जिस देश में ट्रकों के खलासी के ट्रक मालिक बनने की अनगिनत गाथाएं हों, वहां राहुल गांधी कोका कोला और मॅकडोनाल्ड का उदाहरण देकर कंपनी खड़ी करने का फार्मूला सुझा रहे हैं। देश में बैंकों के दरवाजे गरीबों के लिए नहीं खुले तो इसके लिए कांग्रेस का साठ साल का शासन जिम्मेदार है न कि मोदी सरकार। मोदी सरकार ने तो अपने अबतक के शासन में करोड़ों गरीबों को बैंकिंग तंत्र से जोड़ने का कमाल कर दिखाया।
कांग्रेस में नई जान फूंकने की कवायद में जुटे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने विचित्र–विचित्र बयानों से सुर्खियां बटोरने में माहिर हैं। कांग्रेस के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने सशक्तीकरण का एक ऐसा फार्मूला सुझाया जो किसी के गले नहीं उतरा। उनके मुताबिक इस देश में हुनर की कद्र करने वाले नहीं हैं। यही कारण है कि यहां मॅकडोनाल्ड व कोका कोला जैसी दिग्गज कंपनियां नहीं बन पाईं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कोका कोला बेचने वाला पहले शिकंजी बेचता था। जब उसके पास पैसे आ गए तब उसने कोका कोला बेचना शुरू किया। इसी तरह मॅकडोनाल्ड का इतिहास बताया कि इस दिग्गज कंपनी की शुरूआत एक ढाबा मालिक ने की थी। फोर्ड, मर्सिडीज, होंडा कंपनियों की शुरूआत छोटे-मोटे मेकेनिक ने की थी। ये लोग इसलिए दिग्गज कंपनियों की स्थापना कर पाए, क्योंकि उन्हें बैंकों से कर्ज मिला लेकिन हमारे देश में बैंकों के दरवाजे गरीबों के लिए नहीं खुले।
राहुल के उदाहरणों में तथ्यों की जो त्रुटियाँ हैं सो तो हैं ही, लेकिन साथ ही उन्होंने अपने इस बयान से कांग्रेस की साठ सालों की नाकामी को ही उजागर करने का काम किया है। आखिर कांग्रेस के साठ सालों के शासन में बैंकों तक गरीबों की पहुंच क्यों नहीं बन पाई। गौरतलब है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बावजूद बैंकों के दरवाजे संपन्नों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल ही बने रहे।
दूसरे शब्दों में बैंकिंग प्रणाली में पूंजीपतियों के लिए जितनी जगह रही, गरीबों के लिए उतनी नहीं बन पाई। यही कारण है कि देश में उद्यमशीलता का विकास नहीं हो पाया और लोग सरकारी नौकरियों के पीछे भागते रहे। यदि देश में औद्योगिक कार्य संस्कृति का विकास होता और लोगों को रियायती दर पर सुविधा मिलती तो करोड़ों लोग उत्पादक गतिविधियों में शामिल हो जाते।
स्पष्ट है कि देश में दिग्गज कंपनियों की स्थापना न होने के लिए मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की बजाय राहुल गांधी को यह बताना चाहिए कि गरीबों को बैंक से कर्ज न मिलने के लिए कौन जिम्मेदार है ? गरीबी हटाओ का नारा लगाने के बावजूद आखिर गरीब क्यों बढ़ते गए ?
राहुल गांधी के पास इन सवालों का जवाब जरूर होगा लेकिन वे देंगे नहीं, क्योंकि इससे कांग्रेस की ‘बांटो और राज करो’ वाली नीति उजागर हो जाएगी। हां, राहुल गांधी के सवाल का जवाब विश्व बैंक ने जरूर दे दिया है। प्रधानमंत्री जन धन योजना पर अपनी हालिया रिपोर्ट में विश्व बैंक ने बताया है कि 2014-17 के बीच दुनियाभर में 51.4 करोड़ बैंक खाते खोले गए, जिसमें से 55 प्रतिशत बैंक खाते सिर्फ भारत में खोले गए। इन नए खातों में से 53 प्रतिशत खाते महिलाओं के खोले गए।
विश्व बैंक ने इस मुहिम की प्रशंसा करते हुए कहा है कि इससे देश की करोड़ों महिलाओं को औपचारिक बैंकिंग तंत्र से जुड़ने का मौका मिला। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री जन धन योजना ने गांवों और शहरों के बीच की खाई को भी पाटने का काम किया। रिपोर्ट के अनुसार 2014-17 के बीच देश में जितने बैंक खाते खोले गए उसमें से 58 प्रतिशत ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में स्थित बैंक शाखाओं में खुले। इन सबका नतीजा यह हुआ कि 2017 में 80 प्रतिशत वयस्कों का बैंक खाता हो गया, जबकि 2014 में यह अनुपात 53 प्रतिशत और 2011 में महज 35 प्रतिशत ही था।
राहुल गांधी को आइना दिखाने के लिए मुद्रा योजना की कामयाबी ही पर्याप्त है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत अब तक 6.03 लाख करोड़ रूपये का लोन बांटा गया जिससे 12.92 करोड़ लोगों को रोजगार मिला। इनमें से जीवन में पहली बार लोन लेने वाले 4 करोड़ लोग हैं। क्या राहुल गांधी यह बताएंगे कि कांग्रेस के 60 साल के शासन काल में कितने गरीबों को बैंक से लोन मिला था ?
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)