उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राम वनगमन मार्ग को वन महोत्सव अभियान में शामिल करने का अभिनव कार्य करने जा रहे हैं। इसके अंतर्गत इस मार्ग पर त्रेता युग कालीन वाटिकाओं की स्थापना होगी। भारत में आदि काल से प्रकृति संरक्षण का विचार रहा है। योगी आदित्यनाथ उससे प्रेरणा लेते है। उनका मानना है कि अतीत से जुड़ना वर्तमान समाज के लिए आवश्यक है। त्रेता युग की वाटिका व उपवन भी वर्तमान पीढ़ी में पर्यावरण चेतना का संचार करेंगी।
प्राचीन भारत के ऋषि युगद्रष्टा व युगस्रष्टा थे। उनके वैज्ञानिक अनुसंधान आज पहले से अधिक प्रासंगिक हैं। दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की जो बेचैनी दिखाई दे रही है, उसका आकलन भारत में हजारों वर्ष पहले किया गया था। वस्तुतः भारतीय संस्कृति न्यूनतम उपभोग पर आधारित है। इसमें पर्यावरण व प्रकृति संरक्षण का विचार स्वभाविक रूप से समाहित है। जबकि उपभोगवादी संस्कृति में प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव कभी रहा ही नहीं।
दुनिया में जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, तब हमारे ऋषि पृथ्वी सूक्त की रचना कर चुके थे। पर्यावरण चेतना का ऐसा वैज्ञानिक विश्लेषण अन्यत्र दुर्लभ है। हमारे नदी व पर्वत तट ही प्राचीन भारत के अनुसंधान केंद्र थे। लेकिन पश्चिम की उपभोगवादी संस्कृति ने पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है।
भारत की केंद्र और उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार पर्यावरण व प्रकृति संरक्ष्ण के प्रति सजग है। इसको पर्यटन व तीर्थाटन से भी जोड़ा गया है। यह विकास की समग्र अवधारणा में समाहित विचार है। इसके दृष्टिगत पर्यटन व तीर्थ स्थलों का विकास और इनसे संबंधित राजमार्ग का निर्मांण शामिल है। विगत वर्षों के दौरान इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसमें अनेक नए अध्याय जोड़े हैं। उन्होने अयोध्या जी में त्रेता युग जैसा दीपोत्सव का शुभारंभ किया था। शुभारंभ के बाद यह परम्परा के रूप में स्थापित हुआ। इसने क्रमशः अपने ही कीर्तिमानों को पीछे छोड़ा है।
विश्व में दीपोत्सव का रिकॉर्ड कायम हुआ। इसी प्रकार योगी आदित्यनाथ ने वन महोत्सव का शुभारंभ किया था, जिसने अपने ही रिकार्ड को हर बार पीछे छोड़ा है। अब योगी आदित्यनाथ राम वनगमन मार्ग को वन महोत्सव अभियान में शामिल करने का अभिनव कार्य करने जा रहे हैं।
इसके अंतर्गत इस मार्ग पर त्रेता युग कालीन वाटिकाओं की स्थापना होगी। भारत में आदि काल से प्रकृति संरक्षण का विचार रहा है। योगी आदित्यनाथ उससे प्रेरणा लेते है। उनका मानना है कि अतीत से जुड़ना वर्तमान समाज के लिए आवश्यक है। त्रेता युग की वाटिका व उपवन भी वर्तमान पीढ़ी में पर्यावरण चेतना का संचार करेंगी।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्या से चित्रकूट तक राम वन गमन मार्ग में मिलने वाली अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों एवं वनों एवं वृक्षों के समूह का उल्लेख है। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण एवं विभिन्न शास्त्रों में श्रृंगार वन, तमाल वन, रसाल वन, चम्पक वन, चन्दन वन, अशोक वन, कदम्ब वन, अनंग वन, विचित्र वन, विहार वन का उल्लेख मिलता है।
रामायण में उल्लिखित अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों में से कई विलुप्त हो चुकी हैं अथवा देश के अन्य भागों तक सीमित हो गई हैं। यथा रामायण में उल्लिखित रक्त चन्दन के वृक्ष वर्तमान में दक्षिण भारत तक सीमित हैं। वन विभाग द्वारा राम वन गमन मार्ग में पड़ने वाले जनपदों अयोध्या, प्रयागराज चित्रकूट में रामायण में उल्लिखित अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों में से प्रदेश की मृदा, पर्यावरण व जलवायु के अनुकूल तीस वृक्ष प्रजातियों का रोपण कराया जा रहा है।
यह वृक्ष प्रजातियां- साल, आम, अशोक, कल्पवृक्ष पारिजात, बरगद, महुआ, कटहल, असन, कदम्ब,अर्जुन, छितवन, जामुन, अनार, बेल, खैर, पलाश, बहेड़ा, पीपल, आंवला, नीम, शीशम, बांस, बेर, कचनार, चिलबिल, कनेर, सेमल, सिरस, अमलतास, बड़हल हैं।
इन जनपदों में इन वृक्षों के रोपण की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। राज्य सरकार ने व्यापक जनसहभागिता से इस वर्ष तीस करोड़ पौधरोपण का लक्ष्य रखा है। इसके तहत राम वन गमन मार्ग पर आस पास की ग्राम सभाओं की भागीदारी से रामायणकालीन वृक्षों का रोपण कराया जाएगा।
लखनऊ के राजभवन में नक्षत्र,राशि एवं नवगृह वाटिका की स्थापना की गई है। इसमें कल्प वृक्ष पीपल, बरगद, नीम आंवला, मौलश्री जामुन बेल, सीता, अशोक ,शमी आम, कदम्ब, आक, अमरूद, गुलर, लालचंदन सहित अन्य पौधे लगे हैं।
पर्यावरण के बिगड़ने की समस्या से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है। यह पशु पक्षियों,जीव जन्तुओं पेड़ पौधों,वनस्पतियों वनों,जंगलों,पहाड़ों, नदियों सभी के अस्तित्व के लिये घातक है। पर्यावरण और जीवन परस्पर आश्रित है। वृक्ष मानव के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा रक्षा कवच है। वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुलन और संतुष्टि मिलती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर जैव विविधता की थीम दी है। जो आज के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
मानव सभ्यता को बचाने के लिए वर्तमान कृषि प्रणाली में कृषि वानिकी, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन सभी को अपनी खेती में बराबर का स्थान देना होगा। सृष्टि की रचना के समय से मानव जीवन का पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध रहा है। पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक शान्ति की प्रार्थना की गयी है। प्रकृति के अति दोहन के कारण ही सभी मानव एवं जीव जन्तु प्रभावित हुए हैं।
जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन नहीं होना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण की आवश्यकता है। सुखद है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)