‘हिन्दू चिंतन-दर्शन का अलग रूप है, तो यह हिन्दुओं के जीवन में दिखना भी चाहिए’

भागवत ने कहा कि हिंदू समाज तभी समृद्ध होगा जब वह समाज के रूप में काम करेगा। हिंदू हजारों सालों से पीड़ित हैं क्योंकि उन्होंने इसके मौलिक सिद्धांतों और अध्यात्मवाद को भुला दिया है। आज उनको ही अपने आचरण में लाने की आवश्यकता है। हिन्दू जीवन शैली, चिंतन और दर्शन का अलग रूप है, तो यह हिंदुओं के जीवन में दिखना भी चाहिए। तभी विश्व के लोग इसके महत्व को स्वीकार करेंगे।

भारतीय चिंतन व ज्ञान में विश्व कल्याण की कामना समाहित रही है। तलवार के बल पर अपने मत के प्रचार की इसमें कोई अवधारणा ही नहीं है। सवा सौ वर्ष पहले स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में भारतीय संस्कृति के इस मानवतावादी स्वरूप का उद्घोष किया था। यह ऐतिहासिक भाषण शिकागो की पहचान से जुड़ गया। इसकी एक सौ पच्चीसवीं जयंती पर शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया। 

इसमें अस्सी देशों के ढाई हजार से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए। भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख  मोहन भागवत सहित अनेक प्रमुख लोगों ने इस सम्मेलन को संबोधित किया। मोहन भागवत ने ठीक कहा कि हिंदुओं में अपना वर्चस्व कायम करने की कोई आकांक्षा कभी नहीं रही। हिन्दू समाज में प्रतिभावान लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन एकता की भावना का अभाव है। बेहतर समाज की स्थापना के लिए कार्य करने का एकजुट प्रयास होना चाहिए। तभी मानव कल्याण संभव होगा।

विश्व हिन्दू सम्मेलन में सरसंघचालक मोहन भागवत

मोहन भागवत ने सटीक उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई शेर अकेला होता है, तो जंगली कुत्ते भी उसे अपना शिकार बना सकते हैं। हिंदुओं में अपना वर्चस्व कायम करने की कोई आकांक्षा नहीं है। लेकिन उनका विचार तभी सुना जाएगा, जब वह शक्तिशाली होंगे। शक्तिशाली तब होंगे जब वह संगठित होंगे। यह सब अपने वर्चस्व के लिए नहीं बल्कि मानवता के कल्याण के लिए करना होगा। 

भागवत ने कहा कि हिंदू समाज तभी समृद्ध होगा जब वह समाज के रूप में काम करेगा। हिंदू हजारों सालों से पीड़ित हैं क्योंकि उन्होंने इसके मौलिक सिद्धांतों और अध्यात्मवाद को भुला दिया है। आज उनको ही अपने आचरण में लाने की आवश्यकता है। हिन्दू जीवन शैली, चिंतन और दर्शन का अलग रूप है, तो यह हिंदुओं के जीवन में दिखना भी चाहिए। तभी विश्व के लोग इसके महत्व को स्वीकार करेंगे। विश्व को नफरत, आतंकवाद, हिंसा से मुक्ति मिलेगी।

इस सम्मेलन में आर्थिक, शैक्षणिक, मीडिया, सांगठनिक, राजनीतिक, महिलाओं और युवाओं से जुड़े मुद्दों पर सत्र का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन हिंदुओं को आपस में जोड़ने, विचारों का आदान-प्रदान करने का व्यापक अवसर था। यह प्रयास सार्थक रहा। तीन वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की थी। जाहिर है, भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों की जिज्ञाशा बढ़ रही है। 

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने यही सब बात बड़े रोचक ढंग में प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि हम नाग पंचमी पर सांप को दूध पिलाते हैं जबकि कई बार सांप हमें काट लेता है। हम चींटी को चीनी खिलाते हैं जबकि कई बार चींटी भी हमें काट लेती है। यानी भलाई करते हुए कई बार हानि भी उठानी पड़ती है। पशु-पक्षी सहित सबको साथ लेकर चलना और सबका ख्याल रखना हिंदू की पद्धति है। 

भारत  अकेला ऐसा देश है, जिसने सभी धर्मों को उनके वास्तविक रूप में स्वीकार किया। एक समय में भारत को विश्व गुरु माना जाता था।  हमारे संस्कृति में महिलाओं को इतना सम्मान दिया जाता है कि देश में सारी नदियों का नाम महिलाओं के नाम पर है। यहां तक कि हम लोग देश को पितृभूमि नहीं मातृभूमि कहते हैं। आज विश्व में कहीं हिंसा हो रही है, कहीं उपभोगवादी संस्कृति ने लोगों के सामने संकट उत्त्पन्न किया है। मानवता के कल्याण हेतु शांति-सौहार्द का होना आवश्यक है। यह संस्कार भारत से ही मिल सकता है। शिकागो से यही सन्देश दिया गया।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)