केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद, एसआईटी बनाने का फैसला लिया गया, और मामले की त्वरित गति से जांच शुरू हुई, सीबीआई की जांच ने भी रफ़्तार पकड़ी। स्पष्ट है कि पहले अटल जी की सरकार और फिर मोदी सरकार द्वारा इस मामले में क्रमशः नानावती आयोग व एसआईटी के द्वारा सिखों को न्याय दिलाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप अब सिख समुदाय को न्याय मिलने लगा है।
गत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस मुरलीधर राव और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ सिख विरोधी दंगे में फैसला सुनाते एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कि 1947 में बंटवारे के वक्त कई लोगों का कत्लेआम किया गया था, 37 साल बाद देश की राजधानी दिल्ली ऐसी ही त्रासदी की गवाह बनी। आरोपी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाकर बच निकले।
विडंबना देखिये कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय सज्जन कुमार को सिख विरोधी दंगों में शामिल होने के लिए सजा सुना रही थी, तभी दिल्ली से 750 किलोमीटर की दूरी भोपाल में कांग्रेस नेता कमलनाथ की मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी करने का कार्यक्रम भी चल रहा था। यह वही कमलनाथ हैं, जो कभी संजय गांधी के करीबी थे।
यह बात यहाँ काबिले गौर है कि कमलनाथ का नाम नानावती कमीशन की रिपोर्ट में आया था, जिसमें कहा गया कि संसद के नजदीक रकाबगंज साहिब गुरूद्वारे के बाहर वह दो घंटे तक मौजूद थे। कमलनाथ गुरद्वारे के बाहर अपनी उपस्थिति को सही नहीं ठहरा पाए जहाँ दो सिखों की जलाकर हत्या कर दी गई थी। कांग्रेस ने अब उन्हीं कमलनाथ को मध्यप्रदेश के पद पर बिठाया।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या किये जाने के बाद दिल्ली में हजारों निर्दोष सिखों की हत्या की गयी थी। इसी मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है। दिल्ली कैंट के पांच सिखों – केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह की हत्या के मामले में केहर सिंह की विधवा और गुरप्रीत सिंह की मां जगदीश कौर ने शिकायत दर्ज कराई थी।
अटल बिहार वाजपेयी सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति जीटी नानावटी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ 2005 में एफआईआर दर्ज की थी। इस मामले में 13 जनवरी, 2010 को आरोप पत्र दाखिल किये गए।हालांकि 2013 में इस मामले में सज्जन कुमार को निचली अदालत द्वारा बरी कर दिया गया, जबकि उसके 2 साथी पूर्व विधायक महेन्द्र यादव व पूर्व पार्षद बलराम खोखर को उम्रकैद तथा 3 अन्य को 3 साल की सजा सुनाई गई थी।
लेकिन वर्षों बाद निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार को सजा सुनाई है। अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि भले ही दिल्ली पुलिस ने कई मामलों में मुक़दमा दर्ज कर लिया लेकिन मामलों की जांच सही तरीके से नहीं की गई। सज्जन कुमार के मामले को देखने से ऐसा प्रतीत हुआ कि जानबूझकर जांच की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया गया। अदालत ने यह साफ़ कर दिया कि उस समय की सरकारों ने जानबूझकर मामले को लटकाया ताकि सिखों को न्याय न मिल सके।
गौरतलब है कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद, एसआईटी बनाने का फैसला लिया गया, और मामले की त्वरित गति से जांच शुरू हुई, सीबीआई की जांच ने भी रफ़्तार पकड़ी। स्पष्ट है कि पहले अटल जी की सरकार और फिर मोदी सरकार द्वारा इस मामले में क्रमशः नानावती आयोग व एसआईटी के द्वारा सिखों को न्याय दिलाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप अब सिख समुदाय को न्याय मिलने लगा है।
सिख विरोधी दंगे में जगदीश टाइटलर के खिलाफ भी जांच का काम चल रहा है, लेकिन इस मामले में पहले ही काफी देरी हो चुकी है। बहरहाल सज्जन कुमार को सजा मिल गई है और उम्मीद की जा रही है कि न्याय का पहिया तेज़ी से घूमेगा और मामले के सभी दोषियों को दंड मिलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)