इस बार का पश्चिम बंगाल चुनाव कई मामलों में अलहदा है। आपको ध्यान नहीं होगा कि आखिरी बार कौन-सा विधानसभा चुनाव सांस्कृतिक गौरव को पुनर्स्थापित करने के मुद्दे पर लड़ा गया था। बंगाल में भाजपा ने भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, बदहाल कानून व्यवस्था और राजनीतिक हिंसा को मुद्दा तो बनाया ही है, इसके साथ ही बंगाल की गौरवशाली संस्कृति को भी प्रमुख मुद्दा बनाया है। ये मुद्दा बंगाल की जनता की भावनाओं को छूने वाला है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई हैं, लेकिन प्रदेश का राजनीतिक तापमान अपने उफान पर है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी एक तरफ लगातार चुनावी रैली कर रही हैं, तो वहीं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का लगातार पश्चिम बंगाल दौरा उनके लिए हर रोज नई चुनौती खड़ी कर रहा है।
गौरतलब है कि अमित शाह जब भी बंगाल में जाते हैं, बंगाल का सियासी पारा यकायक बढ़ जाता है। इसका कारण हम लोकसभा चुनाव में अमित शाह की अचूक रणनीति को मान सकते हैं। क्योंकि अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के लिए जो भविष्यवाणी की थी भाजपा ने उस लक्ष्य हासिल किया था, वो भी ऐसे वक्त में जब मतदाताओं को वोट डालने से रोका जा रहा था, भाजपा के कार्यकर्ताओं पर लगातार हमले हो रहे थे।
उस समय देश के राजनीतिक विश्लेषक भाजपा को बंगाल के 42 लोकसभा सीटों में से 2 अंक तक देने में आना-कानी कर रहे थे। किन्तु जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो सभी की आँखे खुली रह गईं थीं।
उस परिणाम के उपरांत यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पश्चिम बंगाल की राजनीतिक तासीर को अमित शाह अपने माइक्रो मैनेजमेंट की कसौटी पर आंक चुके हैं। गत सप्ताह अमित शाह के बंगाल दौरे पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं। इसका सबसे बड़ा कारण गृहमंत्री की ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय के बीच होने वाली जनसभा थी।
तृणमूल और वामदलों द्वारा नागरिकता कानून को लेकर किए गए दुष्प्रचार के बाद नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने को लेकर मतुआ समुदाय के लोगों के बीच ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी। स्वभाविक है लोग यह अनुमान लगा रहे थे कि अमित शाह नागरिकता कानून को लेकर कुछ न कुछ अवश्य बोलेंगे।
अमित शाह ने स्पष्ट किया कि नागरिकता कानून जल्द से जल्द लागू होगा और शरणार्थियों को सम्मान के साथ नागरिकता दी जाएगी। इससे मतुआ समुदाय के लोगों में फिर वही विश्वास जगा है, जो लोकसभा चुनाव में दिखा था यानी इसका लाभ भाजपा को मिलना तय है।
अमित शाह ने केवल नागरिकता का वादा नहीं किया, बल्कि कई अहम घोषणाएं भी की जिसका इंतजार मतुआ समुदाय वर्षों से कर रहा था। जिसमें गुरुचाँद मंदिरों को पर्यटन सर्किट बनाना हो अथवा मुख्यमंत्री शरणार्थी कल्याण योजना शुरू करने की बात हो, यह सब घोषणाएं वर्षों से उपेक्षित मतुआ समाज को सम्मान प्रदान करने वाली हैं।
वहीं कूचबिहार की अपनी जनसभा में अमित शाह ने नारायणी सेना बटालियन बनाने की घोषणा की जिसकी मांग वर्षों से राजवंशी समाज कर रहा था। इन घोषणाओं में हम देखें तो विकास के साथ हर समाज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उनके सम्मान और गौरव को पुनर्स्थापित करने की स्पष्ट झलक दिखाई दे रही है।
