सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पर वर्ष 1978 में काम शुरू हुआ था। मगर फिर आधे-अधूरे रूप में अटक गई थी। 2016 में इस परियोजना को प्रधानमंत्री कृषि संचयी योजना में शामिल किया गया। इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। नई नहरों के निर्माण के लिये नये सिरे से भूमि अधिग्रहण करने तथा परियोजना की खामियों को दूर करने के लिये नये समाधान किये गये। पहले जो भूमि अधिग्रहण किया गया था, उससे सम्बंधित लंबित मुकदमों को निपटाया गया। नये सिरे से ध्यान देने के कारण यह परियोजना लगभग चार वर्षों में ही पूरी कर ली गई।
वर्तमान केंद्र सरकार और यूपी की योगी सरकार ने दशकों से लंबित अनेक परियोजनाओं को धरातल पर उतारा है। इसके लिए समय सीमा व संसाधन का निर्धारण किया गया। इस अवधि में परियोजनाओं को पूर्णता प्रदान की गई। इस शृंखला में सरयू परियोजना भी शामिल हुई। चालीस वर्षों से यह भी अधर में अटकी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 11 दिसंबर को यूपी के बलरामपुर में आयोजित कार्यक्रम में सरयू नहर परियोजना का लोकार्पण कर राष्ट्र को समर्पित किया। इस प्रकार सरयू नहर परियोजना का सपना आखिरकार 43 साल बाद साकार हुआ। मात्र चार वर्ष में योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस परियोजना के शेष करीब आधे कार्य को पूर्ण किया।
इसके पहले उत्तर प्रदेश में ही बाणसागर परियोजना भी इसी प्रकार लंबित थी। इसकी भी वर्तमान सरकार ने पूरा किया। सरदार सरोवर परियोजना को तो आधी शताब्दी से अधिक समय बाद अंजाम तक पहुंचाया गया।
अटल टर्मिनल का मामला दिलचस्प है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने यह योजना तैयार की थी। लेकिन आम चुनाव के बाद यूपीए सरकार बनी थी। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस परियोजना को पूरा करना उसकी जिम्मेदारी थी। लेकिन इसे नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरा किया। यदि यूपीए सरकार की गति से इस पर कार्य चलता तो परियोजना चालीस वर्ष में पूरी होती।
इस परियोजना को 2003 में अंतिम तकनीकी स्वीकृति मिली थी। इसके अगले वर्ष भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट पेश की गई। फिर सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की स्वीकृति मिली। इसके चार वर्ष बाद यह सुरंग बनना शुरू हुई। इसे पांच वर्ष में पूरा होना था। इसे मोदी सरकार ने पूरा किया। नरेंद्र मोदी के हांथों इसका लोकर्पण हुआ।
पीर पंजाल की पहाड़ियों को काटकर बनाई गई सुरंग के कारण छियालीस किमी की दूरी कम हो गई है। यह रोहतांग दर्रे के लिए वैकल्पिक मार्ग प्रदान करती है। मनाली वैली से लाहौल और स्पीति वैली तक पहुंचने में करीब पांच घंटे लगते थे। अब दस मिनट लगते है। हर साल सर्दी में करीब छह महीने के लिए देश के शेष हिस्से से कट जाता था। हथियार और राशन पहुंचाना आसान सुगम हो गया। अब लद्दाख में तैनात सैनिकों से बेहतर संपर्क बना रहेगा। उन्हें हथियार और रसद कम समय में पहुंचाई जा सकेगी।
बाणसागर परियोजना करीब तीन सौ करोड़ रुपये की थी। पैतीस सौ करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। बाणसागर परियोजना की परिकल्पना 1956 में केन्द्रीय जल विद्युत शक्ति आयोग ने देश में जल विद्युत की संभावना के सर्वेक्षण के दौरान की थी। बाणसागर परियोजना का शिलान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1978 को किया था।
इस बड़ी परियोजना का कार्य दस वर्ष में पूर्ण किया जाना था। यूपी में नहर परियोजना की लंबाई लगभग डेढ सौ किलोमीटर रही। जिसमें बाणसागर से अदवा बैराज तक अदवा नदी से होकर पानी आना था। अदवा बैराज से मेजा बांध लिंक नहर व मेजा बांध से जरगो लिंक नहर का कार्य किया गया। योगी आदित्यनाथ सरकार ने बाणसागर परियोजना को पूरा किया। सरदार सरोवर बांध को बनाने की पहल आजादी से पहले ही हो गई थी।
1945 में सरदार पटेल ने इसके लिए पहल की थी। 1961 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी नींव रखी थी। छप्पन वर्ष बाद 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश को समर्पित किया। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार ने अटकी-लटकी-भटकी हुई परियोजनाओं को खंगालकर इन सभी योजनाओं को पूरा करने का संकल्प लिया है।
सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पर वर्ष 1978 में काम शुरू हो गया था। मगर फिर आधे-अधूरे रूप में अटकी गई थी। 2016 में इस परियोजना को प्रधानमंत्री कृषि संचयी योजना में शामिल किया गया। इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। नई नहरों के निर्माण के लिये नये सिरे से भूमि अधिग्रहण करने तथा परियोजना की खामियों को दूर करने के लिये नये समाधान किये गये। पहले जो भूमि अधिग्रहण किया गया था,उससे सम्बंधित लंबित मुकदमों को निपटाया गया।
नये सिरे से ध्यान देने के कारण परियोजना लगभग चार वर्षों में ही पूरी कर ली गई। सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना के निर्माण की कुल लागत 9800 करोड़ रुपये से अधिक है, जिसमें से 4600 करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान पिछले चार वर्षों में किया गया। परियोजना में पांच नदियों घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी को आपस में जोड़ने का भी प्रावधान किया गया है। स्पष्ट है, मोदी-योगी की डबल इंजन सरकार के प्रयासों से अटकी परियोजनाएं तेजी से धरातल पर आकार लेने लगी हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)