यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब वामपंथी कोरोना काल में जनकल्याण के नाम पर हिंदू मंदिरों की संपदा पर नजरें गड़ाए हुए थे। ये मामला न्यायपालिका के पास था और उसने न्याय की भावना से परिपूर्ण उचित निर्णय दिया, अन्यथा केरल की वामपंथी सरकार के स्वामित्व में जाकर इस मंदिर की क्या दशा होती, यह कहना कठिन है।
केरल के तिरुवनन्तपुरम स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर को लेकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय सामने आया। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि मंदिर में त्रावणकोर के शाही परिवार का ही अधिकार रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि अभी तक चली आ रही परंपरा के अनुसार यदि व्यवस्थापक या शासक की मृत्यु हो जाती है तो भी प्रबंधन का अधिकार यथावत रहेगा।
गौरतलब है कि केरल उच्च न्यायालय ने 2011 के फैसले में राज्य सरकार को पद्मनाभस्वामी मंदिर की तमाम संपत्तियों और प्रबंधन पर नियंत्रण लेने का आदेश दिया था। इस आदेश को पूर्व त्रावणकोर शाही परिवार ने शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी थी।
शीर्ष न्यायालय में 8 साल से ज्यादा समय तक सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की बेंच ने पिछले साल अप्रैल में इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को खंडपीठ ने फैसले में कहा कि त्रावणकोर शाही परिवार के आखिरी राजा का निधन होने का मतलब यह नहीं है कि मंदिर का प्रबंधन सरकार के हाथ में चला जाएगा।
यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब वामपंथी कोरोना काल में जनकल्याण के नाम पर हिंदू मंदिरों की संपदा पर नजरें गड़ाए हुए हैं। इस मामले में कोर्ट ने न्याय की भावना से परिपूर्ण उचित निर्णय दिया, अन्यथा केरल की वामपंथी सरकार के स्वामित्व में जाकर इस मंदिर की क्या दशा होती, यह कहना कठिन है।
असल में इस मंदिर के प्रबंधन और शासन में आपस में कभी बनी नहीं। कभी वित्तीय मामलों को लेकर तो कभी यहां प्रचलित गूढ़ मान्यताओं को लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने होते रहे हैं। अपने तहखानों में अकूत धन संपदा होने की चर्चाओं के चलते यह मंदिर हमेशा सुर्खियों में रहा है।
सुनवाई में मंदिर के अधिकार के अलावा एक और अहम बिंदु तिजोरी ‘बी’ का था जिसे खोला जाए या नहीं, इस पर निर्णय आना था। सर्वोच्च अदालत ने इसे भी स्पष्ट कर दिया है कि तिजोरी बी को खोलने का अधिकार शाही परिवार द्वारा गठित अंतिम समिति ही तय करेगी।
पद्मनाभस्वामी मंदिर ही क्यों, वामदलों ने तो देश के अन्य उन सभी मंदिरों पर अपनी वक्र दृष्टि जाहिर की है जिनके पास अपार संपदा है। सोशल मीडिया पर इस प्रकार के स्वर अक्सर सुनाई देते हैं कि फलां मंदिर का खजाना खाली किया जाए और समाज में जरूरतमंदों को बांटा जाए।
पिछले दिनों कोरोना संकट के चलते ऐसी चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था। यह एक प्रकार से सरकार पर परोक्ष रूप से दबाव बनाने की सुनियोजित कूटरचना थी लेकिन ये सारे स्वर एक सिरे से थम गए जब सरकार ने इस विषय में कोई रुचि नहीं दिखाई बल्कि स्वयं आगे आकर 20 लाख करोड़ रुपए का आपदा पैकेज घोषित कर दिया।
मुंबई का सिद्धि विनायक मंदिर हो या तिरुपति बालाजी अथवा शिरडी साईं मंदिर, अक्सर मंदिरों के चढ़ावे एवं संपत्ति पर सवाल उठाने वाले समुदाय विशेष की संपत्तियों, उनके सामाजिक सरोकार, कर्तव्य पर सवाल उठने पर मौन धारण करके बैठ जाते हैं।
केरल में ही सबरीमाला का प्रकरण पिछले साल सभी ने देखा कि किस प्रकार उस मंदिर की प्रचलित मान्यता का मखौल उड़ाना ही वामपंथियों का एकमात्र ध्येय बन गया था। वे वर्षों पुरानी परंपरा को अपनी छद्म बौदिृधकता की आड़ में तुड़वाना चाहते थे। सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर कुछ महिलाओं ने तो वहां प्रवेश तक कर डाला था। ये सारे दृंष्टांत इसलिए उल्लेखनीय हैं क्योंकि हिंदू मंदिर यदि केरल में स्थित है तो उसे अपने अस्तित्व को लेकर स्थानीय ताकतों से जूझते रहना होता है।
पद्मनाभस्वामी का भव्य मंदिर वित्तीय गड़बड़ी को लेकर दुष्प्रचारित किया गया। पूरे 9 साल तक मंदिर प्रबंधन और शासन के बीच कानूनी लड़ाई चली। असल में मंदिर के पास जो अकूत चल-अचल संपत्ति है, वह हिंदू विरोधी किरदारों को रास नहीं आ रही है। इसके चलते वे किसी ना किसी बहाने से अपनी मौजूदगी दर्ज कराने चले आते हैं।
कहा जाता है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर में करीब 2 लाख करोड़ का खजाना है, लेकिन जानकारों का कहना है कि अमूल्य खजाने का वास्तविक मूल्य इससे कई गुना ज्यादा है। मान्यता है कि मंदिर की स्थापना आज से 5 हजार साल पहले की गई थी। भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर का पुनर्निमाण छठी सदी में त्रावनणकोर के महाराज ने करवाया था और अपने खजाने को इस मंदिर में सुरक्षित रखवाया था। सो इसका प्रबंधन शाही परिवार के पास ही रहना उत्तम है और न्यायालय ने यही किया है।
केरल हाईकोर्ट से भी प्रतिकूल निर्णय आने के बाद मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था और आखिर शीर्ष न्यायालय ने उसके पक्ष में निर्णय देकर इस मामले का आदर्श समाधान किया है। इस एक निर्णय से कई समस्याओं का हल हो गया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)