गणतंत्र दिवस के दिन संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले किसान नहीं हो सकते!

सरकार ने इनसे बारह दौर की वार्त्ता की, यथासंभव इनकी माँगों को भी माना, इन्हें हर प्रकार से समझाने-बुझाने की चेष्टा की। फिर भी ये नहीं माने। क्योंकि ये वही करना चाहते थे, जो इन्होंने 26 जनवरी को किया। गणतंत्र-दिवस के दिन इन्होंने अपनी काली करतूतों से समस्त देशवासियों का सिर दुनिया में झुकाने वाला काम किया है। इतिहास इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।

गणतंत्र दिवस के दिन किसान आन्दोलन के नामपर जो किया गया वो बेहद शर्मनाक है। वास्तव में, पहले दिन से ये तथाकथित किसान और उनके सरगना इसी की फ़िराक में थे। हालात इनके हाथ से निकल गए – यह कहना सफ़ेद झूठ है। बल्कि सच्चाई यह है कि ये गुंडागर्दी इनकी सुनियोजित साज़िश का हिस्सा है। और देश के साथ साज़िश एवं दंगे के आरोप में योगेंद्र यादव, दर्शनपाल और राकेश टिकैत समेत उन तथाकथित चालीस किसान संगठनों के नेताओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

ये किसान नहीं गुंडे, उपद्रवी और दंगाई लगते हैं। और गुंडे और दंगाइयों से जिस भाषा में बात की जानी चाहिए अब इनसे इसी भाषा में बात की जानी चाहिए। हाथों में लाठी और तलवारें लेकर पुलिस पर, महिलाओं पर, बच्चों पर, आम नागरिकों पर हमला करने वाले ये लोग सहानुभूति के पात्र नहीं, वे किसान नहीं, अन्नदाता नहीं।

लालकिले पर चढ़कर तिरंगे का अपमान करने वाले, गणतंत्र-दिवस के दिन संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले किसान कैसे हो सकते हैं! सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचाने वाले ये लोग कतई किसान नहीं!

साभार : India Today

और जो-जो विपक्षी राजनीतिक दल, सूडो सेकुलर सिपहसलार, तथाकथित-स्वयंभू बुद्धिजीवी इन कथित किसानों का समर्थन कर रहे थे, वे सभी इन गुंडों-दंगाइयों के काले करतूतों में बराबर के हिस्सेदार हैं। राष्ट्र को इन्हें भी अच्छी तरह से पहचान लेना चाहिए। ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं।

अब पुलिस-प्रशासन को बल प्रयोग कर इनसे निपटना चाहिए। इन्होंने लोकतंत्र और राजधानी को बंधक बनाने की साज़िश रची है। ये लोग न जन हैं, न जनतंत्र में इनका विश्वास है। ये वे हैं जो मोदी से राजनीतिक रूप से लड़ नहीं पाए। जो लोकतांत्रिक तरीके से हार गए तो अब अराजक तरीके से चुनी हुई लोकप्रिय सरकार को अलोकप्रिय और अस्थिर करना चाहते हैं। पूरी दुनिया में भारत की छवि को बदनाम कर विकास को हर हाल में रोकना चाहते हैं।

उन्हें उभरता हुआ आत्मनिर्भर भारत स्वीकार्य नहीं। उन्हें कोविड की चुनौतियों से दृढ़ता व सक्षमता से लड़ता हुआ भारत स्वीकार्य नहीं। उन्हें चीन से उसकी आँखों-में-आँखें डालकर बात करता हुआ भारत स्वीकार्य नहीं।

इसलिए ये केवल मोदी के ही विरोधी नहीं, अपितु राष्ट्र के भी विरोधी हैं। इन्हें एक भारत, श्रेष्ठ भारत, सक्षम भारत, समर्थ भारत स्वीकार नहीं। यदि अभी भी हम नहीं जागे तो फिर कभी नहीं जागेंगे। यह सब प्रकार के मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने का समय है।

सरकार ने इनसे बारह दौर की वार्त्ता की, यथासंभव इनकी माँगों को भी माना, इन्हें हर प्रकार से समझाने-बुझाने की चेष्टा की। फिर भी ये नहीं माने। क्योंकि ये वही करना चाहते थे, जो इन्होंने 26 जनवरी को किया। गणतंत्र-दिवस के दिन इन्होंने अपनी काली करतूतों से समस्त देशवासियों का सिर दुनिया में झुकाने वाला काम किया है। इतिहास इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)