मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कर्जमाफी के हिट फार्मूले से उत्साहित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अब कर्जमाफी के मुद्दे पर आम चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। लेकिन राहुल गांधी यह नहीं बता रहे हैं कि आजादी के बाद छह दशकों तक कांग्रेस के शासन के बाद भी देश के किसान बदहाल क्यों हैं? क्या किसानों पर कर्ज का बोझ 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही बढ़ा है? क्या 2014 से पहले देश के किसान खुशहाल थे? शार्टकट (कर्जमाफी) से लोक सभा चुनाव जीतने का दिवास्वप्न देखने वाले राहुल गांधी के पास इन सवालों का जवाब नहीं है।
जब वोट बैंक और मुफ्तखोरी की राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा तब उसमे कांग्रेस का नाम स्वर्णाक्षरों से अंकित होगा। जाति-धर्म, क्षेत्र-भाषा, अगड़े-पिछड़े, दलित-आदिवासी के नाम पर राज कर चुकी कांग्रेस पार्टी अब नये मोहरों की तलाश में है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधान सभा चुनावों में उसे एक नया मोहरा मिल गया- किसानों की कर्जमाफी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एलान कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी 2019 का चुनाव कर्जमाफी के मुद्दे पर लड़ेगी। उनके मुताबिक यदि मोदी सरकार किसानों का कर्ज माफ नहीं करती तो 2019 में सत्ता में आने पर कांग्रेस सरकार सौ फीसद गारंटी के साथ पूरे देश के किसानों का कर्ज माफ करेगी।
राहुल गांधी मोदी से कर्जमाफी की अपेक्षा करने के बजाए पहले यह बताएं कि आजादी के सत्तर साल बाद भी भारतीय खेती मानसून का जुआ क्यों बनी हुई है? ग्रामीण सड़कों के नेटवर्क, बिजली की उपलब्धता और उपज की बिक्री के लिए कांग्रेसी सरकारों ने क्या किया?
राहुल गांधी इस बात को भूल रहे हैं कि किसानों की उपज की लाभकारी बिक्री में सबसे बड़ी बाधा वाला कानून – कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम कांग्रेस की ही देन है। इस कानून के चलते न तो नए व्यापारियों को आसानी से लाइसेंस मिलते हैं और न ही किसी नई मंडी का निर्माण हो पाता है। इसी का नतीजा है कि हर गली-कूचे में मोबाईल व बाइक शोरूम वाले देश में औसतन 435 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी है। किसानों की बदहाली की असली वजह यही है।
पूरे देश में किसानों की कर्जमाफी न होने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैन से न सोने देने का एलान करने वाले राहुल गांधी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि यदि कर्जमाफी से किसानों की समस्याओं का समाधान होता तो इसकी बार-बार जरूरत क्यों पड़ती? यहां कर्नाटक का उदाहरण प्रासंगिक है जहां पिछली कांग्रेस सरकार कर्जमाफी की योजना लाई थी और इस बार कांग्रेस के समर्थन वाली एच डी कुमार स्वामी सरकार ने भी कर्जमाफी का एलान किया। इसके बावजूद कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही है।
राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर पर कर्जमाफी का मुद्दा किसानों के हित के लिए नहीं अपितु कांग्रेस के वनवास को खत्म करने के लिए उठा रहे हैं। दरअसल उनकी नजर देश के 26.3 करोड़ किसानों और उन पर आश्रित करोड़ों लोगों के वोट हासिल करने पर है। गौरतलब है कि 2008 में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर कर्जमाफी की घोषणा की थी जिसके चलते पार्टी 2009 का लोकसभा चुनाव जीत पाई। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनावों में उस फार्मूले के हिट होने से राहुल गांधी का उत्साह बहुत बढ़ गया है।
भले ही कांग्रेस पार्टी सत्ता पाने के लिए कर्जमाफी का मुद्दा उठा रही है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कर्जमाफी से किसानों को तात्कालिक राहत भले ही मिलती हो लेकिन दीर्घकालिक रूप में खेती-किसानी को नुकसान उठाना पड़ता है। सरकारों का ध्यान सिंचाई, बीज, उर्वरक, ग्रामीण सड़कों, बिजली आपूर्ति आदि की ओर उतना नहीं जाता क्योंकि वे कर्जमाफी की संभावित मांग के प्रति आशंकित रहती हैं।
दूसरे, कर्जमाफी से किसानों के एक छोटे से वर्ग को ही फायदा पहुंचता है क्योंकि बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का अनुपात महज 46.2 फीसद ही है। शेष किसान अन्य स्रोतों से कर्ज लेते हैं जो कर्जमाफी के दायरे में नहीं आते। बैंकों से कर्ज लेने वाले सभी किसानों का भी कर्ज माफ नहीं होता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक गरीब राज्यों में कर्जमाफी से मात्र 10 से 15 फीसदी किसानों को फायदा पहुंचता है।
अब तो कर्जमाफी मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा देने लगी है। गांवों में एक ऐसा वर्ग पैदा हो चुका है जो कर्जमाफी को ध्यान में रखकर कर्ज लेता है। किसानों की कर्जमाफी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि ऋणों को जानबूझकर न चुकाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बैंकों को अब यह डर भी सताने लगा है कि कहीं राहुल गांधी वोट के लिए ऑटो लोन और होम लोन माफ करने का वादा न करने लगें।
समग्रत: राहुल गांधी को जिम्मेदार विपक्ष का परिचय देते हुए कर्जमाफी जैसे लोकलुभावन फैसलों के बजाए खेती-किसानी को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए मोदी सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए। लेकिन समस्या यह है कि खुशहाल किसान मुफ्तखोरी और कर्जमाफी के जाल में नहीं फंसेगें। यही कारण है कि राहुल गांधी शार्टकट (कर्जमाफी) से लोक सभा चुनाव जीतने का दिवास्वप्न देख रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)