त्रिपुरा चुनावो में मुख्य मुद्दा यह है कि केंद्र की योजनाओं के लिए जो पैसे दिए जाते हैं, प्रदेश सरकार उसे ठीक ढंग से खर्च नहीं करती है और भाजपा मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब होती दिख रही कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से यहां ज्यादा विकास होगा। दरअसल प्रदेश में उद्योगों का अभाव है और वहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज है जो भाजपा को विकास हेतु वोट देने को तैयार है। त्रिपुरा में आदिवासियों की एक बड़ी आबादी है और आदिवासी संगठन आईपीएफटी भाजपा के साथ है, जिसका निश्चित ही भाजपा को चुनावों में फायदा मिलेगा।
तीन तरफ से बांग्लादेश से घिरे त्रिपुरा में 18 फरवरी को राज्य निर्माण के बाद से अब तक का सबसे बड़ा चुनावी घमासान होने जा रहा है। वामपंथियों के इस गढ़ को गिराने के लिए पहली बार भाजपा सीधे मुकाबले में आयी है, इन विधानसभा चुनावो ने पर्वतीय प्रदेश त्रिपुरा की हवा बदल दी है। भाजपा ने अपने मिशन पूर्वोत्तर के अगले पड़ाव के रूप में त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है और इस कारण करीब दो दशकों से प्रदेश की कमान संभाले हुए मुख्यमंत्री माणिक सरकार को कड़ी चुनौती मिल रही है। पिछले 25 वर्षों से सत्ता में बरकरार वाम दल की सरकार इस चुनाव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, क्योंकि त्रिपुरा चुनाव में हार होने पर देश में वामपंथी राजनीति लगभग विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएगी।
भाजपा ने त्रिपुरा में अपनी आक्रामक चुनावी रणनीति से कांग्रेस पार्टी को न केवल राजनीतिक गुमनामी के करीब ढकेल दिया है और चार बार राज्य में सत्ता संभालने वाली कांग्रेस पार्टी अब केवल नाम के विरोधी दल तक सिमट कर रह गई है, बल्कि वामपंथियों को टक्कर देते हुए भाजपा सत्ता की मुख्य दावेदार बन गई है। इस तथ्य को राज्य के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने भी कुछ समय पहले कोलकाता में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था।
भाजपा से मिल रही कड़ी चुनौती वजह घबराकर वामपंथी मतदाताओं को कह रहे हैं कि यह लड़ाई साम्यवाद और सांप्रदायिकता के बीच है एवं यह चुनाव केवल त्रिपुरा की नहीं, बल्कि पूरे देश की लड़ाई का चुनाव है। वामपंथी लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी, धर्म और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त जीवन के सपने दिखा रहे हैं, किन्तु वे अपने 25 वर्षो को हिसाब देने से कतरा रहे हैं।
दरअसल भाजपा द्वारा इस चुनाव को विकास का चुनाव बनाकर वामपंथियों को उनके घर में घेर लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा की प्रचार रैली में कहा कि देश में 7वां वेतन आयोग लागू होने के बाद भी त्रिपुरा में चौथे वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत वेतन दिया जा रहा है। वामपंथी सरकार ने कर्मचारियों को अपने अधिकारों से वंचित कर रखा है। उन्होंने त्रिपुरा की जनता से कहा कि इसका कारण क्या है कि त्रिपुरा में लेफ्ट सरकार न्यूनतम वेतन और 7 वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं कर रही है?
गौरतलब है कि भाजपा ने अपनी सरकार बनने के बाद सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया है, जो वामपंथियो को उनकी हार का सबसे बड़ा कारण लग रहा है। भाजपा ने अपने विजन डाक्युमेंट में कहा है कि राज्य में खाद्य प्रसंस्करण; बैंबू, आईटी और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) स्थापित करने; प्रत्येक घर के लिए रोजगार उपलब्ध कराने; महिलाओं के लिए स्नातक तक की मुफ्त शिक्षा और युवाओं को मुफ्त स्मार्टफोन उपलब्ध कराने का वादा किया है। इसके अलावा पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में परिवहन का एक ‘लाजिस्टिक हब’ बनाना एवं रोज वैली घोटाले में जांच का वादा तथा घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने की भी बात कही है।
त्रिपुरा चुनावो में मुख्य मुद्दा यह भी है कि केंद्र की योजनाओं के लिए जो पैसे दिए जाते हैं, प्रदेश सरकार उसे ठीक ढंग से खर्च नहीं करती है और भाजपा मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब होती दिख रही कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने से यहां ज्यादा विकास होगा। दरअसल प्रदेश में उद्योगों का अभाव है और वहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज है जो भाजपा को विकास हेतु वोट देने को तैयार है। त्रिपुरा में आदिवासियों की एक बड़ी आबादी है और आदिवासी संगठन आईपीएफटी भाजपा के साथ है, जिसका निश्चित ही भाजपा को चुनावों में फायदा मिलेगा।
(लेखक कॉरपोरेट लॉयर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)