दरअसल इस बार का पश्चिम बंगाल चुनाव कई मामलों में अलहदा है। आपको ध्यान नहीं होगा कि आखिरी बार कौन-सा विधानसभा चुनाव सांस्कृतिक गौरव को पुनर्स्थापित करने के मुद्दे पर लड़ा गया था। बंगाल में भाजपा ने भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, बदहाल कानून व्यवस्था और राजनीतिक हिंसा को मुद्दा तो बनाया ही है, इसके साथ ही बंगाल की गौरवशाली संस्कृति की पुनर्स्थापना को भी प्रमुख मुद्दा बनाया है। ये मुद्दा बंगाल की जनता की भावनाओं को छूने वाला है।
गौर करें तो जब भी भाजपा का कोई बड़ा नेता पश्चिम बंगाल दौरे पर जाता है, वह बंगाल के महापुरुषों के जन्मस्थान, समाधिस्थल के दर्शन व श्रद्धांजलि अर्पित करने अवश्य जाता है। यह चुनावी मुद्दों में सुखद परिवर्तन है, जिसे बंगाल की जनता बड़े गौर से समझ रही है। इस स्थिति को देखते हुए बरबस जनसंघ के विचारों की तरफ ध्यान आकृष्ट हो रहा है।
जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल जी देश के पुनर्निर्माण की बात करते थे, जिसमें भारत के गौरवमयी संस्कृति के आधार पर व्यवस्थाओं को संचालित करने की सोच निहित थी। आज भी भाजपा उन्हीं विचारों का अनुसरण करते हुए बंगाल को आधुनिकता के साथ उसके सांस्कृतिक, आध्यात्मिक गौरव को पुनर्स्थापित करने के मुद्दे को जनता के बीच रख रही है।
यूँ तो भाजपा हर चुनाव को लेकर गंभीर रहती है, लेकिन पश्चिम बंगाल में बनी राजनीतिक स्थितियों को समझें तो भाजपा अपनी पूरी शक्ति बंगाल के विजय के लिए लगा रही है, परन्तु क्या यह लड़ाई केवल राजनीतिक है ? केवल सत्ता में आने के लिए भाजपा इतनी कड़ी मेहनत कर रही है ? इसको भी हमें समझना होगा।
इसके लिए हमें अमित शाह के बयान पर गौर करना चाहिए, जो उन्होंने बंगाल के दौरे में आपने सायबर योद्धाओं को संबोधित करते हुए दिया था। अमित शाह ने कहा कि ये लड़ाई भाजपा को मजबूत करने की नहीं है, ये लड़ाई सत्ता परिवर्तन की नहीं है बल्कि ये लड़ाई बंगाल को सोनार बांग्ला बनाने की है। उन्होंने इस लड़ाई को भारत के नक़्शे पर पूर्वी भारत को गौरव दिलाने की लड़ाई बताया है। इस प्रतिबद्धता को समझते की आवश्यकता है।
आज बंगाल की स्थिति से पूरा देश वाकिफ है। कैसे सत्ता में बैठी ममता सरकार की सरपरस्ती में राजनीतिक हिंसाएँ हो रही हैं, बंगाल में उद्योग-धंधे समाप्त हो रहे हैं। यहाँ तक कि सरकारी योजनाओं में भी बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं, लाभार्थियों से कटमनी के रूप में पैसे लिए जा रहे हैं। इस आराजकता के माहौल से बंगाल को बाहर निकालने का संकल्प समूचे बंगाल की जनता के मन में है। बंगाल की जनता इस बात को समझ रही है कि कैसे तुष्टीकरण की राजनीति उनके अधिकारों पर अतिक्रमण कर रही है।
इन सब कसौटियों को परखने के उपरांत बंगाल की जनता अब सकारात्मक परिवर्तन की तरफ देख रही है। वह ऐसे परिवर्तन की आकांक्षी है- जिसमें बंगाल के सांस्कृतिक गौरव की रक्षा हो, विकास के नए द्वार खुलें तथा आध्यात्मिकता और ज्ञान के नए सोपान तय हों, जिससे प्रदेश में फैली अशांति हमेशा के लिए दूर हो और शांति के साथ पश्चिम बंगाल विकास के मार्ग पर चल पड़े।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)