मोदी सरकार के सुधारों का दिखने लगा असर, कारोबारी सुगमता की रैंकिंग में भारत की बड़ी छलांग!

भारत द्वारा कारोबारी सुगमता की रैंकिंग में छलांग से दुनिया भर के निवेशकों के बीच सकारात्मक संदेश गया है। माना जा रहा है कि इससे विदेशी निवेश, जीडीपी विकास और क्रेडिट डिफ़ाल्ट स्वैप (सीडीएस) के प्रसार में मदद मिलेगी। कर के भुगतान, ऑनलाइन कर भुगतान की आधारभूत संरचना में सुधार मसलन, ई-फाइलिंग, रिफ़ंड की प्रक्रिया ऑनलाइन होने, दिवालियापन के नये नियमों आदि से भारत को अपनी रैंकिंग सुधारने में मदद मिली है। 

विश्व बैंक की ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2018 में भारत कारोबारी सुगमता के लिहाज से 30 स्थान की लंबी छलांग लगाते हुए 190 देशों की सूची में 100 वें पायदान पर पहुँच गया। 30 अंकों की भारत की बड़ी छलांग इंगित करती है कि वर्तमान सरकार के सुधारात्मक उपायों के फल मिलने शुरू हो गये हैं। कारोबार के 10 में से 6 मापदंडों में भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है।

कर के भुगतान, ऑनलाइन कर भुगतान की आधारभूत संरचना में सुधार मसलन, ई-फाइलिंग, रिफ़ंड की प्रक्रिया ऑनलाइन होने, दिवालियापन के नये नियमों आदि से भारत को अपनी रैंकिंग सुधारने में मदद मिली है। दिलचस्प है कि कारोबार सुगमता की रैंकिंग में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वजह से इतना सुधार नहीं हुआ है, जितना कि आय गणना एवं घोषणा मानदंडों (आईसीडीएस) के साथ ही साथ आधुनिक एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ईपीआर) सॉफ्टवेयर की वजह से हुआ है।

मोदी सरकार के सुधारात्मक कार्यों के परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं (सांकेतिक चित्र)

रैंकिंग में इस छलांग से दुनिया भर के निवेशकों के बीच सकारात्मक संदेश गया है। माना जा रहा है कि इससे विदेशी निवेश, जीडीपी विकास और क्रेडिट डिफ़ाल्ट स्वैप (सीडीएस) के प्रसार में मदद मिलेगी। पिछले 5 सालों की रैंकिंग का विश्लेषण विश्व बैंक द्वारा कार्यप्रणाली में बदलाव करने के कारण पूरी तरह से करना संभव नहीं है। फिर भी इस अवधि में भौतिक परिवर्तन के संदर्भ में कुछ रोचक परिणाम मिले हैं। उदाहरण के तौर पर भारत, इटली, वियतनाम, रोमानिया, पोलैंड आदि देशों में वर्ष 2013 से वर्ष 2016 के बीच की अवधि में विदेशी निवेश के प्रवाह और जीडीपी वृद्धि दोनों मामलों में अंकों में महत्वपूर्ण उछाल आया है।

भारत में निवल विदेशी निवेश प्रवाह में वृद्धिशील आधार पर 16.3 अरब डॉलर या एक लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जबकि रैंक में 34 की। इसके विपरीत, उरुग्वे, चिली, पेरू, कोलम्बिया, दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब जैसे देशों की रैंकिंग नीचे आई है और जीडीपी वृद्धि एवं विदेशी निवेश के प्रवाह में भी गिरावट दर्ज की गई है।

पाँच सालों के क्रेडिट डिफ़ाल्ट स्वैप (सीडीएस) के प्रसार से पता चलता है कि जिन देशों में सीडीएस प्रसार कमजोर रही, वहाँ कारोबारी रैंकिंग में सुधार आया है। सीडीएस के तहत लोन डिफॉल्ट होने की स्थिति में स्वैप का विक्रेता खरीदार की क्षतिपूर्ति करता है। इसके तहत सीडीएस का खरीदार, बेचने वालों को (सीडीएस शुल्क या स्प्रेड के तौर पर) एक के बाद एक, कई भुगतान करता है, लेकिन अगर लोन चुकाने में चूक होती है, तो उसकी क्षतिपूर्ति की जाती है, जो लोन के बराबर की रकम होती है।

स्रोत : विश्व बैंक

लोन का विक्रेता डिफॉल्ट लोन का अधिग्रहण कर लेता है। क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप का खरीदार एक तरह का क्रेडिट प्रोटेक्शन हासिल करता है, जबकि विक्रेता डेट सिक्योरिटी की क्रेडिट विश्वसनीयता की गारंटी देता है। ऐसा करने से लोन का जोखिम फिक्स्ड इनकम सिक्यूरिटी के धारक स्वैप के खरीदार की ओर शिफ्ट हो जाता है। देखा जाये तो सीडीएस लोन न चुकता होने की स्थिति में एक तरह का बीमा है। दरअसल, स्वैप का खरीदार यह मानकर चलता है कि तीसरी पार्टी के डिफॉल्ट होने का खतरा बना हुआ है।

ब्रिक्स देशों में कारोबारी सुगमता के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। चीन लगातार 78 वें स्थान पर बना हुआ है। फिर भी 4 उप-संकेतकों जैसे, निर्माण की परमिट, संपत्ति का पंजीकरण, दिवालिया समाधान एवं अनुबंधों को लागू करने के मामले में भारत की रैंकिंग चीन से बेहतर है। अल्पांश निवेशक श्रेणी के हितों की रक्षा के मामले में भारत दुनिया का चौथा सर्वश्रेष्ठ देश है और इस पैमाने पर वह पिछले साल के 13 वें स्थान से 9 वें स्थान पर आ गया है।

भारतीय इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) नया है। माना जा रहा है कि निकट भविष्य में चूक की स्थिति में इस कानून की मदद से बेहतर परिणाम निकलेंगे, जो कारोबारी सुगमता वाले सूचकांक में भी परिलक्षित होंगे। अन्य उप-संकेतकों में भी सुधार आने की उम्मीद है, क्योंकि सरकार दिल्ली और मुंबई में सिंगल विंडो सिस्टम जैसे, निर्माण परमिट, वाणिज्यिक अदालत और फास्ट ट्रैक कॉण्ट्रैक्ट प्रवर्तन आदि सुधारात्मक कार्य कर रही है।

स्रोत : विश्व बैंक

फंसे कर्ज के निपटान के लिए ऋणशोधन एवं दिवालिया संहित के साथ ही क्षेत्रीय नियामक का गठन करने से भारत दिवालिया मामले के निपटान के पैमाने पर 33 स्थान ऊपर पहुंच गया है। उधारी प्राप्त करने के मामले में भी भारत 29 वें स्थान से 15वें स्थान पर आ गया। निर्माण परमिट हासिल करने के पैमाने पर भारत पिछले साल के 184 वें स्थान से सुधरकर 181 वें स्थान पर आ गया।

कहा जा सकता है कि कारोबारी सुगमता रैंकिंग में आया यह ऐतिहासिक उछाल विभिन्न क्षेत्रों में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों का नतीजा है। वैसे, मामले में राज्यों के प्रयासों को भी खारिज नहीं किया जा सकता है। कारोबारी माहौल में सुधार के दृष्टिकोण से भारत आज दुनिया का 5वां श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला देश बन गया है। सच कहा जाये तो निरंतर और व्यवस्थित तरीके से सुधारों को लागू करने का फायदा भारत को मिला है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)