ओआईसी द्वारा भारत को अपने सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में बुलाना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए मेजबान और अन्य सदस्य देशों ने पाकिस्तान की गुहार को भी नजरअंदाज कर दिया। वह भारत को रोकने के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन उसकी एक न सुनी गई। जबकि पाकिस्तान इसके संस्थापक सदस्यों में शामिल रहा है।
भारतीय विदेश नीति में नया अध्याय जुड़ा। पाकिस्तान से तनाव के बीच इस्लामी देशों के सम्मेलन में भारतीय विदेशमंत्री को विशिष्ठ अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। ओआईसी सम्मेलन में पहली बार भारत को यह अवसर मिला। सुषमा स्वराज इसमें शामिल हुईं। इतना ही नहीं, उन्होंने आतंकवाद को बड़ी वैश्विक समस्या बताया। इससे मानवता को होने वाले नुकसान की ओर ध्यान आकृष्ट किया। सम्मेलन ने उनके संबोधन को गंभीरता से सुना। सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारों-इशारों में ही सबकुछ कह दिया। इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है। एक तो लंबे समय से वह आतंकवाद को संरक्षण दे रहा है।
एक तरफ वह भारत से वार्ता की पेशकश करता है, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान भारत से एक मौका देने की अपील कर रहे थे। लेकिन उसने भारत को शामिल करने के विरोध में इस सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि मेजबान सऊदी अरब से बार बार गुहार लगाई, भारत को दिया गया निमंत्रण निरस्त करने को कहा, लेकिन सऊदी अरब ने उनकी एक न सुनी। इसलिए पाकिस्तान ने वहां न जाने का निर्णय लिया।
यह भारत की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है। कुछ समय तक यह कल्पना करना भी संभव नहीं था कि इस सम्मेलन से पाकिस्तान बाहर रहेगा और भारत को विशिष्ट अतिथि का सम्मान दिया जाएगा। वस्तुतः यह प्रधानमंत्री की दूरदर्शी विदेश नीति का परिणाम है। उन्होंने मुस्लिम देशों की सफल यात्रा की, वहां के लोगों का विश्वास उन्हें हासिल हुआ।
मोदी के सौर ऊर्जा प्रस्ताव को भी अरब देशों का समर्थन मिला था। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ में नरेंद्र मोदी के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को अरब देशों ने भी स्वीकार किया था। इस दिन वहाँ भी बड़े पैमाने पर योग के कार्यक्रम होते हैं। इन्हीं मुस्लिम देशों ने इकहत्तर के युद्ध में पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया था। कुछ देशों ने कहा था कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ एक हजार वर्ष तक लड़ेगा तब भी उसे समर्थन मिलता रहेगा।
मोदी की मध्यपूर्व नीति की बड़ी सफलता यह भी है कि उन्होंने अरब मुल्कों और इजरायल के साथ दोस्ती को मजबूत किया। इसके पहले कांग्रेस की सरकारों में इजरायल से दोस्ती को लेकर बड़ा संकोच था। उन्हें लगता था कि इजरायल के साथ दोस्ती मुस्लिम देशों को नाराज कर देगी। मोदी ने साहस दिखाया। अरब और इजरायल दोनों से संबन्ध बेहतर बनाकर दिखा दिया।
इस्लामिक सहयोग संगठन अर्थात ओआईसी का गठन उन्नीस सौ उनहत्तर में किया गया था। सत्तावन मुल्क इसके सदस्य हैं। इसके सम्मेलन में सुषमा स्वराज ने जोरदार ढंग से अपनी बात रखी। कहा कि आतंकवाद का दायरा बढ़ रहा है। बात सही भी है। यह अमेरिका और यूरोप के देशों तक पहुंच गया है। ये देश आज भी आतंकी हमलों से बचाव का इंतजाम मुस्तैदी से करते हैं।
