रेलवे लाइन के निर्माण के बाद उत्तराखंड जहां परिवहन कनेक्टविटी की दृष्टि से लंबी छलांग लगा सकेगा, वहीं पर्यटकों व तीर्थयात्रियों के लिए आवागमन का एक सुलभ व सस्ता साधन उपलब्ध हो सकेगा। रेल यातायात शुरू होने पर ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक की दूरी, जिसे पूरा करने में सड़क मार्ग से लगभग 6 घंटे का समय लगता है, वो मात्र 2 घंटे में पूरी हो सकेगी। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े उत्तराखंड में इस परियोजना का सामरिक कारणों से बेहद महत्व है। मगर इसके साथ ही पलायन जैसी समस्या से ग्रस्त राज्य के लिए रेल लाइन उम्मीदों की कई किरणों को साथ लेकर आएगी, यह मानना भी गलत नहीं होगा।
उत्तराखंड के पहाड़ों में रेल यात्रा का सपना सदियों पुराना है। ज्ञात इतिहास में पहाड़ों में रेल लाइन को लेकर एक संदर्भ वर्ष 1914 के प्रथम विश्व युद्ध के नायक विक्टोरिया क्रॉस दरबान सिंह नेगी से जुड़ा हुआ है। संदर्भ यह है कि प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजी साम्राज्य के तत्कालीन सम्राट जार्ज पंचम ने युद्ध में गढ़वाल राइफल के नायक दरबान सिंह नेगी की वीरता को देखते हुए उन्हें सर्वोच्च सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया। इस दौरान ब्रिटेन के महाराजा ने नेगी से उनकी इच्छाएं पूछी। कहा जाता है कि नेगी ने महाराजा से अपनी एक इच्छा कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने के रूप में व्यक्त की।
इतिहास में वर्ष 1924 में अंग्रेजों द्वारा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का पहली बार सर्वे का विवरण मिलता है। इससे पूर्व अंग्रेज मसूरी तक रेल लाइन का सर्वे भी कर चुके थे। किन्तु तत्कालीन वैश्विक परिस्थितियों और द्वितीय विश्व युद्ध को लेकर चल रहे घटनाक्रम के कारण वो अपनी इन योजनाओं को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके।
रेल लाइन पहाड़ों तक पहुंचाने के पीछे अंग्रेजों का अपना स्वार्थ भी था। वो प्रकृति प्रेमी थे और उन्हें पहाड़ की जलवायु अनुकूल लगती थी। अंग्रेजों ने पहाड़ की कंदराओं की छान मारी थी। इसका प्रमाण यह है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में वन विभाग अथवा लोक निर्माण विभाग के अधिकांश विश्राम गृह अंग्रेजी शासन काल में निर्मित हुए हैं, जिन्हें डाक बंगला कहा जाता था।
मगर, दुर्भाग्य देखिए कि स्वतंत्रता प्राप्ति के वर्षों बाद तक भारत की सरकारें पहाड़ पर रेल पहुंचाने की दिशा में इंच भर भी आगे नहीं बढ़ पाई। पहाड़ में रेल लाइन बिछाने की कल्पना पहाड़ जैसी दुष्कर लगने लगी थी। समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण की मांग उठती रही। मगर यह मांग अनसुनी होती रही। पहाड़वासियों को भी कर्णप्रयाग तक रेल लाइन एक तरह से दिवास्वप्न ही लगने लगी थी।
वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित होने पर उत्तराखंड वासियों के बहुप्रतीक्षित स्वप्न के मूर्त रूप लेने के आसार बने। मोदी सरकार ने कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने के संकल्प को व्यक्त किया और तमाम औपचारिकताओं को पूरा करते हुए सत्ता संभालने के लगभग दो वर्ष के भीतर वर्ष 2016 में इस रेल परियोजना को 16,216 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति भी प्रदान कर दी।
125 किमी लंबी इस रेलवे लाइन के निर्माण का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक रखा गया है। इस रेल परियोजना में 12 स्टेशन, 17 सुरंगों व 35 पुलो का निर्माण किया जाएगा। यात्रियों के लिए रोमांचकारी साबित होने वाली इस रेलवे लाइन में सबसे लंबी सुरंग 15 किमी की होगी।
रेलवे लाइन के निर्माण के बाद उत्तराखंड जहां परिवहन कनेक्टविटी की दृष्टि से लंबी छलांग लगा सकेगा, वहीं पर्यटकों व तीर्थयात्रियों के लिए आवागमन का एक सुलभ व सस्ता साधन उपलब्ध हो सकेगा। रेल यातायात शुरू होने पर ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक की दूरी, जिसे पूरा करने में सड़क मार्ग से लगभग 6 घंटे का समय लगता है, वो मात्र 2 घंटे में पूरी हो सकेगी। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े उत्तराखंड में इस परियोजना का सामरिक कारणों से बेहद महत्व है। मगर इसके साथ ही पलायन जैसी समस्या से ग्रस्त राज्य के लिए रेल लाइन उम्मीदों की कई किरणों को साथ लेकर आएगी, यह मानना भी गलत नहीं होगा।
केंद्र सरकार द्वारा इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। इसकी सतत् निगरानी स्वयं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की जा रही है। रेल विकास निगम लिमिटेड द्वारा निर्माणाधीन इस रेल परियोजना की प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी लगातार समीक्षा की जा रही है।
बीते दिनों मुख्यमंत्री रावत के समक्ष अधिकारियों ने बताया कि रेल परियोजना के लिए जरूरी भूमि का अधिग्रहण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को क्षतिपूर्ति के मामलों का निपटारा जल्द से जल्द करने का निर्देश दिया है। बैठक में रेलवे अधिकारियों ने जानकारी दी है कि वीरभद्र-न्यू ऋषिकेश सेक्शन का कार्य फरवरी 2020 तक पूर्ण हो जाएगा। न्यू ऋषिकेश से देवप्रयाग तक वर्ष 2023-24 व देवप्रयाग से कर्णप्रयाग तक का कार्य 2024- 25 तक पूर्ण होगा। यानि कि पहाड़ में रेल का सपना पूरा होने में 4 से 5 वर्ष का समय ही शेष रह गया है।
रेलवे के क्षेत्र में मोदी सरकार की उत्तराखंड के लिए एक अन्य सौगात चार धामों को रेल परिवहन से जोड़ने की है। लगभग 327 किमी लंबी इस परियोजना से उत्तराखंड स्थित यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ को रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा। लगभग 40 हजार करोड़ से अधिक की इस परियोजना का लोकेशन सर्वे जारी है। यह सर्वे जनवरी 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा। चारधाम रेल परियोजना में 21 रेलवे स्टेशन व 61 टनल प्रस्तावित हैं।
बहरहाल, यह दोनों रेल परियोजनाएं उत्तराखंड के विकास में एक नया आयाम जोड़ने में मददगार साबित होंगी। रेल परियोजनाओं के निर्माण के दौरान रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। प्रदेश में आर्थिकी का नया संचार होगा। और जब यह परियोजनाएं मूर्त रूप लेंगी, तब रेल पहाड़ की कष्टप्रद व समय साध्य यात्रा से लोगों को छुटकारा दिलाएगी। अंततः, मोदी सरकार का यह प्रयास उत्तराखंड के लिए युगांतरकारी और नया इतिहास रचने वाला होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)