योगी आदित्यनाथ ने श्वेत पत्र में बताया है कि पिछली सरकारों ने अरबो रुपये की चपत लगाई है। घोटालो व समय पर योजनाओं को पूरा न करने से प्रदेश का विकास बाधित होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया। निवेशकों ने भी उत्तर प्रदेश में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। अधूरी परियोजनाओं के उद्घाटन की सच्चाई भी सामने है। यह गलत परम्परा थी। सरकार की निरंतरता पर विश्वास करना चाहिए। यदि समय से कार्य पूरा न हो तो उसका विश्लेषण करना चाहिए।
विरासत पर श्वेतपत्र जारी करना प्रत्येक सरकार का अधिकार और कर्तव्य दोनो है। यह एक बेहतर परम्परा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी शुरुआत की है। प्रदेश की जनता को पिछली सरकारों के क्रियाकलापो के संबन्ध में जानने का अधिकार भी है। चुनाव के समय बहुत आरोप प्रत्यारोप लगते हैं। जो पार्टी सत्ता में आती है, उसी पर सच्चाई को सामने लाने की जिम्मेदारी होती है। यदि यह कार्य पिछली सरकारों ने किया होता तो स्थिति इतनी खराब न होती। क्योंकि, तब नई सरकार की जिम्मेदारी स्वतः ही बढ़ जाती।
2007 के विधानसभा चुनाव प्रचार में बसपा प्रमुख तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पर भ्र्ष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाती थी। प्रत्येक सभा मे वह सपा सरकार के भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने की बात कहती थी। लोगो को उनकी बात पसन्द आती थी। मायावती को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर मिला। जो आरोप लगाकर वह सत्ता में पहुंची थी, उन पर तथ्य एकत्र करना और फिर श्वेतपत्र जारी करना उनकी जिम्मेदारी थी। लेकिन न श्वेतपत्र जारी हुआ, न पांच वर्ष में कोई कारगर कदम उठाया गया।
इतना अवश्य हुआ कि जो आरोप मायावती सपा पर लगाती थी, उनसे खुद ही घिरती गई। 2012 के चुनाव में मुद्दे वही रहे, किरदार भी वही थे, लेकिन उनकी भूमिका बदल गई। जो आरोप 2007 में मायावती सपा नेताओं पर लगती थी, वही 2012 में सपा उनपर लगा रही थी। इस चुनाव में सपा जीती।
अब यह सपा सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह विरासत पर श्वेत पत्र जारी करती । लेकिन इन्होने भी प्रमाणिक तौर पर ऐसा कुछ नही किया। इतना ही नही लोकायुक्त की अधिकांश सिफारिशों पर भी कोई कार्यवाही नही की गई। कुछ चर्चित अधिकारी दोनो सरकार में समान रूप से पसन्द किये गए। इसका मतलब था कि सपा और बसपा ने एक दूसरे की सच्चाई को सामने लाने में दिलचस्पी नही दिखाई। पिछले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने इन दोनों पार्टियो को हाशिये पर पहुंचा दिया था।
योगी आदित्यनाथ ने अपनी जिम्मेदारी को समझा। विपक्ष के सांसद के रूप में वह सपा, बसपा के भ्रष्टाचार और कुशासन आदि के खिलाफ अभियान चलाते रहे है। यह माना जा रहा था कि वह मुख्यमंत्री बनने के बाद सपा, बसपा सरकारों के कार्यो पर श्वेतपत्र जारी करेंगे। लेकिन यह उचित है कि योगी आदित्यनाथ ने कोई जल्दीबाजी नही दिखाई। उन्होने अवश्य पूरे प्रकरण पर गहन विचार किया। छह महीने में प्रमाण पर भी उनकी सरकार ने ध्यान दिया होगा। इसके बाद ही उन्होने श्वेतपत्र जारी किया।
योगी आदित्यनाथ ने श्वेत पत्र में बताया है कि पिछली सरकारों ने अरबो रुपये की चपत लगाई है। घोटालो व समय पर योजनाओं को पूरा न करने से प्रदेश का विकास बाधित होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया। निवेशकों ने भी उत्तर प्रदेश में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। अधूरी परियोजनाओं के उद्घाटन की सच्चाई भी सामने है। यह गलत परम्परा थी। सरकार की निरंतरता पर विश्वास करना चाहिए। यदि समय से कार्य पूरा न हो तो उसका विश्लेषण करना चाहिए।
श्वेतपत्र में कानून व्यवस्था, बिजली, सरकारी नौकरियों में भर्ती आदि के भी आरोप लगाए गए। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की चालीस हजार नौकरियों की सतर्कता जांच भी की जाएगी। आबकारी, सार्वजनिक उपक्रम, अल्पसंख्यक कल्याण आदि अनेक विभागों की गड़बड़ी को उजागर किया गया है। प्रदेश को कर्ज के जाल में उलझाने का आरोप लगाया गया।
लोकसेवा आयोग की गतिविधियों ने सपा सरकार को बदनाम किया था। लेकिन, इसमें समय रहते सुधार का प्रयास नही किया गया। इस प्रकार योगी आदित्यनाथ ने एक अच्छा कार्य किया है। उन्होने यह बताने का प्रयास किया कि उन्हें बदहाल विरासत मिली है। इसके बाबजूद वह जन आकांक्षाओ को पूरा करेंगे। प्रदेश की व्यवस्था को पटरी पर लाया जा रहा है। इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे।