनीति को आइना भी दिखा दिया।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कुछ दिनों पहले सदन में यह दुखद जानकारी देते हुए बताया कि लापता हुए सभी भारतीय आइएस के आतंकियों के द्वारा मारें जा चुके हैं। इनके शवों के अवशेष मोसुल के बदूश स्थित गावं में मिले हैं। समूचे देश के लिए यह एक दुखद और पीड़ादायक घटना है। गौरतलब है कि भारत सरकार, इराक़ के सहयोग से लंबे समय से इस जद्दोजहद में लगी हुई थी कि लापता भारतीयों का कोई भी सुराग मिले, जिससे इस नतीजे तक पहुंचा जाए कि 39 भारतीय जिंदा हैं अथवा नहीं ?
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस पूरे घटना की व्यापक जानकारी देश से साझा करते हुए बताया कि 39 में से 38 शवों की डीएनए जांच से पहचान कर ली गई है। एक व्यक्ति के माता –पिता नहीं हैं, किन्तु उस 39वें शव का भी उसके रिश्तेदारों के डीएनए से मिलान हो गया है। मृतकों में 27 लोग पंजाब, छह बिहार, चार हिमाचल प्रदेश और दो पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे।
गौरतलब है कि जून, 2014 में आइएस ने इराक़ को अपने गिरफ़्त में ले लिया था, जिसके बाद उन्होंने अपने क्रूर रवैये से वहाँ के आम जन जीवन को पूरी तरह से तहस–नहस कर दिया। इसी बीच चालीस भारतीय कामगरों को आईएस ने बंधक बना लिया। इनके साथ कुछ बंग्लादेशी नागरिक भी थे। इन्हीं बंग्लादेशी नागरिकों के साथ भारत के एक व्यक्ति हरजीत मसीह को बांग्लादेशी बताकर किसी तरह स्वदेश वापस लाया गया था। उनका दावा था कि उसी वक्त आतंकियों ने भारतीय नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि बिना किसी प्रमाण के सरकार ने इस दावे को खारिज़ कर दिया था। जुलाई, 2017 में जब मोसुल आईएस से आज़ाद हुआ तो भारत सरकार ने अपने प्रयासों में तेज़ी लाई और शवों की शिनाख्त करने में कामयाबी हासिल हुई।
निश्चित तौर पर यह पूरा घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है, किन्तु शर्मनाक यह है कि इस संवेदनशील मामले पर कांग्रेस द्वारा राजनीतिक बयानबाज़ी की जा रही है। सुषमा स्वराज को जैसे ही इस जानकरी की पुष्टि प्राप्त हुई, उन्होंने अपने वायदे के अनुसार सदन के माध्यम से यह महत्वपूर्ण जानकारी देश से साझा की। राज्यसभा में शांतिपूर्वक इस बात को सुना और मृतकों को श्रध्दांजलि भी अर्पित की गई। किन्तु, लोकसभा में कांग्रेस ने इस संवेदनशील मसले पर जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया, उसकी जितनी निंदा की जाए कम है।
कांग्रेस ने विदेश मंत्री पर यह आरोप लगाया कि सरकार ने इस जानकारी को जानबूझकर छुपाये रखा और देश को गुमराह किया। कांग्रेस के इस आरोप की पड़ताल करें, तो सवाल यह है कि सरकार भारतीय नागरिकों के जीवित या मृत होने की बात क्यों छुपाएगी ? बल्कि विदेश राज्य मंत्री बी. के. सिंह कई बार इराक़ गए और इस मामले पर युद्ध स्तर के प्रयास किए गए। परिणामस्वरूप हमें उन भारतीयों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। सरकार अगवा भारतीयों को बगैर किसी सुबूत के मृत घोषित कर देती तो यह असंवेदनशीलता होती। बिना किसी ठोस प्रमाण के किसी के आस्तित्व को सुनी-सुनाई बातों के आधार पर समाप्त कर देना एक गैरजिम्मेदाराना और असंवेदनशील कदम होता। इसलिए यह काबिले गौर है कि सरकार ने शवों की शिनाख्त व पर्याप्त प्रमाणों की प्राप्ति के उपरांत ही इस पीड़ादायक घटना को देश के साथ साझा किया।
कांग्रेस को बताना चाहिए कि क्या वह यह चाहती थी कि सरकार बगैर किसी प्रमाणिकता के 39 भारतीयों को जीवित या मृत घोषित कर दे ? क्या सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती ? क्या कांग्रेस अपने कार्यकाल में जवाबदेही से बचने के लिए लापता व्यक्तियों को ऐसे ही मृत मान लेती थी ? सुषमा स्वराज की कार्यशैली की प्रशंसा विदेशों तक में होती है कि कैसे वे एक-एक ट्विट में आई समस्या का समाधान करने के लिए तत्पर रहती हैं। इस मामले में भी उन्होंने भारतीयों को जीवित लाने का पूर्ण प्रयत्न किया, परन्तु यह इतना आसान नहीं होता, सो सफलता नहीं मिल सकी जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया। ऐसे में, कांग्रेस द्वारा सुषमा स्वराज को निशाने पर लेना खुद उसके लिए ही नुकसानदेह है जिसकी एक बानगी ट्विटर पर कांग्रेस द्वारा करवाई गयी वोटिंग में दिख भी गयी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)