भारत ने सदैव विश्व शांति और मानवता की बात कही है। आतंकवाद ने इन दोनों के सामने चुनौती पेश की है। यदि दुनिया में शांति, सौहार्द कायम करना है, मानवता को सुरक्षित रखना है तो आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति बनानी होगी। इसमें सभी देशों का सहयोग अपरिहार्य है। क्योंकि आतंकवाद अब किसी एक क्षेत्र की समस्या नहीं है।
सुषमा स्वराज ने कहा कि आतंकवाद सारी दुनिया के लिए खतरा है, उसे पनाह देना और फंडिंग को बंद करना चाहिए। आतंकवाद से लड़ाई किसी धर्म से लड़ाई नहीं है। आतंकवाद का विस्तार हो रहा है। हममें से बहुतों ने लगभग एक साथ ही आजादी का सूरज और उम्मीद की किरण देखी थी। हम सम्मान और बराबरी के लिए एक साथ खड़े रहे हैं।
आतंकवाद दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। उसे संरक्षण और वित्तीय सहायता देने वालों पर कड़ाई से रोक लगानी होगी। ओआईसी के सदस्य देश इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उन देशों पर दबाव बनाया जाए जो इसका समर्थन करते हैं और इसे फंडिंग करते हैं। ऐसे देशों से कहना चाहिए कि वह आतंकवादी ढांचे को खत्म करे। सुषमा स्वराज ने भारतीय विचारों को भी प्रभावी ढंग से रखा। कहा कि मैं उस देश की प्रतिनिधि हूं, जो ज्ञान का भंडार, शांति का दूत और आस्था व परम्पराओं का स्रोत रहा है। बहुत-से धर्मों का घर रहा है और दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
जाहिर है कि ओआईसी द्वारा भारत को अपने सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में बुलाना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए मेजबान और अन्य सदस्य देशों ने पाकिस्तान की गुहार को भी नजरअंदाज कर दिया। वह भारत को रोकने के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन उसकी एक न सुनी गई। जबकि पाकिस्तान इसके संस्थापक सदस्यों में शामिल रहा है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो बाकायदा सऊदी अरब को पत्र लिखा। उनका कहना था कि पाकिस्तान ओआईसी का संस्थापक सदस्य रहा है। भारत के साथ उसका विवादित मुद्दा कश्मीर है। भारत ओआईसी के प्रस्तावों को खारिज करता रहा है। ऐसे में नैतिक व कानूनी रूप में उसे बुलाना गलत है।
पाकिस्तान को ओआईसी से ऐसा झटका पहली बार लगा है। इसका सीधा मतलब है कि ये मुल्क भारत की बात सुनना चाहते थे। इसके अलावा इन्होंने पाकिस्तान की वास्तविकता को भी स्वीकार किया। ओआईसी के सदस्यों को चाहिए कि वह पाकिस्तान पर दबाव बनाएं। अन्यथा पाकिस्तान के संरक्षण में वैश्विक आतंकवाद की समस्या जटिल होती जाएगी।
ओआईसी की स्थापना के समय इसका उद्देश्य बताया गया था कि इसमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सद्भावना को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। आतंकवाद शांति और सद्भावना को कमजोर कर रहा है। ऐसे में ओआईसी को विचार करना होगा कि वह अपने इस उद्देश्य में कितना सफल हो रहा है। जबकि समस्या उसी का एक संस्थापक देश बढ़ा रहा है। ओआईसी का विचार तो बदल है।
पचास वर्ष पहले इसके सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि सम्मेलन फखरुद्दीन अली अहमद के नेतृत्व में गया था। लेकिन पाकिस्तान ने विरोध किया, इसके कारण भारतीय प्रतिनिधि मंडल को वहां प्रवेश तक नहीं मिला। उसे लौटना पड़ा। इस बार ओआईसी ने भारत को विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत को आमंत्रित किया और भारतीय विदेशमंत्री के भाषण को ध्यानपूर्वक सुना। भारत के इस विचार को वहां महत्व दिया गया। यह भारतीय विदेश नीति की बड़ी सफलता है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)