चूल्हे का धुंआ महिलाओं को बीमार बनाता रहा तो इसकी वजह यह है कि पिछली कांग्रेसी सरकारों ने आम लोगों को स्वच्छ ईंधन मुहैया कराने के लिए गंभीर प्रयास किया ही नहीं। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। देश में एलपीजी वितरण की शुरूआत 1955 में हुई थी और 2014 तक अर्थात साठ वर्षों के दौरान सिर्फ 14 करोड़ लोगों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराया जा सका। दूसरे, एलपीजी का दायरा शहरी व कस्बाई इलाकों तथा गांवों के समृद्ध वर्ग तक सिमटा रहा। स्पष्ट है कि सरकारी उदासीनता के चलते चूल्हे के धुंएं से हर साल करोड़ों लोग बीमार पड़कर गरीब बनते रहे।
आजादी के बाद गरीबी मिटाने की सैकड़ों योजनाओं के बावजूद गरीबों की तादाद में अपेक्षित कमी नहीं आई तो इसका कारण है कि हमने उन कारणों को दूर नहीं किया जो लोगों को गरीबी के बाड़े में धकेलती हैं। आजादी के बाद से ही सरकारों का पूरा जोर सस्ता राशन और भत्ता बांटने पर रहा ताकि गरीबों में असंतोष न पनपे और वोट बैंक की राजनीति बदस्तूर चलती रहे। यदि सरकारों ने बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई होती तो आज गरीबी की समस्या इतनी भयावह रूप न धारण करती। यहां परंपरागत चूल्हों से होने वाले प्रदूषण और मौत का उदाहरण प्रासंगिक है।
चूल्हे के धुंए से होने वाली गैर-संचारी बीमारियों के कारण देश में हर साल पांच लाख महिलाएं मौत के मुंह में चली जाती रही हैं। इनमें से अधिकतर की मृत्यु का कारण गैर संचारी रोग जैसे हृदय रोग, आघात, फेफड़े संबंधी बीमारियों के कारण होती है। घरेलू वायु प्रदूषण बच्चों को होने वाले तीव्र श्वास संबंधी रोगों के लिए बड़ी संख्या में जिम्मेदार है। विशेषज्ञों के मुताबिक रसोई में खुली आग के धुंए में एक घंटे बैठने का मतलब 400 सिगरेट के बराबर धुआं सूंघना है।
चूल्हे का धुंआ महिलाओं को बीमार बनाता रहा तो इसकी वजह यह है कि सरकारों ने आम लोगों को स्वच्छ ईंधन मुहैया कराने के लिए गंभीर प्रयास किया ही नहीं। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। देश में एलपीजी वितरण की शुरूआत 1955 में हुई थी और 2014 तक अर्थात साठ वर्षों के दौरान सिर्फ 14 करोड़ लोगों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराया जा सका। दूसरे, एलपीजी का दायरा शहरी व कस्बाई इलाकों तथा गांवों के समृद्ध वर्ग तक सिमटा रहा। स्पष्ट है कि सरकारी उदासीनता के चलते चूल्हे के धुंएं से हर साल करोड़ों लोग बीमार पड़कर गरीब बनते रहे।
गरीबों को चूल्हे के धुंए से मुक्ति दिलाने की पहली सार्थक पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। इसके लिए मई 2016 को “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” की शुरूआत की गई जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों 2019 तक मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए 8000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया।
योजना के पहले साल अर्थात 2016-17 में डेढ़ करोड़ नए कनेक्शन जारी करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति के चलते देश के 694 जिलों में 2 करोड़ 17 लाख कनेक्शन बांटे गए। इसके अलावा एक करोड़ आठ लाख सामान्य कनेक्शन दिए गए। इस प्रकार 2016-17 में कुल 3.25 करोड़ नए गैस कनेक्शन जारी किए गए जो कि एक रिकॉर्ड है। इसी तरह की प्रगति 2017-18 में भी हुई। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2018 के बजट में उज्ज्वला योजना के तहत 2019 तक गैस कनेक्शन वितरित करने के लक्ष्य को बढ़ाकर आठ करोड़ कर दिया। इसके लिए 4800 करोड़ रूपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है।
स्पष्ट है, 2016 से 2019 के बीच महज चार साल के भीतर 8 करोड़ गरीबों को एलपीजी के नए कनेक्शन दिए जाएंगे। यदि कुल गैस कनेक्शनों को देखें तो यह आंकड़ा निश्चित रूप से 10 करोड़ की संख्या को पार कर जाएगा। दूसरी ओर 60 साल में 14 करोड़ गैस कनेक्शन ही जारी हुए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकतर नए गैस कनेक्शन पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पूर्वोत्तर जैसे पिछड़े राज्यों में जारी हो रहे हैं, जहां स्वच्छ ईंधन की पहुंच बहुत कम है। इससे न केवल महिलाओं का सशक्तिकरण हो रहा है, बल्कि खाना बनाने में लगने वाले समय व श्रम को कम करने में भी मदद मिल रही है। इतना ही नहीं, इस योजना से गैस वितरण के क्षेत्र में युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
शुरू में इस योजना का लाभ उन्हीं परिवारों को मिल रहा था, जो 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति गणना के अनुसार गरीबी की रेखा के नीचे थे; लेकिन अब इस योजना का दायरा बढ़ाया गया है। अब इसमें सभी अनुसूचित जाति-जनजाति परिवार, वनवासी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, द्वीपों, चाय बागानों में रहने वालों तथा प्रधानमंत्री आवास योजना एवं अंत्योदय योजना के लाभार्थियों को भी शामिल कर लिया गया है। इतना ही नहीं, सरकार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को दूरदराज व पहाड़ी क्षेत्रों में कामयाब बनाने के लिए बड़े रसोई गैस सिलेंडर की जगह पांच-पांच किलो के दो छोटे-छोटे सिलेंडर लेने का भी विकल्प बनाया है।
ग्राहकों को बड़े सिलेंडर की कीमत का किस्तों में भुगतान करने की सुविधा भी दी गई है। इसी का नतीजा है कि जनवरी 2018 तक देश के 80 फीसदी परिवारों तक रसोई गैस की पहुंच बन चुकी है। इस योजना से उत्साहित केंद्र सरकार ने 2022 तक देश के हर घर में स्वच्छ ईंधन पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। स्पष्ट है, देश की महिलाओं को चूल्हे के धुंए से आजादी के लिए अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)